Happy Diwali 2021: मन में हो रौशनी, तो होगी सच्ची दीपावली

बचपन की दिवाली मन की दिवाली होती थी। दीपावली आते ही मन में होने लगता था कई सारी चीजों का उत्साह।

Update: 2021-11-04 08:54 GMT

स्वाति शैवाल

त्योहार, इस बार आओ तो साथ लेते आना,

खुशियों की वो छतरी जो साथ कर दी थी पिछली बार। 

कि कहीं भीग कर बीमार न हो जाओ,

और फिर फिर वापस खैरियत से घर आओ।

तुम आते हो तो एक दिलासा सा लगता है,

खर्च हो जाता है कुछ ज्यादा लेकिन नहीं अखरता है।

मां ने पिछली बार घर के घी की गुझिया बनाई थीं,

वही जो डायबिटीज के चलते पिताजी ने नहीं खाई थीं।

लेकिन मां कहती है तुम्हारे लिए खास मीठा बनाना है,

उसके बिना तो तुम्हारा आना भी न आना है।

इस बार मां ने मीठा अब तक नहीं बनाया,

कहती है सबकुछ नकली हो गया है अब।

तुम्हारे व्यवहार से लेकर मिठाई तक,

अब दिखावटी से लगने लगे हैं।

लालच में लोग आजकल,

मीठे को भी जहर में बदलने लगे हैं।

इसलिए तुम आना जरूर,

अपने सच्चे स्वरूप में।

जैसे पहले आते थे,

बिना गिफ्ट रैप के,

सच्चे सीधे गले मिलने।

जैसे मिट्टी के दीयों में कपास से बनाई बाती,

जैसे ईद पर बड़ी बी के हाथ से गुंथी सेवई,

जैसे लंगर में बना कड़ा प्रसाद,

जैसे घर के बच्चों के अनगढ़ हाथों से सजी रंगोली।

जैसे साल के दो जोड़ नये कपड़ों की चमक,

जैसे पूरे घर में पकवानों की गमक।

जैसे पापा का चुपचाप भोग से पहले लड्डू उठाकर खा जाना,

जैसे दादी का फिर गुस्से से देखना और घंटों बड़बड़ाना।

सच बताना, क्या तुम ये सब मिस नहीं करते?

करते हो तो फिर वैसे ही आते क्यों नहीं?

तुम आते तो हो खुशियां खिलखिलाती हैं,

उम्मीदों के दीये जलते हैं मां मिठाई बनाती है।

तुम आओ तो सही उसी पुराने रूप में,

हम भी फिर से पुराने बन जाएंगे।

शिकवे-शिकायतें सब दूर करके,

ठहाकों से आसमान गुंजाएंगे।

दुख, बीमारी सबको दूर करके आना,

क्योंकि तुम आते हो तो दिलासा सा लगता है। 

हर साल का सबसे बड़ा त्योहार दीपावली। पिछले कुछ सालों से हर साल इस त्योहार को मनाते समय बार बार मन में बचपन जिंदा होने लगता है। जब चार दिन पहले से कॉलोनी के बच्चे उसी तरह सुबह होते ही पटाखों की थैली लेकर निकल पड़ते हैं। रसोई से चीखकर बुलाती मां, बड़बड़ करते पड़ोसियों और रास्ते से गुजरते, पहले गुस्सा होने फिर मुस्कुरा देने वाले राहगीरों को नजरअंदाज करते हुए बच्चे अपने पटाखों का शक्ति प्रदर्शन करते हैं। लेकिन यह शक्ति प्रदर्शन थोड़ा अलग होता है। यहां जिसके पास ज्यादा पटाखे होते हैं, वो समय आने पर उसे अपने खास दोस्तों से बांट भी सकता है।

