पाक का अमानवीय रवैया

तालिबान के राज में अफगानिस्तान को विदेशी मदद बंद होने से अब सूखे की मार पड़ी है। देश की आधे से ज्यादा आबादी इसकी चपेट में आ चुकी है। हालात इतने खराब हो गए हैं

Update: 2021-11-06 02:07 GMT

आदित्य नारायण चोपड़ा: तालिबान के राज में अफगानिस्तान को विदेशी मदद बंद होने से अब सूखे की मार पड़ी है। देश की आधे से ज्यादा आबादी इसकी चपेट में आ चुकी है। हालात इतने खराब हो गए हैं कि भुखमरी से बचने के लिए अफगानिस्तान के गरीब तबके के लोग अपनी बेटियों को बेचने के लिए मजबूर हैं। भुखमरी से बचने के लिए शादी के नाम पर छोटी उम्र में बेची जा रही बच्चियों की कीमत दो से ढाई लाख रुपए लगाई जा रही है। जब से तालिबान ने सत्ता सम्भाली है तब से ही बिजली की कमी, खाने-पीने की चीजों की कमी, चौपट होते धंधे, बेरोजगारी और चौबीस घंटे की दहशत, ये अब राेज की जिन्दगी का हिस्सा बन गई हैं। अगर​ जिन्दगी यूं ही चलती रही तो महिलाएं अपने बच्चों को मार कर अपनी जान दे देंगी। अफगानिस्तान आम गरीबी की ओर बढ़ रहा है। आम गरीबी से मतलब है कि जहां सभी लोग गरीब हों। संयुक्त राष्ट्र विकास एजैंसी के अनुसार अब से एक साल के भीतर अफगानिस्तान में गरीबी की दर 98 फीसदी तक पहुंच जाएगी। देश की चार करोड़ की आबादी में से आधे भुखमरी के कगार पर हैं। वर्ल्ड फूड प्रोग्राम के तहत संयुक्त राष्ट्र को हर महीने डेढ़ अरब रुपए अफगानिस्तान में खाद्य पदार्थ बांटने के लिए चाहिए। अफगानिस्तान को विदेशी सहायता इस​िलए नहीं मिल रही क्योंकि दानदाताओं को तालिबान शासन पर भरोसा नहीं।संकट की इस घड़ी में भारत अफगानिस्तान को मानवीय आधार पर मदद देने को तैयार है। भारत सरकार ने 50 हजार मीट्रिक टन गेहूं अफगानिस्तान भेजने का फैसला किया है। केन्द्र सरकार ने पाकिस्तान के रूट से गेहूं के ट्रक भेजने की अनुमति देने के​ लिए पाकिस्तान की इमरान सरकार को पत्र भेजा था लेकिन पाकिस्तान की इमरान सरकार भारत के आग्रह को न तो स्वीकार कर रही है और न ही इंकार कर रही है। पाकिस्तान अपनी घटिया मानसिकता का परिचय दे रहा है। उसे लगता है कि इससे अफगानिस्तान के लोगों में भारत के प्रति सद्भाव पैदा हो सकता है। अफगानिस्तान के लोगों के लिए बहुत कुछ करने की जरूरत है। 50 हजार मीट्रिक टन गेहूं को पहुंचाने के लिए 5 हजार ट्रकों की जरूरत पड़ेगी जो भारत वाया पाकिस्तान भेजना चाहता है। पाकिस्तान जिसने अफगानिस्तान में तालिबान की जीत पर जश्न मनाया था, वह चाहता ही नहीं कि संकट के इस दौर में भारत की कोई मदद लोगों तक पहुंचे। दूसरी ओर अफगानिस्तान पर भारत द्वारा राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार स्तर की बातचीत आयोजित करने के सवाल पर पाकिस्तान के एनएसए मोईद यूसुफ ने इस बातचीत में शामिल होने से इंकार कर दिया है। भारत के राष्ट्रीय सलाहकार अजित डोभाल की 10 से 13 नवम्बर के बीच अफगानिस्तान को लेकर बातचीत होने जा रही है। इस बातचीत में रूस, ईरान, उज्बेकिस्तान और ताजिकिस्तान काे भी न्यौता दिया गया है। दरअसल पाकिस्तान तालिबान के मामले में खुद अपने ही बुने जाल में फंसता जा रहा है। अफगानिस्तान में सर्दियों की शुरूआत हो चुकी है और आने वाले दिनों में हालात और मुश्किल होने वाले हैं। खुद आर्थिक मोर्चे पर कंगाल हुआ पाकिस्तान अफगानिस्तान की क्या मदद करेगा। पाकिस्तान तो अफगानिस्तान को मानवीय आधार पर मिलने वाली सहायता में भी अडं़गे लगा रहा है।संपादकीय :पेट्रोल-डीजल के दाम में कमीजग-मग दीपावली का सन्देशसदस्यों को दिवाली का तोहफा... Meradocतेजी से सुधरती अर्थव्यवस्थाजिन्ना के मुरीद अखिलेशग्लासगो कॉप सम्मेलन से उम्मीदेंप्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने रोम में अफगानिस्तान के मुद्दे पर कहा था कि दुनिया इस इलाके को अलग-थलग करके नहीं देखती। युद्धग्रस्त इस देश से जुड़ी और यहां जन्म लेने वाली किसी भी तरह की धमकी और खतरों काे लेकर अन्तर्राष्ट्रीय समुदाय को सचेत रहना चाहिए। अफगानिस्तान में पैदा हुई समस्या के मूल कारणों को समझा जाना जरूरी है, ये मुख्य रूप से आतंकवाद, चरमपंथ और उग्रवाद हैं, इसके परिणामों का सावधानीपूर्वक आकलन करना चाहिए। उधर तालिबान को लेकर ईरान और पाकिस्तान में तनाव बढ़ रहा है। ईरान न केवल तालिबान से आशंकित है बल्कि अफगानिस्तान में पाकिस्तान के बढ़ते प्रभाव को लेकर भी चिंतित है। अफगानिस्तान की गरीबी का एक नतीजा और भी खतरनाक हो सकता है। आईएसआईएस जैसा दुर्दांत आतंकी संगठन अफगानिस्तान में जड़ें जमा चुका है। उसके​ लिए मौजूदा माहौल काफी फायदेमंद साबित हो सकता है। ऐसी स्थिति में हो सकता है कि कम उम्र के लड़के और युवा आतंकी गुटों में शामिल हो जाएं। छोटी बच्चियों का यौन शोषण बढ़ जाए। मानवीय दृष्टि से ऐसे हालात आज के समय विश्व के​ लिए स्वीकार्य नहीं हो सकते। यद्यपि तालिबान सरकार ने भुखमरी से निपटने के​ लिए काम के बदले अनाज की योजना शुरू की है। मजदूरों को पैसों की बजाय गेहूं दिया जा रहा है लेकिन सरकारें पैसे से चलती हैं। तालिबान ऐसा कितने दिन चला पाएगा। जब भी लोकतंत्र ढहता है तो अवाम का बुरा हश्र होता है। सि​िवल सेवाएं ठप्प हो चुकी हैं, बैंक बंद हो चुके हैं। शादियों के नाम पर महिलाओं को गुलाम बनाया जा रहा है। वैश्विक ताकतों को चाहिए कि पाकिस्तान के शर्मनाक रवैये को देखते हुए उस पर भी पाबंदियां लगाए और उसे हाशिये पर धकेल खुद एकजुट होकर वहां के लोगों की मदद की जाए।


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