भारतीय सेना और कारगिल-2

भारत सरकार ने 3 मई के बाद की सेना की अलग-अलग कार्रवाई तथा रिपोर्ट से दुश्मन की हर तरह की जानकारी हासिल की, जिसमें कारगिल की पहाडि़यों पर पहुंच चुके पाकिस्तानी घुसपैठियों के नापाक इरादों को देखते हुए 26 मई को भारतीय वायु सेना को कार्रवाई के आदेश दिए गए और इसके दौरान मिग 27 और मिग 29 का इस्तेमाल किया गया

Update: 2022-07-15 18:58 GMT

भारत सरकार ने 3 मई के बाद की सेना की अलग-अलग कार्रवाई तथा रिपोर्ट से दुश्मन की हर तरह की जानकारी हासिल की, जिसमें कारगिल की पहाडि़यों पर पहुंच चुके पाकिस्तानी घुसपैठियों के नापाक इरादों को देखते हुए 26 मई को भारतीय वायु सेना को कार्रवाई के आदेश दिए गए और इसके दौरान मिग 27 और मिग 29 का इस्तेमाल किया गया। भारतीय सेना ने पाकिस्तानियों को देश की सीमा से बाहर खदेड़ने की इस कार्रवाई को ऑपरेशन 'विजय' का नाम दिया। पाकिस्तान की सेना और कश्मीरी उग्रवादियों ने भारत और पाकिस्तान के बीच की नियंत्रण रेखा पार करके भारत की जमीन पर कब्जा करने की नापाक कोशिश की थी, पर पाकिस्तान ने दावा किया था कि लड़ने वाले सभी कश्मीरी उग्रवादी हैं, लेकिन युद्ध में बरामद हुए दस्तावेजों और पाकिस्तानी नेताओं के बयानों से साबित हुआ कि पाकिस्तान की सेना प्रत्यक्ष रूप से इस युद्ध में शामिल थी। भारतीय थल सेना और वायु सेना ने पाकिस्तान पर हमला करके धीरे-धीरे अंतरराष्ट्रीय सहयोग से पाकिस्तानी सेना को सीमा पार वापस जाने को मजबूर किया।

ऊंचाई वाले इलाके पर होने वाले इस युद्ध में दोनों देशों की सेनाओं को काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ा। इस युद्ध के दौरान पाकिस्तानी सैनिक, जो घुसपैठियों और कश्मीरी उग्रवादियों के भेष में थे, वे ऊंचाई वाले स्थान पर बैठे होने की वजह से भारतीय सेना की हर कार्रवाई को प्रभावित कर रहे थे। भारतीय सेना को नीचे से ऊपर चढ़ते हुए उनको बंकरों से बाहर निकालना था जो वास्तव में ही एक बड़ा ही मुश्किल और जोखिम भरा काम था। अगर युद्ध के बाद के आंकड़ों को देखें तो पाकिस्तान के करीब 5000 घुसपैठियों को निकालने के लिए भारतीय सेना के लगभग 30 हजार सैनिकों को मशक्कत करनी पड़ी, जबकि इस दौरान भारतीय सेना के लगभग 500 सैनिक शहीद हुए और 1300 के करीब घायल हुए। इसके विपरीत पाकिस्तान अंतरराष्ट्रीय स्तर पर ग़लत आंकड़े बताता रहा, पर उनके करीब 700 सैनिक इस युद्ध में मारे गए और हजारों की संख्या में घायल हुए।
पाकिस्तानी सेना ने अपने युद्ध में मारे गए सैनिकों के पार्थिव शरीर को भी लेने से मना कर दिया, जिसे भारतीय सेना ने पूरे सैन्य सम्मान के साथ अंतिम विदाई दी। कारगिल एक ऐसा युद्ध था जिसे भारतीय सेना ने विपरीत परिस्थितियों में देश की रक्षा के लिए अपना सर्वोच्च लगाकर अदम्य साहस, कुशल रणनीति और बढि़या ट्रेनिंग का प्रमाण देते हुए, डोमिनेटिंग हाइट पर बैठे हुए पाकिस्तानी सैनिकों को नाकों चने चबवा दिए और भारतीय क्षेत्र को छोड़ने के लिए मजबूर कर दिया। इस युद्ध को नजदीक से देखने वाले तथा इसका सही आकलन करने वाले विदेशी रणनीतिकारों ने भी भारतीय सेना के इस तरह के रण कौशल की तारीफ की जिसमें भारतीय सेना ने सिद्ध कर दिया कि जब बात देश की सीमाओं एवं मातृभूमि की सुरक्षा और देशभक्ति की आती है तो भारतीय सैनिकों को किसी भी तरह की बाधाएं या मुश्किलें अपना कर्त्तव्य निर्वहन के लिए रोक नहीं सकती। इस युद्ध में शहीद हुए सैनिकों की अगर उम्र देखी जाए तो ज्यादातर शहीद 19 से 25 साल की उम्र के थे। यह संख्या इस उम्र में देशभक्ति का सर्वोपरि जज्बा रखने वाले किसी भी देश के सैनिकों से कहीं ज्यादा है।
कर्नल (रि.) मनीष
स्वतंत्र लेखक

By: divyahimachal


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