हाल ही में टाटा संस के पूर्व अध्यक्ष साइसर मिस्त्री की कार दुर्घटना में हुई मृत्यु ने सडक़ दुर्घटना और खतरनाक सडक़ों को लेकर बहस छेड़ दी है। अनेक कारणों से हमारे राजमार्ग दुर्घटनाओं के लिए संवेदनशील जगह बनते जा रहे हैं। देश में दिनों-दिन सडक़ दुर्घटनाओं में वृद्धि होती जा रही है, जो बहुत ही चिंता का विषय है। देश में सडक़ दुर्घटनाओं से जुड़े आंकड़े रौंगटे खड़े कर देते हैं। एक रिपोर्ट के मुताबिक साल 2020 में सडक़ हादसों की चपेट में आने वालों में 18-45 साल के आयु वर्ग वाले युवा वयस्कों का हिस्सा 69 प्रतिशत था, जबकि 18-60 वर्ष के कामकाजी आयु वर्ग के लोगों की हिस्सेदारी कुल सडक़ दुर्घटनाओं में 87.4 प्रतिशत थी। 2021 में भारत में सडक़ दुर्घटनाओं की गंभीरता 38.6 रही (प्रति सौ दुर्घटनाओं में मृत्यु), जबकि 2020 में यह आंकड़ा 37.5 था। दुर्घटना की गंभीरता सडक़ दुर्घटना के घातक होने के जोखिम को बताती है। कहने का अर्थ है कि सडक़ दुर्घटना जितनी गंभीर होगी, उसमें मृत्यु होने का जोखिम भी उतना ही अधिक होगा। आम तौर पर सडक़ हादसों में घायलों की संख्या मृतकों से ज्यादा होती है। लेकिन बीते वर्ष मिजोरम, पंजाब, झारखंड और उत्तर प्रदेश में मृतकों की संख्या घायलों से अधिक रही। बीते वर्ष सबसे अधिक सडक़ हादसे दोपहिया वाहनों के कारण हुए, जिनमें 69240 जानें गईं, जो सडक़ हादसों में जान गंवाने वालों का 44.5 प्रतिशत रहा। दोपहिया के बाद कार हादसों ने 23531 लोगों और ट्रक/लॉरी से हुई दुर्घटनाओं ने 14622 जिंदगियां छीन लीं और इन दोनों का प्रतिशत क्रमश: 15.1 और 9.4 रहा। सडक़ों के आधार पर यदि सडक़ दुर्घटनाओं को देखा जाए तो राष्ट्रीय राजमार्ग सर्वाधिक घातक साबित हुए हैं। बीते वर्ष हुए कुल सडक़ हादसों के 30.3 प्रतिशत के लिए राष्ट्रीय राजमार्ग जिम्मेदार रहे हैं। वहीं राज्य राजमार्गों पर 23.9 प्रतिशत दुर्घटनाएं दर्ज हुईं। खतरनाक/लापरवाह ड्राइविंग या ओवरटेकिंग के कारण उत्तर प्रदेश में सर्वाधिक (11479) लोगों की जान गई।
इसके बाद राजस्थान का स्थान रहा जहां 4299 लोगों ने इन कारणों से अपनी जानें गंवाई। रिपोर्ट में यह भी बताया गया कि साल 2020 में ट्रैफिक नियम उल्लंघन की श्रेणी के तहत ओवर स्पीडिंग के तहत 69.3 फीसदी लोगों की मौत हुई, जबकि गलत दिशा में गाड़ी चलाने से हुए हादसे में 5.6 फीसदी लोगों की जान गई। सडक़ दुर्घटना से जुड़ी एक और रिपोर्ट बताती है कि 2020 में 30.1 प्रतिशत मौतें और 26 प्रतिशत चोटें हेलमेट का इस्तेमाल नहीं करने के कारण हुईं। इसी तरह 11 प्रतिशत से अधिक मौतें और चोटें सीट बेल्ट का उपयोग नहीं करने के कारण हुईं। कुछ छूटों को छोडक़र दोपहिया वाहनों पर सभी मोटर चालकों के लिए हेलमेट अनिवार्य है। लेकिन कई बार लोग बिना हेलमेट के ही गाड़ी चलाते हैं और अपनी जान जोखिम में डालते हैं। इसी तरह से कार चालक और कार में सवार यात्रियों के लिए भी सीट बेल्ट लगाना जरूरी है। इसका मतलब है कि सडक़ हादसों के लिए हमारी ट्रैफिक नियमों के प्रति बेपरवाही काफी हद तक जिम्मेवार है। विश्व बैंक के अनुसार सडक़ दुर्घटनाओं के कारण भारतीय अर्थव्यवस्था को सालाना सकल घरेलू उत्पाद के पांच से सात प्रतिशत का नुकसान उठाना पड़ता है, क्योंकि देश में सडक़ दुर्घटनाओं में मारे जाने वाले व्यक्तियों में से लगभग 84 प्रतिशत 18 से 60 वर्ष के कामकाजी लोग होते हैं। इतना ही नहीं, देश में होने वाले सडक़ हादसों का बहुत अधिक बोझ गरीब परिवारों पर पड़ता है क्योंकि हताहत होने वाले 70 प्रतिशत से अधिक लोग इन्हीं परिवारों से आते हैं। आय के खत्म हो जाने और इलाज में अत्यधिक खर्च आने के कारण इन परिवारों की आर्थिक-सामाजिक स्थिति बहुत प्रभावित होती है। सडक़ हादसों में घायल होने का सर्वाधिक प्रभाव निम्न व मध्यम आय वाले देशों पर पड़ता है।
