कश्मीरः समय पर पूर्ण राज्य

गृहमन्त्री श्री अमित शाह के यह स्पष्ट कर देने के बाद, जम्मू-कश्मीर को उपयुक्त समय पर पूर्ण राज्य का दर्जा दे दिया जायेगा

Update: 2021-02-15 05:39 GMT

गृहमन्त्री श्री अमित शाह के यह स्पष्ट कर देने के बाद, जम्मू-कश्मीर को उपयुक्त समय पर पूर्ण राज्य का दर्जा दे दिया जायेगा, यह सवाल खड़ा नहीं किया जाना चाहिए कि पाकिस्तान से लगे इस संवेदनशील राज्य की जनता के अधिकारों के साथ मोदी सरकार किसी प्रकार का दो मेल करना चाहती है। इस राज्य के पुनर्गठन के पीछे केन्द्र सरकार की मंशा राज्य के लोगों को पूर्ण सुरक्षा देने व पाकिस्तान प्रेरित आतंकवाद से मुक्त कराने की रही है जिसकी वजह से विगत वर्ष 5 अगस्त को इसे दो केन्द्र शासित क्षेत्रों लद्दाख व जम्मू-कश्मीर में बांटा गया था। हकीकत यह है कि अनुच्छेद 370 को समाप्त करने के फैसले से ही यह साफ हो जाना चाहिए था कि 'नाजायज मुल्क' पाकिस्तान इस मुद्दे को भुनाने की कोशिश करेगा और उसने ऐसे प्रयास भी किये मगर उसकी कोई चाल सफल नहीं हो सकी क्योंकि 370 एक अस्थायी प्रावधान था जो संविधान में बाद में जोड़ा गया था। यह बात हमेशा ध्यान रखी जानी चाहिए कि 26 अक्तूबर, 1947 को जब जम्मू-कश्मीर रियासत का विलय महाराजा हरिसिंह ने भारतीय संघ में किया था तो भारत के संविधान लिखने की प्रक्रिया जारी थी मगर अनुच्छेद 370 इसे पूरा लिखने के बाद में यह कहते हुए जोड़ा गया था कि यह अस्थायी प्रावधान है जिसके तहत इस राज्य के लोगों को विशेष दर्जा दिया जा रहा है। यह भी पुख्ता इतिहास है कि संविधान निर्माता बाबा साहेब अम्बेडकर ने इस पर आपत्ति की थी और कहा था कि एक देश के भीतर ही किसी एक राज्य का अपना पृथक संविधान कैसे हो सकता है?


खैर अब यह इतिहास हो चुका है क्योंकि पिछले 70 सालों के दौरान इस अनुच्छेद के प्रवधानों में इतनी बार फेरबदल किये गये कि इसका वजूद नाम भर को ही रह गया था। मगर 35 ए को इसके साथ ही समाप्त करने से जम्मू-कश्मीर के नागरिकों को वे मूलभूत अधिकार प्राप्त हुए जो देश के किसी भी अन्य राज्य के नागरिकों को प्राप्त हैं। विशेष रूप से दलित व अनुसूिचत जाति के लोगों को। अतः मानवाधिकारों की वकालत करते हुए हमें जम्मू-कश्मीर के इस पक्ष की भी चर्चा करनी चाहिए। जहां तक इसे पूर्ण राज्य का दर्जा दिये जाने का सवाल है तो भारत की संसद यह कार्य कभी भी कर सकती है, सवाल सिर्फ परिस्थितियों में सुधार होने का है। राज्य के लोगों को पंचायती राज व्यवस्था के तहत जिस प्रकार केन्द्र सरकार ने अधिकार सम्पन्न बनाने के साथ उनके विकास में सीधी भागीदारी की नीयत दिखाई है उसका दिल खोल कर स्वागत किया जाना चाहिए क्योंकि इस व्यवस्था में आम कश्मीरी अपने विकास के लिए सीधे सक्रिय होगा। भारत में अर्ध राज्यों से पूर्ण राज्य का दर्जा देने का एक महत्वपूर्ण इतिहास भी मौजूद है। हिमाचल प्रदेश को पूर्ण राज्य का दर्जा पंजाब से इसके अलग होने के कई वर्षों बाद दिया गया था। इसी प्रकार उत्तर-पूर्व भारत के राज्यों को भी यह दर्जा रातों-रात नहीं मिला। बेशक जम्मू-कश्मीर इस मामले में पहला उदाहरण है जिसे पूर्ण राज्य से अर्ध राज्य का दर्जा दिया गया मगर इसके पीछे वे ठोस कारण हैं जिनकी वजह से केन्द्र को एेसा कदम उठाने के लिए मजबूर होना पड़ा। इनमें सबसे महत्वपूर्ण इस राज्य का भारतीय संघ में समावेशी तरीके से विलय था। अलग संविधान होने की वजह से शेष देशवासियों की नजरों में इसका भारतीय संघ में विलय ऊपर से गुंथा हुआ महसूस होता था जबकि पूरा देश एक स्वर में हमेशा यह आवाज बुलन्द करता रहता था कि जम्मू-कश्मीर भारत का अभिन्न व अटूट अंग हैं।

यह हकीकत संसद के रिकार्ड में दर्ज है कि स्वयं गृहमन्त्री ने पिछले वर्ष राज्यसभा में इसका पुनर्गठन विधेयक रखने के बाद कहा था कि अनुच्छेद 370 इस राज्य में आतंकवाद को बढ़ावा देने, खास कर पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद को, सहायक रहा है। पाकिस्तान की नामुराद फौजें इस अऩुच्छेद का लाभ उठा कर कश्मीरियों में अलगाववाद की भावनाएं पनपाने के प्रयास करती रही हैं। जबकि दूसरी तरफ यह पुख्ता इतिहास है कि कश्मीर नागरिक शुरू से ही पाकिस्तान के निर्माण के विरुद्ध रहे हैं। यदि और बारीकी से हम विश्लेषण करें तो इसे केन्द्र शासित राज्य का दर्जा देकर श्री शाह ने सारी जिम्मेदारी अपने सीर लेने की हिम्मत तब दिखाई जब घाटी में आतंकवादी गतिविधियां कम नहीं हुई थी। किसी भी राज्य का विकास इस बात पर निर्भर करता है कि उसके राजनीतिक नेतृत्व की नीयत क्या है। कमोबेश इस राज्य में अब्दुल्ला व मुफ्ती परिवार ने ही भारत के लोकतन्त्र की परिपाटी का लाभ उठाया और राज्य में इन परिवारों से बाहर कोई नेतृत्व उभर ही नहीं सका। इसमें लोगों का दोष बिल्कुल नहीं है क्योंकि उन्हें क्षेत्रीय नेतृत्व ने 370 के मायाजाल में ही उलझाये रखा। इस मायाजाल को तोड़ने का काम जब गृहमन्त्री श्री शाह ने किया तो इन नेताओं में बगावती सुरों तक की झलक देखने को मिली परन्तु यह केवल 'वक्ती उबाल' था जो उबल कर बाहर आ गया। अब इनमें से ही कई नेता खास कर पूर्व मुख्यमन्त्री अमर अब्दुल्ला यह स्वीकार कर चुके हैं कि 370 संभवतः अब कभी बहाल नहीं होगा। यह भारत के लोगों की ही इच्छा थी जिसे श्री शाह ने लागू किया है अतः पूर्ण राज्य का दर्जा भी उपयुक्त समय पर इस राज्य को मिलेगा क्योंकि यह इस राज्य के लोगों की भी इच्छा हो सकती है।


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