Harbhajan Singh retires: भज्जी की महानता को संपूर्णता का दर्जा मिलने में कमी क्यों रही?

हरभजन सिंह को अनिल कुंबले की तरह कभी भी एक ऐसे महान खिलाड़ी के तौर पर याद नहीं किया जाएगा

Update: 2021-12-24 15:41 GMT
हरभजन सिंह को अनिल कुंबले की तरह कभी भी एक ऐसे महान खिलाड़ी के तौर पर याद नहीं किया जाएगा जिसके आंकड़े असाधारण रहे और वैसा ही रहा उनका रवैया. हरभजन तो रविचंद्रन अश्विन की तरह की भी नहीं कि चाहे तेज़ी से 100 विकेट का सफर हो या 200 का 300 का या फिर 400 का, फटाफट पूरा कर लो और जब अपनी बात कहनी की आए तो उसमें किसी भी तरह का घुमाव नहीं. लेकिन, भारतीय क्रिकेट ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया की क्रिकेट हरभजन का लोहा मानेगी. ना सिर्फ वो भारतीय टेस्ट इतिहास के सबसे कामयाब गेंदबाज़ों में से एक हैं बल्कि कुंबले और अश्विन पर भी कई मामलों में बीस हैं. आप सोचेंगे ऐसा कैसे? तो आपको बता दूं कि कुंबले कभी भी वनडे वर्ल्ड कप जीतने वाली टीम का हिस्सा नहीं रहे तो अश्विन ने टी20 टीम के साथ वर्ल्ड कप की तस्वीरें नहीं खिंचाई है. लेकिन, भज्जी के नाम टी20 वर्ल्ड कप, वनडे वर्ल्ड कप और आईसीसी टेस्ट रैंकिंग में पहली बार टीम इंडिया को नंबर 1 पर ले जाने वाली टीम का हिस्सा होने का मौका मिला है, जो अपने आप में भारतीय क्रिकेट में उनके 711 अंतरराष्ट्रीय शिकार के योगदान को 1422 होने का आभास देता है.
भज्जी हर मायनों में कुंबले और अश्विन से जुदा रहे
भज्जी हर मायने में कुंबले और अश्विन से जुदा थे. मैदान पर हर समय विकेट लेने के आक्रामक रवैये ने अगर उन्हें टीम इंडिया का एक बड़ा मैचविनर बनाया तो उस लड़ाकू नज़रिये ने कई मौकों पर उनके लिए मुसीबतें भी पैदा की. भारत के लिए खेलते हुए अपनी पहली ही अंतरराष्ट्रीय सीरीज़ में वो रिकी पोटिंग से भिड़ गए और उसके बाद ये सिलसिला ऐसा चला कि आने वाले वक्त में जब भी ऑस्ट्रेलियाई दिग्गज की महानता की चर्चा होती है तो अनायास ही भज्जी का ख़्याल हर किसी के ज़ेहन में आ जाता है. और ये शायद उनकी सबसे बड़ी उपलब्धि है. अपने दौर के सबसे धाकड़ बल्लेबाज़ को अपने हुनर के आगे नतमस्तक करने से ज़्यादा बेहतर बात क्या कुछ और भी हो सकती है क्या?
महानता को संपूर्णता का दर्जा मिलने में थोड़ी कमी रह गई
बहरहाल, जितनी चर्चा हरभजन को उनके शानदार खेल से मिलेगी , कमोबेश उसी सुर में उनके आलोचक भी खड़े मिलेंगे जो ये तर्क दे सकते हैं कि शायद अगर विवादों से भज्जी का नाता ना होता तो आसानी से उनके पास 1000 विकेट होते. एंड्रयू साइंमड्स के साथ मंकीगेट विवाद ने भज्जी की छवि को काफी धक्का पहुंचाया. एडम गिलक्रिस्ट से लेकर पोटिंग तक हर खिलाड़ी ने ये माना कि भज्जी ने लक्ष्मण-रेखा पार की थी. उस वक्त तो पूरा भारत अपने खिलाड़ी के साथ खड़ा था लेकिन जब इसी भज्जी ने श्रीसंथ को आईपीएल के एक मैच में सरेआम तमाचा जड़ दिया तो हरभजन के बचाव में उतरने वाले भी उनके इस बचकाने रवैये से शर्मिंदा हो गए. दरअसल, पूरे करियर के दौरान बेमिसाल स्पेल मैदान पर डालने वाले भज्जी ने बहुत मौकों पर ऐसी हरकतें की जिससे उनकी महानता को संपूर्णता का दर्जा मिलने में थोड़ी कमी रह गई.
इंटरव्यू से पहले सवाल जानने की कोशिश नहीं की
