हिमाचल के उपचुनावों पर आंख है और राख की आशंका भी, इसलिए सत्ता के राष्ट्रीय फलक से शुरू हुआ इम्तिहान किसी दूर दराज क्षेत्र या प्रदेश की भौगोलिक परिस्थिति से भी मुखातिब होगा। जिस तरह भाजपा के उम्मीदवारों की घोषणा ने पार्टी कार्यकर्ताओं-नेताओं के सब्र के बांध तोड़े हैं, वहां कई पन्ना प्रमुखों तक मतदाता सूचियों के फटने का अंदेशा बढ़ जाता है। कांग्रेस भी अर्की की फिजा में ज़हर घोलते आक्रोश का सामना कर रही है, लेकिन भाजपा की भीतरी तहों का फसाद कहीं ज्यादा व्यापक व गहरा दिखाई दे रहा है। उम्मीदों की पांत में बैठे कई संभावित उम्मीदवार अब गहन सदमे में हैं, तो रत्तीभर आक्रोश भी घातक अंजाम तक पहुंचा सकता है। फतेहपुर उपचुनाव में उतारे गए बलदेव ठाकुर के लिए यह इम्तिहान कितना कठिन होगा, इसका अंदाजा भाजपा के मंडल में मची अफरातफरी से लगाया जा सकता है। करीब चालीस पदाधिकारी किनारा करके बैठ गए। उधर जुब्बल-कोटखाई से चेतन बरागटा ने अपने भीतर निर्दलीय उम्मीदवार का गुब्बार भरकर भाजपा के गुब्बारे पर निशाना साधा है। जुब्बल-कोटखाई विधानसभा क्षेत्र में फैली धुंध के बीच से खतरे के बादलों से भाजपा कैसे निपटेगी, यह काफी मशक्कत भरा कार्य है। अर्की से पूर्व विधायक गोविंद राम शर्मा के तेवर इतने तल्ख हैं कि भाजपा के घोषित उम्मीदवार के लिए कांटे ही कांटे नजर आते हैं।
ऐसे में भाजपा के लिए जीत की महत्त्वाकांक्षा का झगड़ा अपनी ही सेना से है या विधानसभा के तीन उपचुनावों की तैयारी करते-करते आज हालत यह है कि आधिकारिक प्रत्याशियों के खिलाफ न केवल कांग्रेस है, बल्कि अपनों का गुस्सा कहीं अधिक नुकसानदेह साबित हो सकता है। सत्ता के भीतर अनुशासनहीनता के दाग इन उपचुनावों को उद्दंड बना देते हैं या पार्टी अपनी ढीली पड़ गई पगड़ी को फिर से कस लेगी, यह देखना होगा। यह दीगर है कि सत्तारूढ़ होते ही पार्टियांे में नेता बढ़ जाते हैं और हर कोई सत्ता लाभ का पद पाना चाहता है। सीमित अवधि के प्रचार की वजह से ये चार उपचुनाव संघर्ष की परिपाटी बढ़ा देते हैं। इसमें मंडी की दास्तान पूरी तरह से भिन्न है, जहां सैन्य पृष्ठभूमि से उम्मीदवार खोजकर भाजपा ने मुकाबले के सुर बदलने की कोशिश की है। यहां भाजपा के पक्ष में सत्ता का प्रश्रय, प्रोत्साहन व प्रशंसा का इंतजाम है। तरक्की के कई सबूत, शिलान्यास व उद्घाटन समारोह शिरकत करेंगे। सीधे मुकाबले में कांग्रेस की उम्मीदवार प्रतिभा सिंह बनाम खुशाल चंद के बीच चुनावी साफगोई को प्रमाणित करने का एक जैसा मकसद और मेहनत दिखाई देती है। यह एक उपचुनाव नहीं, बल्कि भाजपा व कांग्रेस के मध्य की वास्तविकता है। भाजपा की चुनावी गति मंडी से निकलकर अर्की, जुब्बल-कोटखाई और फतेहपुर तक कितनी तीव्रता से भीतरी विद्रोह को कुंद कर पाती है, यह मुद्दों के बजाय व्यक्तिगत दावों का खेल है। हिमाचल के उपचुनाव कितने बड़े हैं, इसका अंदाजा सिर धड़ की बाजी लगा रही भाजपा के लिए और खुद को आजमा रही कांग्रेस के लिए एक समान है।
पड़ोस पंजाब व उत्तराखंड में कांग्रेस के दावों का मूल्यांकन हिमाचल के इन उपचुनावों में होगा। इस तरह ये उपचुनाव प्रत्याशियों के भीतर पसंद-नापसंद देखने के साथ राष्ट्रीय राजनीति में किसी एक दल का उद्धार कर सकते हैं। रणनीतिक तौर पर कांग्रेस का घर अपनी दरारें नहीं दिखा रहा, जबकि भाजपा के भीतर झांकना कहीं न कहीं फतेहपुर व जुब्बल-कोटखाई में आसान हो रहा है। विडंबना यह है कि चुनावों में आम नागरिक व विपक्ष की भूमिका में भी पार्टियों की चुनौती कहीं अंदरूनी है। भाजपा को इन उपचुनावों में न केवल अनुकूल परिणामों की जरूरत कहीं अधिक है, बल्कि पार्टी के भीतर अनुशासित कार्यकर्ताओं व नेताओं की स्वार्थी इच्छाओं को भी शांत बनाए रखने की चुनौती है। ये उपचुनाव आगामी विधानसभा चुनावों से पहले की फेहरिस्त का मुआयना साबित होंगे और उस गणना का हिसाब भी कि भाजपा मिशन रिपीट के लिए कुनबे में बिखराव को रोक सके।
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