कश्मीर में किस तरह अलगाववाद की आग को दी जाती है हवा और कैसे युवाओं को इसमें धकेलने की करते हैं कोशिश

कश्मीर का जिक्र हो और वहां मंदिरों के ध्वंस व अलगाववाद की सुलगती आग की चर्चा न हो, ऐसा संभव नहीं।

Update: 2021-05-30 05:25 GMT

जनता से रिश्ता वेबडेस्क। अमित तिवारी। कश्मीर का जिक्र हो और वहां मंदिरों के ध्वंस व अलगाववाद की सुलगती आग की चर्चा न हो, ऐसा संभव नहीं। मजहब के आधार पर भेद करते और दूसरों पर पत्थर बरसाते युवाओं की तस्वीरें आंखों से ओझल नहीं हो पाती हैं। इन सबके बीच कुछ लोग इस मजहबी आग को लगातार बुझाने की कोशिश भी करते रहे हैं। लेखक रजत मित्रा का उपन्यास 'एक काफिर मेरा पड़ोसीÓ इन्हीं वैचारिक झगड़ों के बीच पिसते अलग-अलग पात्रों की कहानी है।

लेखक ने एक ब्राह्मण युवक आदित्य नारायण के इर्द-गिर्द अपने उपन्यास की कहानी को बुना है। आदित्य पीढिय़ों पहले कश्मीर में ध्वस्त कर दिए गए अपने पूर्वजों के मंदिर का जीर्णोद्धार करने वहां जाता है। ठीक इसी समय कश्मीर में एक पीढ़ी और तैयार हो रही है, जिसे कुछ मौलाना मजहबी नफरत की घुट्टी पिला रहे हैं और काफिर को हर हाल में खत्म कर देने की सीख दे रहे हैं। इन सभी के बीच बच्चे को अलगाववाद की आंधी में फंसता देख रहे पिता की विवशता, दो मजहब के पाटों में फंसी प्रेम कहानी और समाज के अलग-अलग वर्गों की जद्दोजहद को भी बहुत सलीके से कहानी का हिस्सा बनाया गया है। साथ ही छुआछूत पर भी चोट करने का प्रयास किया गया है।
कहानी कहीं भी किसी समुदाय विशेष पर निशाना साधती नहीं दिखती है और यही संतुलन इसकी खूबसूरती है। लेखक ने हर बात को बखूबी पिरोया है। पात्रों की मनोदशा व परिस्थितियों को दिखाने के लिए रचे गए घटनाक्रम भी अपनी सहजता से आकर्षित करते हैं। यह उपन्यास एक साथ कई आयामों और भावों को समझने का मौका देता है। कश्मीर में किस तरह अलगाववाद की आग को हवा दी जाती है और कैसे कुछ लोग युवाओं को इसमें धकेलने की कोशिश करते हैं, इसकी झलक भी इसमें साफ होती है।


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