बतौर रिपोर्टर इस लेखक को हरभजन के साथ कई मौकों पर साक्षात्कार करने का मौका मिला. वो उन चुनिंदा खिलाड़ियों में से एक रहे जिन्होंने कभी भी इंटरव्यू शुरु होने से पहले सवालों को जानने की कोशिश नहीं कि ताकि वो तैयार रहे. वो अकसर कहते थे जब गेंद डालने और बल्लेबाज़ी करने वक्त किसी से भय नहीं खाता हूं तो भला आपलोगों के सवालों से क्यों घबराऊंगा. और वाकई में ये सच था. जब भी वो बोलते, किसी भी शख्स पर या किसी मुद्दे पर तो वो खुलकर बोलते. अपनी राय को दबाने की कोशिश नहीं करते. हरभजन का रवैया हम लोगों के साथ अक्सर बेहद संजीदा रहता था लेकिन इसका मतलब ये नहीं ता कि वो हमसे कभी भिड़ें नहीं या तकरार नहीं हुई. एक बार भज्जी मेरे पूराने संस्थान(टीवी चैनल) से इस कदर नाराज़ हुए कि उन्होंने मुंबई के वानखेडे स्टेडियम में ना सिर्फ इंटरव्यू देने से मना कर दिया बल्कि ये धमकी भी दे डाली कि वो सौरव गांगुली और सचिन तेंदुलकर को ये कह देंगे कि वो मुझसे बात ना करें! ये बात सुनने में जितनी हास्यास्पद लगती है, उतनी ही बचकानी भी. लेकिन, अच्छी बात रही कि भज्जी ने ऐसा कभी कुछ किया नहीं. उल्टे, इस घटना को भूलने में ज़्यादा वक्त नहीं गंवाया और हमेशा उसी गर्मजोशी से मिलते रहे. भज्जी उन खिलाड़ियों में से एक रहे जो ये इंतज़ार नहीं करते थे कि उन्हें पहले हैलो कहा जाए. अगर उनकी नज़र आपसे मिल गई तो वो खुद पहला अभिवादन करेंगे.
कॉमेंटेटर के तौर पर अब एक अलग पहचान
रिटायर होने से पहले ही भज्जी ने एक कामेंटेटर और खेल के विश्लेषक के तौर पर अलग पहचान बनानी शुरु कर दी है. वो जो बोलते हैं तो तो लीपापोती नहीं करते. विराट कोहली और रोहित शर्मा दोनों ही उनके बेहद ख़ास है लेकिन अगर ऐसा मौका आता है कि दोनों कि खिंचाई करनी पड़ी तो वो ऐसा करने से चूकते भी नहीं क्योंकि भज्जी को पता है कि उनके साथी खिलाड़ी ये अच्छी तरह से जानते हैं कि उनका कोई एजेंडा नहीं है.
वर्ल्ड कप फाइनल का आखिरी ओवर डालने से मना किया?
अगर एक शानदार करियर में कोई एक बात हमेशा उनके चाहने वालों को अचरज में डालेगी तो भला ये कि आखिर 2007 में टी20 वर्ल्ड कप फाइनल के दौरान भज्जी ने आखिरी ओवर डालने से मना क्यों कर दिया था? क्या वो उस दबाव को झेलने से पीछे हट गए थे या फिर धोनी ने सीधे सीधे जोगिंदर शर्मा को ही सबसे बड़ी ज़िम्मेदारी के लिए चुन लिया? उस जीत के बाद तमाम इटंरव्यू और डॉक्यूमेंट्री के बावजूद कभी भी उस सवाल का जवाब नहीं मिल पाया. हो सकता है कि भज्जी जब अपनी आत्मकथा लिखें तो इस पर निश्चित तौर पर रोशनी डालेंगे. लेकिन, ऐसा जल्दी होगा या फिर वो अपनी राजनीतिक पारी शुरु कर देंगे? मैदान के बाहर भज्जी के इस 'दूसरा' पर फिलहाल कुछ भी कहना जल्दबाज़ी हो सकती है.

(डिस्क्लेमर: ये लेखक के निजी विचार हैं. लेख में दी गई किसी भी जानकारी की सत्यता/सटीकता के प्रति लेखक स्वयं जवाबदेह है. इसके लिए जनता से रिश्ता किसी भी तरह से उत्तरदायी नहीं है)
 
विमल कुमार
न्यूज़18 इंडिया के पूर्व स्पोर्ट्स एडिटर विमल कुमार करीब 2 दशक से खेल पत्रकारिता में हैं. Social media(Twitter,Facebook,Instagram) पर @Vimalwa के तौर पर सक्रिय रहने वाले विमल 4 क्रिकेट वर्ल्ड कप और रियो ओलंपिक्स भी कवर कर चुके हैं.
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