मुझे स्मरण है कि वर्ष 2013 की केदारनाथ की भीषण आपदा के समय नरेन्द्र मोदी गुजरात के मुख्यमंत्री थे और उन्होंने पीड़ितों की सहायता एवं आपदा प्रबंधन में जैसी तत्परता दिखाई थी, वह अभूतपूर्व और आश्चर्यचकित करने वाली थी। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के जीवन का कुछ कालखंड हिमालय में भी व्यतीत हुआ है और ऐसा प्रतीत होता है कि उनकी दृढ़ इच्छाशक्ति और शुभ कर्म संलग्नता के मूल में हिमालय में अवस्थित देवात्माओं का दिव्य आशीर्वाद सन्निहित है। कोरोना के भीषण संकट काल में उन्होंने जिस कुशलता से देश का नेतृत्व किया और कोरोना योद्धाओं एवं विज्ञानियों को प्रोत्साहित किया, उसी के परिणामस्वरूप हम अपना स्वदेशी टीका बनाने में सफल रहे। देश में बने टीकों ने कोरोना से लड़ाई में अभूतपूर्व योगदान दिया है। नोटबंदी के समय अथवा जम्मू-कश्मीर में अनुच्छेद 370 और धारा 35-ए की समाप्ति के संदर्भ में लिया गया उनका साहसिक निर्णय भी अभूतपूर्व था। एक प्रधानमंत्री के रूप में लोगों से अपने मन की बात करके सीधा और प्रभावी संवाद स्थापित करना भी उच्चस्तरीय लोकतांत्रिक व्यवस्था को रेखांकित करता है।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने राष्ट्र हित में अनेक श्रेष्ठ कार्य किए हैं और अब इसी क्रम में आचार्य शंकर की समाधि और प्रतिमा की स्थापना भारतीय संस्कृति-संस्कार और उसकी दिव्य संवेदनाओं एवं संसार की आद्य सभ्यता का जयघोष ही है। ऐसी विलक्षण अभिप्रेरणा और समायोजन दृढ़संकल्प और दैव सत्ता की सम्मति के बिना असंभव है।
आज विश्व के समक्ष बढ़ती जनसंख्या, पर्यावरण क्षरण, ग्लोबल वार्मिग, जलवायु परिवर्तन और पारस्परिक संघर्ष की जो स्थितियां बनी हुई हैं, उनका एकमात्र समाधान आदि शंकराचार्य द्वारा प्रतिपादित अद्वैत दर्शन ही है। हमारे पूर्वज ऋषि प्रकृति के गूढ़ रहस्य को समझकर इस निष्कर्ष पर पहुंचे कि मनुष्य और अन्य पर्यावरणीय घटकों के पारस्परिक सहकार-संतुलन एवं सहअस्तित्व में ही हमारा जीवन सुरक्षित है। यदि समष्टि में असंतुलन है, धरा, अंबर, जल, वायु आदि दूषित हैं तो मनुष्य अकेले सुखी कैसे हो सकता है? इसलिए हमारी प्रार्थनाओं में सर्वत्र शांति की बात की गई है। आचार्य शंकर द्वारा प्रतिपादित अद्वैत मत मनुष्य और प्रकृति के मध्य परस्पर एकत्व और सामंजस्य के इसी रहस्य को उद्घाटित करता है।
वस्तुत: रूप, गुण-धर्म, प्रकृति और अन्य सभी पारिस्थितिक विषमताओं के बाद भी हमारे मूल में एक ही तत्व विद्यमान है, जिसे 'ब्रrा' अथवा 'आत्म तत्व' कहा जाता है। आत्मा का वही अविनाशी स्वरूप हमें जाति, धर्म, संस्कृति आदि की विभिन्नताओं और वैविध्य के बाद भी एकत्व प्रदान करता है। संसार के समस्त प्राणियों के भीतर वही एक अविनाशी तत्व विद्यमान है। इस अवबोध के बाद हमारा पारस्परिक विद्वेष-संघर्ष स्वत: समाप्त हो जाएगा। सबका हित, सबकी प्रगति, सबका कल्याण और सर्वत्र समता का भाव ही आचार्य शंकर के अद्वैत दर्शन की प्रमुख विशेषता है। प्रचंड भोगवाद और पारस्परिक संघर्ष से जूझ रहे इस विश्व में अद्वैत का दिव्य विचार ही शांति-सामंजस्य और सद्भाव की स्थापना कर सकता है। इस दृष्टि से आचार्य शंकर के विचारों का प्रसार मानव कल्याण हेतु उच्चतम प्रतिमानों की संस्थापना ही है। आज संपूर्ण राष्ट्र इस बात से गौरवान्वित है कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी इस तथ्य को लेकर जागरूक और संवेदनशील हैं। भारतीय अध्यात्मिक जगत की प्राणस्थली हिमालय के तुंग शिखर पर विद्यमान श्री केदारनाथ धाम में आचार्य भगवान आदि शंकराचार्य की समाधि का निर्माण एवं भव्य प्रतिमा की स्थापना इसी सत्य को परिपुष्ट करता है। भारत की संस्कृति प्रकाश के विस्तार की संस्कृति है। अपनी उदार भावना से संपूर्ण विश्व को एक करना और जलवायु परिवर्तन, ग्लोबल वार्मिग आदि पर्यावरणीय आदि विभीषिकाओं का आध्यात्मिक समाधान प्रस्तुत करना ही भारत का मूल सांस्कृतिक उद्देश्य है।
भारत का साफ्ट पावर, योग-आयुर्वेद, आर्ष विद्या और आद्य शंकराचार्य के अद्वैत के विचार द्वारा समग्र विश्व को अनेक समकालीन संकटों से छुटकारा दिलाया जा सकता है। इस दृष्टि से भारत की आध्यात्मिक जीवन पद्धति के प्रसार का संकल्प बहुत ऐतिहासिक है। भारत के शीर्षस्थ संत-सत्पुरुष और सनातन जगत प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के प्रति आभार व्यक्त करते हैं।
(लेखक श्रीपंचदशनाम जूना अखाड़ा के आचार्य महामंडलेश्वर एवं हरिद्वार आश्रम, कनखल के पीठाधीश्वर हैं)