धरने पर बैठ गए मणिपुर में असहाय पत्रकार, राष्ट्रीय मीडिया में इसकी कोई चर्चा नहीं

मणिपुर में पत्रकारों की हड़ताल हर लिहाज से महत्त्वपूर्ण रही है।

Update: 2021-02-22 07:40 GMT

मणिपुर में पत्रकारों की हड़ताल हर लिहाज से महत्त्वपूर्ण रही है। हैरतअंगेज है कि बाकी देश में- या कहें कथित राष्ट्रीय मीडिया में इसकी कोई चर्चा नहीं हुई। ये अनिश्चितकालीन हड़ताल पत्रकारों मीडिया घरानों और पत्रकारों पर बढ़ते हमलों के विरोध में की। गौरतलब है कि एक महिला हमलावर ने 14 फरवरी को राजधानी इंफाल में मणिपुरी भाषा के प्रमुख अखबार पोक्नाफाम के दफ्तर पर बम से हमला किया था। किसी भी संगठन ने इसकी जिम्मेदारी नहीं ली। पुलिस की जांच में भी कोई ठोस सुराग नहीं मिल सका। पत्रकार संगठनों की अपील पर इस हमले के खिलाफ लामबंद होकर तमाम अखबार और संपादक हमलावरों की गिरफ्तारी की मांग में सोमवार से धरने पर बैठ गए। चौतरफा बढ़ते दबाव के बीच मुख्यमंत्री एन. बीरेन सिंह ने इस मामले की जांच एसटीएफ को सौंपी है। लेकिन मणिपुर में पत्रकारों और अखबारों पर हमले की घटनाएं नई नहीं हैं।


पहले भी इंफाल में कई अखबारों के दफ्तरों पर हमले हो चुके हैं। उनके खिलाफ संपादक और पत्रकार कई सप्ताह तक धरना भी दे चुके हैं। इंफाल से 32 अखबारों का प्रकाशन होता है, जिनमें से ज्यादातर स्थानीय भाषा के हैं। इसके अलावा केबल टीवी के कई चैनलों का भी प्रसारण किया जाता है। मणिपुर में उग्रवादी संगठनों की धमकियों के बीच काम करना पत्रकारों की नियति बन गई है। इन संगठनों का इस कदर खौफ है कि कोई भी संपादक या पत्रकार किसी संगठन का नाम नहीं लेना चाहता। पत्रकारों का कहना है कि राज्य में पत्रकार दुधारी तलवार पर चल रहे हैं। यहां कभी उग्रवादी संगठन उन्हें धमकियां देते हैं, तो कभी राज्य सरकार। इसलिए अब पत्रकारों के सब्र ने जवाब दे दिया है। इसके पहले बीते 25 और 26 नवंबर 2020 को भी कोई अखबार नहीं छपा था। पत्रकारों ने इसके विरोध में मणिपुर प्रेस क्लब के सामने धरना भी दिया था। अब ताजा हमले के बाद ऑल मणिपुर वर्किंग जर्नलिस्ट्स यूनियन और एडिटर्स गिल्ड ऑफ मणिपुर के बैनर तले संपादकों और पत्रकारों ने हमलावरों की गिरफ्तारी, पत्रकारों और मीडिया घरानों को सुरक्षा मुहैया कराने समेत कई मांगों के समर्थन में धरना शुरू किया। चूंकि राज्य सरकार पर खुद ही मीडिया का उत्पीड़न करने के आरोप रहे हैं, इसलिए राज्य में मीडियाकर्मी खुद को असहाय महसूस कर रहे हैँ। एक लोकतांत्रिक देश के लिए इससे ज्यादा अफसोसनाक बात और क्या होगी।


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