बचपन की दिवाली मन की दिवाली होती थी। दीपावली आते ही मन में होने लगता था कई सारी चीजों का उत्साह। नए कपड़े, पटाखे, रंगोली की नई डिजाइन आदि कई चीजें उत्सुकता का विषय होती थीं और इन सबके बीच रातों को आते थे मठरी, कचौरी, नमकीन और मावे से भरी गुझिया के सपने। दीपावली हम बच्चों के लिए ग्रैंड ओकेजन हुआ करती थी, हर मायने में। 

समय बदला और दीपावली के मायने भी। मुझे याद है कि धनतेरस पर घर में किसी बर्तन का आना भी हमारे लिए खजाने से कम नहीं हुआ करता था। गुझिया और मठरी बनाने के लिए घर के सब बच्चे हाथ बंटाने पहुंच जाते थे, और मम्मी और दादी हाथ में पकड़ा दिया करतीं माचिस की तीलियां और चम्मच। इनसे हम मठरियों पर गोदने गोदते और फिर मठरियों के तल जाने पर हममें से हर एक अपनी क्रिएटिविटी के लिए क्रेडिट चाहता था।

ये सोचे बिना कि पिछले तीन दिनों से लगातार घर के रूटीन काम के साथ मां और दादी ऐसी क्रिएटिविटी बिना क्रेडिट लिए दिखाए जा रही हैं। फिर भी वे उदार भाव से सारा क्रेडिट हमें दे देतीं और हम खुश हो जाते। असल में वही खुशियां हमारे लिए हर पल की दिवाली होती थीं। 

आज चीजें बदली हैं। जाहिर है समय के साथ बदलाव प्रकृति का नियम है और इसे सहज भाव से अपनाना चहिए। लेकिन असल में ये बदलाव हमारे भाव में नहीं आए, ये कोशिश होनी चाहिए। कुछ इस तरह-

चाहे मीठा घर में बने या बाहर से आए उसका एक हिस्सा उन लोगों के लिए भी होना चाहिए, जो हमारे लिए मेहनत करते हैं, जैसे घर में काम करने वाले माली, बाइयां, कॉलोनी का चौकीदार, पोस्टमैन, कचरा उठाने वाले लोग आदि। 

घर में चाहे रौशनी लाइट्स की हो, लेकिन दीये मिट्टी के जरूर खरीदे जाने चाहिए ताकि उन्हें बनाने वालों के घर में चूल्हा जल सके। 

नए कपड़ों की खरीद चाहे ऑनलाइन हो या ऑफलाइन, पुराने अच्छे रखे कपड़े, स्वेटर, कंबल आदि उन लोगों को उदारभाव से देना चाहिए, जिनके लिए ये अनमोल हैं। नए बर्तन या अन्य नई चीजें खरीदते वक्त भी यही बात ध्यान में रखना जरूरी है।  

पटाखे कम से कम चलाएं या हो सके तो कई लोग मिलकर एक साथ आतिशबाजी का आनंद लें। कोरोना के दौरान यह भी किया जा सकता है कि पूरी कॉलोनी एकसाथ मिलकर पटाखे खरीद लाएं। फिर दो-चार लोग मिलकर उन्हें चलाएं और सभी अपने घर की छतों या बालकनी से उनका आनंद लें।

और सबसे बड़ी बात, इस कठिन समय में अपने परिवार, अपने मित्रों अपनों के साथ रिश्तों को और मजबूत बनाएं। महामारी के दौर ने लोगों से बहुत कुछ छीना है। जरूरत है कि इस वक्त हम मजबूती से उन सभी लोगों के साथ खड़े रहें। 

डिस्क्लेमर (अस्वीकरण): यह लेखक के निजी विचार हैं। आलेख में शामिल सूचना और तथ्यों की सटीकता, संपूर्णता के लिए अमर उजाला उत्तरदायी नहीं है। अपने विचार हमें blog@auw.co.in पर भेज सकते हैं। लेख के साथ संक्षिप्त परिचय और फोटो भी संलग्न करें।

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