काजल की कोठरी

पश्चिम बंगाल के एक मंत्री की सहयोगी अर्पिता मुखर्जी के ठिकानों से बरामद भारी मात्रा में सोना और करोड़ों रुपए नगदी देख कर सब चकित हैं। अगर एक स्त्री के घरों से इक्यावन करोड़ रुपए, छह किलो सोना पकड़ा गया है, तो बाकियों का क्या हाल होगा।

Update: 2022-08-07 10:37 GMT

क्षमा शर्मा: पश्चिम बंगाल के एक मंत्री की सहयोगी अर्पिता मुखर्जी के ठिकानों से बरामद भारी मात्रा में सोना और करोड़ों रुपए नगदी देख कर सब चकित हैं। अगर एक स्त्री के घरों से इक्यावन करोड़ रुपए, छह किलो सोना पकड़ा गया है, तो बाकियों का क्या हाल होगा।

यों जब भी कोई दल सत्ता में आता है, वह ईमानदारी की कसमें खाता है। भ्रष्टाचार को समूल खत्म करने की बातें करता है, लेकिन होता इसका उलटा है। लोकतंत्रवादियों की यह कैसी राजनीति है, जो नाम तो जनसेवा का लेती है, लेकिन सत्ता में आते ही दिन दूनी, रात चौगुनी कमाई का बंदोबस्त करती है। क्या सचमुच राजनीति पैसा कमाने का एक सफलतम उद्योग है।

हालांकि अर्पिता ने कहा कि उसे नहीं पता कि यह पैसा कहां से आया। यह भी हैरत की बात नहीं कि आपके घर में करोड़ों जमा हैं और आपको नहीं मालूम कि वह पैसा कहां से आया। पीड़ित होने का खेल खेलने की भी कोशिश की जा रही है।

मंत्री महोदय ने कहा कि उन्हें साजिशन फंसाया गया है। जल्दी ही दूध का दूध, पानी का पानी हो जाएगा। हालांकि हमारी याददाश्त बहुत कमजोर होती है। हम जल्दी ही इस घटना को भूल जाएंगे। फिर कोई नई घटना ऐसी होगी। मीडिया में हल्ला मचेगा। भला-बुरा कहा जाएगा, फिर मामला रफा-दफा हो जाएगा।

इस देश में आम करदाता ही ऐसा है, जो चारों तरफ से पिट रहा है। वह मेहनत से पढ़ता-लिखता, अपने पैसे खर्च करता और जैसे-तैसे नौकरी ढूंढ़ता है। यही वर्ग है, जो हर कानून का पालन करता, अपनी कमाई से रो-पीट कर घर चलाता, हर तरह के कर देता है और जेब भी इसी की कटती है।

इसकी पढ़ाई, रोजगार में सरकारों की शायद ही कोई भूमिका होती है, मगर इसके पैसे पर सरकारों की तीखी नजर रहती है। एक पैसा इधर-उधर हुआ नहीं कि आयकर का डंडा सिर पर पड़ता है। सरकारें इसी के पैसे से मुफ्त की रेवड़ियां बांटती हैं, इसे गरीबों के भले का नाम दिया जाता है।

दूसरी तरफ यहां का प्रभुवर्ग है, जिसमें नेता सबसे आगे हैं। कुछ दशक तक जो लोग झोंपड़ियों में रहते थे, वे अब हजारों करोड़ के मालिक हैं। यह कमाई कैसे हुई, कोई नहीं बताता, पूछता भी कोई नहीं है। अर्पिता मुखर्जी की चारों कारें, इतनी धन-दौलत आखिर कहां से आई। वह एक मामूली-सी अभिनेत्री ही रही हैं। जीवन-शैली किसी बेहद अमीर जैसा है। कुछ सालों से मंत्री के संपर्क में थीं।

हालांकि हाल ही की कुछ घटनाओं पर नजर डालें तो कई और लोग करोड़ों की हेराफेरी में पकड़े गए हैं, जिनमें एक महिला आइएएस, उत्तर प्रदेश में एक राजनीतिक दल के बेहद करीबी सज्जन के पास भी लगभग इतनी ही दौलत पकड़ी गई।

अतीत में भी ताकतवर महिलाएं, जो राजनीति के इर्द-गिर्द थीं, उनके पास अकूत दौलत मिल चुकी है। उनमें तमिलनाडु की मुख्यमंत्री, उनकी सहयोगी शशिकला का नाम भी रहा है। बताया जाता है कि जयललिता के यहां से 1997 में उनतीस किलो सोना, आठ सौ किलो चांदी, दस हजार से अधिक साड़ियां, इक्यानबे कीमती घड़ियां मिली थीं। साढ़े सात सौ जोड़ी कीमती जूते भी थे।

उस समय उनकी संपत्ति की कुल कीमत सड़सठ करोड़ आंकी गई थी। कहा गया था कि यह संपत्ति उन्होंने अपने 1991-96 के पहले कार्यकाल के दौरान बनाई थी। इसके लिए उन्हें जेल भी जाना पड़ा। वे भी मुख्यमंत्री एमजी रामचंद्रन की बेहद करीबी थीं।