ऐसे में ट्रॉमा केयर को बेहतर बनाकर इस तरह की मौतों में वैश्विक स्तर पर कमी लाई जा सकती है। ट्रॉमा सिस्टम को तैयार करके और उसका सुचारू तरीके से उपयोग करके निम्न-मध्यम आय वाले देशों में दुर्घटनाओं से होने वाली मौतों में कमी लाई जा सकती है। सभी निम्न-मध्यम आय वाले देशों में पूरी तरह व्यवस्थित ट्रॉमा सिस्टम के संचालन से दो लाख से अधिक लोगों की जान बचाई जा सकती है। सभी निम्न-मध्यम आय वाले देशों के सडक़ हादसों में घायल 50 प्रतिशत लोगों को ट्रॉमा सेंटर की सुविधा उपलब्ध कराकर 75000 लोगों का जीवन बचाया जा सकता है। सभी निम्न-मध्यम आय वाले देशों के सडक़ हादसों में घायल 50 प्रतिशत लोगों को ट्रॉमा टीम की सुविधा यदि उपलब्ध करा दी जाए तो 60000 लोगों का जीवन बच सकता है। वैश्विक स्तर पर सडक़ दुर्घटनाओं के प्रमुख कारकों में शराब पीकर गाड़ी चलाना, हेलमेट न पहनना या खराब गुणवत्ता वाला हेलमेट पहनना, तेज गति से गाड़ी चलाना और सीट बेल्ट न लगाना शामिल हैं। इन लापरवाही भरी आदतों के कारण दुनियाभर में सडक़ दुर्घटनाओं में चोटिल होने और मृत्यु का खतरा निरंतर बढ़ता जा रहा है। उपरोक्त आदतों को बदल कर सडक़ दुर्घटनाओं में प्रतिवर्ष दुनियाभर में होने वाली लाखों मौतों को 25 से 40 प्रतिशत तक टाला जा सकता है। याद रहे इनसानी जिंदगी बहुत कीमती है, बेहतर है इस जिंदगानी की सुरक्षा के लिए हम सडक़ हादसों की गंभीरता को समझें और ट्रैफिक नियमों की पालना को हलके से न लें। कुछ महत्त्वपूर्ण सडक़ सुरक्षा नियम याद दिलाने जरूरी हैं।
सडक़ पर चलने वाले सभी लोगों को अपने बाएं तरफ होकर चलना चाहिए, खासतौर से चालक को और दूसरी तरफ से आ रहे वाहन को जाने देना चाहिए। चालक को सडक़ पर गाड़ी घुमाते समय गति धीमी रखनी चाहिए। अधिक व्यस्त सडक़ों और रोड जंक्शन पर चलते समय ज्यादा सावधानी बरतें। दोपहिया वाहन चालकों को अच्छी गुणवत्ता वाले हेलमेट पहनने चाहिएं, नहीं तो उन्हें बिना हेलमेट के रोड पर नहीं आना चाहिए। गाड़ी की गति निर्धारित सीमा तक ही रखें, खासतौर से स्कूल, हॉस्पिटल, कॉलोनी आदि क्षेत्रों में। सभी वाहनों को दूसरे वाहनों से निश्चित दूरी बनाकर रखनी चाहिए। सडक़ों पर चलने वाले सभी लोगों को रोड पर बने निशानों और नियमों की अच्छे से जानकारी हो। यात्रा के दौरान सडक़ सुरक्षा के नियम-कानूनों को दिमाग में रखें। अभिभावकों को अपने बच्चों को अतिरिक्त सावधान बनाना चाहिए और सडक़ को पार करने से पहले हर तरफ (बाएं और दाएं) देखने के बारे में सिखाना चाहिए। बच्चों को सडक़ पार करते हुए अपने बड़ों या दोस्तों का हाथ हमेशा पकड़े रहना चाहिए। उन्हें कभी भी सडक़ पर दौडऩा नहीं चहिए, माता-पिता का हाथ छोडऩा या जल्दी में नहीं होना चाहिए और धैर्य रखें। किसी भी वजह से उनका ध्यान न बंटे और सडक़ पर उन्हें अधिक सचेत होने की जरूरत है। सडक़ हादसों और चोट के मामलों की संख्या को कम करने के साथ ही सावधान और सुरक्षित होने के लिए सभी आयु वर्ग के लोगों के लिए सडक़ सुरक्षा बहुत जरूरी है।
डा. वरिंदर भाटिया
कालेज प्रिंसीपल
ईमेल : hellobhatiaji@gmail.com
By: divyahimachal