कैसे हिंदुस्तानी हो भई?
भारत में ‘जयचंद’,‘भस्मासुर’ और ‘काली भेड़’ की जमात हमेशा रही है। यह सिर्फ उदार लोकतंत्र के कारण संभव होता रहा है
दिव्याहिमाचल। भारत में 'जयचंद','भस्मासुर' और 'काली भेड़' की जमात हमेशा रही है। यह सिर्फ उदार लोकतंत्र के कारण संभव होता रहा है। इतिहास ने इस जमात का चित्रण बखूबी किया है, लिहाजा आज भी हैरानी नहीं होती। तालिबान की तुलना भारत के स्वतंत्रता आंदोलन और हमारे क्रांतिवीरों से करने का दुस्साहस करने वाले शफीकुर्रहमान बर्क लोकसभा सांसद हैं। हिंदुस्तान की जनता ने ही उन्हें चुना है। लोकसभा भी भारतीय गणराज्य में है। तमाम आर्थिक संसाधन और 'अतिविशिष्ट' होने का दर्जा भी हिंदुस्तान ने ही दिया है। पेंशन भी भारतीय करदाताओं की जेब से अदा की जाएगी। सांसद का ओहदा ही कानून-निर्माता का है, लेकिन बर्क ने मर्यादा, गरिमा और संवैधानिक कानून की 'लक्ष्मण-रेखा' लांघी है। बाद में सफाई देना बेमानी है। इसी तरह मौलाना सज्जाद नोमानी ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड की कार्यकारिणी के सदस्य हैं। वह भी सामान्य शख्सियत नहीं हैं। कमोबेश हिंदुस्तानी तो हैं और सब कुछ इस देश ने ही बख्शा है। मौलाना का कुछ तो जनाधार होगा, चेले-चांटे भी होंगे। क्या संदेश जाएगा? नोमानी भी तालिबानी आतंकियों को 'आज़ादी के लड़ाके' मान रहे हैं और हिंदी मुसलमान की ओर से उन्हें 'सलाम' भेजा है। उनकी टिप्पणी है कि एक निहत्थी कौम ने दुनिया की सबसे ताकतवर फौज को शिकस्त दी है।