उनकी सहयोगी शशिकला के तो एक सौ सतासी ठिकानों पर छापेमारी में सोलह सौ करोड़ से अधिक की संपत्ति का पता चला था, जिसका कोई स्रोत वे नहीं बता पाई थीं। उन्हें भी जेल जाना पड़ा था। मगर सच यह है कि किसी को जेल भेज देने से उस पर कोई खास असर नहीं पड़ता, क्योंकि जब ये लोग जेल से वापस आते हैं, तो अपने समर्थकों के साथ विजय का चिह्न बनाते हैं। फूलमालाओं से उनका ऐसे स्वागत किया जाता है, जैसे बहुत बड़ा किला जीत कर आए हों। वे फिर से अपनी जिंदगी ऐशो-आराम से जीने लगते हैं।

अर्पिता या उनकी तरह की लड़कियों के इस तरह के कारनामे कोई नई बात नहीं है। जिंदगी में छोटा रास्ता अपना कर अगर सफलता और दौलत हासिल की जा सकती है, तो क्या बुरा। और कहने वाले तो कहते ही रहते हैं कि पैसा और ताकत हो तो सारे पाप ढंक जाते हैं। अर्पिता की मां ने एक बातचीत में कहा भी कि वह जल्दी से जल्दी सफलता प्राप्त करना चाहती थी।

यह भी संभव है कि बहुत-सी लड़कियां उसे अपना आदर्श मान लें। जब सफलता ही सब कुछ है, चाहे वह किसी तरह प्राप्त की जाए, तो क्यों लोग ऐसी महिलाओं को आदर्श न मानें। बहुत-सी स्त्रियां स्त्रीवादी विचार के हर अच्छे नारे को अपने अपराध छिपाने के लिए बखूबी इस्तेमाल करती हैं। इसे अपना चुनाव और निजी मामला बताती हैं।

लगता तो यह भी है कि बहुत-सी लड़कियां अर्पिता को डाह की नजर से देख रही होंगी कि काश, जो मौका उसे मिला, उन्हें मिल सकता। वे भी पैसा, ताकत, राजनीति का आनंद ले सकतीं। अभी तो खैरियत है कि स्त्रीवादी विचार का सहारा अर्पिता ने नहीं लिया है।

वरना वह भी कह सकती है कि वह एक बेचारी औरत है। औरत होने के चलते उसे इस मामले में फंसाया गया है। मीडिया मर्दवादी है, इसीलिए उसकी बातों को बढ़ा-चढ़ा कर दिखा रहा है, आदि।

किसी विचार को अपराधी स्त्री-पुरुष कैसे अपने पक्ष में इस्तेमाल करते हैं, यह देख कर अक्सर हैरत होती है। हो सकता है कि कल को बहुत-सी स्त्रियां अर्पिता के पक्ष में भी आ खड़ी हों।

अच्छा-बुरा इन दिनों बहुत वस्तुपरक है। जो किसी के लिए बुरा है, उसे भी अच्छा कहने वाले और उसके पक्ष में तर्क देने वाले मिल ही जाते हैं। फिर इतनी बहस-मुबाहिसा, तर्क-वितर्क होते हैं कि असली बात खत्म-सी हो जाती है और जल्दी ही सब भूल जाते हैं।

यह तर्क भी काफी बेमानी-सा हो चला है कि औरतें बहुत ईमानदार होती हैं, कि सारी बेइमानियां उन्हें पुरुष ही सिखाते हैं। दरअसल, बेइमानी या ईमानदारी लिंग-भेद से परे होती है, वह सिर्फ निजी हित और स्वार्थों से ही जुड़ी होती है। हो सकता है, कल को औरों की तरह अर्पिता भी तमाम आरोपों से बरी कर दी जाए।

कोई प्रमाण ही न मिले। तृणमूल ने अपने आधिकारिक बयान में कहा भी कि भ्रष्टाचार के बारे में उसकी जीरो टालरेंस की नीति है। लेकिन यह भी तो है कि अगर मंत्री और अर्पिता के ठिकानों पर छापे न पड़ते तो यह सब ऐसे ही चलता रहता। ऐसा भी नहीं है कि किसी को इस बारे में कुछ मालूम ही नहीं होगा।

वैसे भी एक मंत्री और उसकी सहयोगी की इतनी हिम्मत भी कैसे हो सकती है कि वे अकेले-अकेले ही सारा माल डकार जाएं और किसी को कानों-कान खबर न हो। अभी तो क्या पता कि इस देश में ऐसे और कितने लोग हैं। जिधर देखो उधर काजल की कोठरी नजर आती है। भले हम सत्यमेव जयते और ईमानदारी का नारा लगाते रहें, भारत भ्रष्टाचार के मामले में अग्रणी देश है।


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