सुरजेवाला ने स्थिति सुधारने के चक्कर में पार्टी को एक हास्यास्पद स्थिति में ला कर खड़ा कर दिया यह कह कर कि पार्टी मुख्यमंत्री चन्नी और प्रदेश अध्यक्ष सिद्धू के नेतृत्व में चुनाव लड़ेगी. अभी तक तो यह ही देखा और सुना था कि या तो कोई भी पार्टी चुनाव के पूर्व किसी नेता को मुख्यमंत्री पद के चेहरे के रूप में प्रोजेक्ट नहीं करती है या फिर किसी एक नेता को प्रोजेक्ट किया जाता है, जैसे कि 2017 के चुनाव में अमरिंदर सिंह थे, पर अब पार्टी एक मुख्यमंत्री पद के लिय दो दावेदारों के साथ चुनावी मैदान में उतरेगी.
कांग्रेस के सामने दो समुदायों को एक साथ लेकर चलने की समस्या
कहते हैं कि शेर की सवारी करने से ज्यादा मुश्किल होता है उस पर से उतरना. उतरते ही शेर आप पर हमला भी कर सकता है. ऐसा ही कुछ कांग्रेस पार्टी के साथ हो रहा है. जाति का कार्ड खेल तो दिया, यह सोच कर कि एक दलित सिख मुख्यमंत्री और एक जट सिख प्रदेश अध्यक्ष, चुनाव में सभी विरोधियों की छुट्टी हो जायेगी. पर अब कांगेस पार्टी की परेशानी है कि अगर चन्नी को मुख्यमंत्री पद के दावेदार के रूप में पेश नहीं किया गया तो दलित सिख नाराज़ हो जाएंगे और अगर जट सिख सिद्धू को मुख्यमंत्री के रूप में प्रोजेक्ट नहीं किया तो जट सिख भड़क जाएंगे.
जट सिख वैसे ही अमरिंदर सिंह को हटाने के बाद से पार्टी से नाराज़ हो सकते हैं. अगर सिद्धू को मुख्यमंत्री के तौर पर प्रोजेक्ट नहीं किया तो उनका वोट किसी और विरोधी पार्टी को चला जाएगा. इस लिए पार्टी के महान नेता राहुल गांधी और पार्टी के विद्वान प्रवक्ता सुरजेवाला अब संयुक्त दावेदारी की बात गोलमोल तरीके से करने लगे हैं. आने वाला समय ही बतायेगा कि क्या पंजाब के मतदाता उतने ही मुर्ख हैं जितना कि कांग्रेस पार्टी उन्हें साबित करने में तुली है या फिर कांग्रेस पार्टी अपने ही बुने जाल में फंस जाएगी?
क्या कैप्टन अमरिंदर सिंह बिगाड़ देंगे कांग्रेस का खेल
कांगेस पार्टी की यह एकमात्र समस्या नहीं है. पार्टी ने वरिष्ट नेता अमरिंदर सिंह को मुख्यमंत्री पद से हटा तो दिया, क्योंकि वह दिल्ली दरबार में जी हुजूरी नहीं करते, पर अब पार्टी को यह चिंता सताने लगी है कि अमरिंदर सिंह कहीं कांग्रेस पार्टी का खेल ना बिगाड़ दें. अमरिंदर सिंह की लोकप्रियता में गिरावट जरूर आई थी, पर यह भी सच है कि अभी भी पंजाब में कांग्रेस पार्टी के वह सबसे बड़े और लोकप्रिय नेता हैं. सिद्धू और चन्नी को अगर मिला भी दें तो अमरिंदर सिंह के मुकाबले उनका वजन हलका ही रहेगा.
शनिवार को मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देने के बाद अमरिंदर सिंह ने यह स्पष्ट कर दिया था कि कांग्रेस पार्टी ने उनका अपमान किया है. पहले ही अमरिंद सिंह ने घोषणा की थी कि अभी उनका सक्रिय राजनीति से रिटायर होने का कोई इरादा नहीं है. सोमवर को चन्नी के शपथग्रहण समारोह, जिसमें पार्टी के बेताज बादशाह राहुल गांधी शामिल हुए, से अमरिंदर सिंह दूर रहे. अब कांग्रेस पार्टी को भय सताने लगा है कि कहीं अमरिंदर सिंह उनका खेल ना बिगड़ दें, जिस सम्भावना से अभी इनकार नहीं किया जा सकता है.
