न्याय के फैसले में अन्याय
अगर ये दौर आज का नहीं होता, तो इस घटना पर देश का विवेक कठघरे में खड़ा नजर आता
अगर ये दौर आज का नहीं होता, तो इस घटना पर देश का विवेक कठघरे में खड़ा नजर आता। लेकिन आज जब किसी को भी किसी इल्जाम में जेल में डाल देना आम हो गया है, तो इस पर कोई हैरत नहीं होती कि इस घटना पर कोई चर्चा नहीं हुई है। लेकिन मुद्दा गंभीर है। सवाल यह है कि क्या किसी जिंदगी की इस देश में कोई कीमत है या नहीं? अगर किसी से उसकी जिंदगी के 20 वर्ष गलत ढंग से छीन लिए गए हों तो आखिर उसके लिए मुआवजा क्या होगा? उसके साथ हुए अन्याय के लिए इंसाफ क्या होगा? घटना यह है कि बलात्कार के एक मामले में एक व्यक्ति को गलती से दोषी ठहरा दिया गया। उत्तर प्रदेश के ललितपुर के 43 वर्षीय व्यक्ति को 20 साल की जेल की सजा काटने के बाद अब जाकर इलाहाबाद हाई कोर्ट ने बरी किया है। एससी/एसटी एक्ट के तहत बलात्कार के आरोप में दोषी ठहराए जाने के बाद यह व्यक्ति सालों से आगरा की जेल में बंद था।