भारी गठरी यादों की
एक बार आनंद ने बुद्ध से पूछा कि सुख का सिद्धांत क्या है? तब बुद्ध ने कहा, ‘आनंद, तुम बिना वजह सिद्धांतों के फेर में मत पड़ो। बस अच्छे बने रहो, अच्छाई करते रहो और अच्छाई को जीते रहो।
मनीष कुमार चौधरी; एक बार आनंद ने बुद्ध से पूछा कि सुख का सिद्धांत क्या है? तब बुद्ध ने कहा, 'आनंद, तुम बिना वजह सिद्धांतों के फेर में मत पड़ो। बस अच्छे बने रहो, अच्छाई करते रहो और अच्छाई को जीते रहो। यही है सुख का सिद्धांत।' यानी जीवन उतना कठिन नहीं है, जितना हम उसे बना डालते हैं। सहज रूप में जीते चले जाना ही जीवन है। सहजता में ही जीवन की सार्थकता है। मगर कुछ लोग जीवन को इतनी गंभीरता से लेते हैं, मानो दुखों का पहाड़ उन पर ही टूट पड़ा है। वे अपने साथ ऐसी गठरी लिए फिरते हैं, जिसमें ईर्ष्या, द्वेष, आलोचना, निराशा, गंभीरता, प्रतिस्पर्धा जैसी तमाम नकारात्मकताएं होती हैं। वे हमेशा अतीत के बोझ को लादे रहते हैं और सोचते हैं कि उनके साथ कभी अच्छा नहीं हुआ, अच्छा नहीं हो रहा। भविष्य में भी कुछ अच्छा होने के प्रति वे शंकित रहते हैं और हर समय परिस्थितियों को दोष देते रहते हैं।
जीवन में जबरन घुसपैठ कर गई गंभीरता को कम कीजिए। अगर आपसे कोई गलती हो गई है, तो उससे लिपटे रहने के बजाय आपको ईश्वर से क्षमा मांग लेनी चाहिए। इस तरह न सिर्फ खुद को माफ कर पाएंगे, हल्का भी महसूस करेंगे। जीवन के इस नाटक के बस पात्र बन जाओ। जीवन को जितना ज्यादा गंभीरता से लेंगे, उतना ही वह आप पर बोझ बनता चला जाएगा। अगर बेवजह दुखी रहेंगे और शिकायतों का बोझ लिए फिरेंगे तो जो पास है, वह भी चला जाएगा। जो है, जितना भी है, उसके लिए ईश्वर का धन्यवाद कीजिए और मन में किसी तरह की गांठ न रखें। अपने जीवन को थोड़ा हल्का बनाने की जरूरत है, तभी जिंदगी का मजा ले पाएंगे।
हम अतीत से इतने अधिक बंधे रहते हैं कि उससे बाहर निकल कर नई रोशनी की ओर बढ़ना कई बार मुश्किल ही नहीं, असंभव हो जाता है। अतीत हमारे पांव कुछ वैसे ही बांधे रहता है, जैसे एक पतली रस्सी से बड़ा हाथी बंधा रहता है। यादों को इतना भारी होने से बचाइए कि वह जिंदगी पर बोझ न बनने लगे। यादों की गठरी हमारे मन को दूसरे किसी बोझ के मुकाबले अधिक प्रभावित करती है।