क्या होगा कैप्टन का अगला कदम
इतना तो स्पष्ट है कि अमरिंदर सिंह अकाली दल में शामिल नहीं होंगे. ऑपरेशन ब्लू स्टार के विरोध में वह 1984 में कांग्रेस पार्टी छोड़ कर अकाली दल में शामिल हो गए थे और 1992 में वह कांग्रेस पार्टी में वापस आये. पर इस बार अकाली दल से दूरी का कारण है कि अकाली दल सुखबीर सिंह बादल को मुख्यमंत्री प्रोजेक्ट करने का ऐलान कर चुकी है और अमरिंदर सिंह को अगर मुख्यमंत्री पद नहीं मिला तो वह अकाली दल में क्यों शामिल होंगे.
अमरिंदर सिंह के पास फ़िलहाल भारतीय जनता पार्टी या फिर आम आदमी पार्टी में शामिल होने का विकल्प है. दोनों पार्टियों को मुख्यमंत्री पद के लिए किसी बड़े नेता की तलाश है और उन्हें सहर्ष अमरिंदर सिंह का स्वागत करने में परहेज नहीं होगा, क्योंकि वह जिस भी दल में शामिल होंगे उसकी ताकत बढ़ जायेगी. बीजेपी में भी शामिल होना थोडा मुश्किल लग रहा है क्योंकि अमरिंदर सिंह उन नेताओं में शामिल हैं जिन्होंने कृषि कानूनों के विरोध में किसान आन्दोलन को बढ़ावा दिया था. जब तक बीजेपी कृषि कानूनों को वापस नहीं ले लेती तब तक अमरिंदर सिंह बीजेपी से दूर ही रहेंगे और कृषि कानूनों के मुद्दे पर बीजेपी झुकने को तैयार नहीं है.
क्या अपनी पार्टी बनाएंगे अमरिंदर सिंह
एक बीच का रास्ता निकल सकता है कि बीजेपी कृषि कानून में कुछ संशोधन करने को तैयार हो जाए, जिस स्थिति में अमरिंदर सिंह उसका क्रेडिट ले कर बीजेपी में शामिल हो सकते हैं. अगर ऐसा हुआ तो बीजेपी पंजाब चुनाव में एक बड़ी शक्ति बन जायेगी. आम आदमी पार्टी में शामिल होना भी एक विकल्प है, पर वहां भी समस्या कांग्रेस वाली ही है. राहुल गांधी की ही तरह आम आदमी के मुखिया और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को भी दरबारी नेता ही भाते हैं. पार्टी से कम से कम दर्ज़न भर बड़े नेताओं को इसी कारण या तो पार्टी से निकाल दिया गया या फिर वह आम आदमी पार्टी से दूर हो गए. उम्र के इस पड़ाव में अमरिंदर सिंह जैसा बड़ा नेता केजरीवाल को अपना नेता नहीं मानेगे. अगर उन्हें ऐसा ही करना होता तो फिर राहुल गांधी उन्हें मुख्यमंत्री पद से हटाते ही नहीं.
अपनी स्वयं की पार्टी गठित करने का विकल्प अमरिंदर सिंह के सामने है. समय कम है, पर यह संभव है. अगर उन्होंने ऐसा किया तो कांग्रेस पार्टी से नाराज़ कई दूसरे राज्यों के अन्य नेता भी अमरिंदर सिंह के साथ जुड़ सकते हैं. हताश और परेशान कांग्रेस पार्टी अब इसी प्रयास में जुटी है कि अमरिंदर सिंह कुछ ऐसा कदम नहीं उठाए जिससे पंजाब में पार्टी का टायर पंचर हो जाए.
कांग्रेस को अब भी कैप्टन से उम्मीद!
"कैप्टन अमरिंदर सिंह जी की अगुवाई में कांग्रेस पार्टी ने बेहतरीन काम किया और मुझे ये विश्वास है की कभी-कभी परिवार में छोटे-मोटे मतभेद हो जाते हैं, पर मुझे ये विश्वास है कि वो अपनी परिपक्वता का परिचय देंगे और उनका आशीर्वाद जो उन्होंने चरणजीत सिंह चन्नी को कल दिया है, कांग्रेस की सरकार पर और समर्थन पर इसी प्रकार बना रहेगा." सुरजेवाला का यह कहना अपने आप में बहुत कुछ कह जाता है.
किसी को बेआबरू करके फिर उस नेता से आशीर्वाद और समर्थन की आस सिर्फ कांग्रेस पार्टी ही कर सकती है. किसी नेता को किसी पद से हटाने का अधिकार पार्टी को होता है पर ऐसी फजीहत किसी और दल में नहीं होती. कांग्रेस पार्टी अमरिंदर सिंह से परिपक्वता की उम्मीद कर रही है, जिस परिपक्वता का परिचय खुद कांग्रेस पार्टी ने नहीं दिया. अगर कांग्रेस पार्टी के अपरिपक्व नेताओं ने परिपक्वता दिखाई होती तो अब तक पंजाब में समस्या उलझने की जगह सुलझ चुकी होती.