देश में बढ़ता कोयला संकट

कोयला संकट

Update: 2021-10-12 17:18 GMT

क्या कोयला संकट आने वाले अंधेरे का अलार्म बजा रहा है?क्या बिजली कटौती का ये सिर्फ ट्रेलर है...पूरी पिक्चर अभी बाकी है?क्या इस बार दीवाली अंधेरे में डूबने वाली है? क्या देश पर ब्लैक आउट का खतरा तेजी से बढ़ रहा है? क्या जैसे हालात चीन में बन गए...पावर क्राइसिस के आगे जिस तरह यूरोप ने घुटने टेक दिए....क्या ठीक वैसी ही मुसीबत की तरफ हिंदुस्तान भी कदम बढ़ा रहा है. देश की राजधानी दिल्ली में बिजली संकट गहराने लगा है...यहां बिजली की आपूर्ति घटकर 50 फीसदी के करीब रह गई है ।दिल्ली को एनटीपीसी के प्लांट से 4000 मेगावॉट बिजली मिलती थी...लेकिन कोयले की कमी से एनटीपीसी के प्लांट बिजली उत्पादन नहीं कर पा रहे हैं । दिल्ली में फिलहाल बवाना-रिठाला और प्रगति पावर प्लांट में 1900 मेगावाट की क्षमता वाले 3 पावर प्लांट काम कर रहे हैं जिनसे 1300 मेगावाट बिजली का ही उत्पादन हो पा रहा है जबकि त्योहारों की वजह से दिल्ली में बिजली की डिमांड बढ़ती जा रही है,10 अक्टूबर को डिमांड 4500 मेगावॉट रही है.

दिल्ली ही नहीं यूपी समेत कई राज्यों में इस वक्त कोयले की कमी से बिजली संकट गहरा रहा है. उत्तर प्रदेश में 18000 मेगावाट बिजली की डिमांड है लेकिन सिर्फ 14000 मेगावाट बिजली मिल रही है. पंजाब की स्थिति भी अलग नहीं है. यहां 3 थर्मल प्लांट की चार यूनिटों में बिजली उत्पादन ठप है और बिजली की मांग लगातार बढ़ रही है। पंजाब में एक दिन में बिजली की मांग 8000 मेगावाट के करीब रही। लेकिन बिजली उत्पादन सिर्फ 3784 मेगावाट हो पा रहा है. वहीं बात करें राजस्थान की तो यहां गांव और शहर दोनों अंधेरे में डूबे नजर आ रहे हैं. वजह है मांग से कम बिजली सप्लाई. राजस्थान में बिजली की अधिकतम मांग 11800 मेगावाट है लेकिन इस वक्त सिर्फ 9353 मेगावाट बिजली मिल रही है. कोयला का संकट बढ़ा तो पटरी पर लौटती अर्थव्यवस्था की मुश्किल बढ़ सकती है. देश का औद्योगिक केन्द्र है महाराष्ट्र जहां कोयला संकट का असर दिखने लगा है. महाराष्ट्र में 13 पावर प्लांट कोयला नहीं होने से ठप पड़ चुके हैं. केरल में 4 प्लांट में बिजली का प्रोडक्शन रोक दिया गया है.
सरकार का कहना है कि कोयले की कमी नहीं हैै. लेकिन सवाल है कि जब कोयला संकट नहीं है..तो पावर प्लांट बंद क्यों पड़े हैं. सरकार इसके लिए 4 प्रमुख वजह गिना रही है.
पहली वजह बिजली बिजली की डिमांड में इजाफा है. पिछले 2 साल के मुकाबले इस बार अगस्त से सितंबर के बीच 20 फ़ीसदी ज्यादा बिजली की मांग बढ़ी है.
साल 2019 के अगस्त से सितंबर के बीच 10,669 करोड़ यूनिट बिजली की डिमांड थी वो 2021 में अगस्त से सितंबर के बीच 12,500 करोड़ यूनिट तक पहुंच गई है.
इसी वजह से बिजली उत्पादन बढ़ाना पड़ा है । नतीजा कोयले की खपत भी बढ़ गई है.
दूसरी वजह लंबे मानसून सीजन की वजह से कोयला उत्पादन घटने की बात कही जा रही है. सरकार के मुताबिक इस साल मानसून सीजन थोड़ा लंबा खिंच गया मतलब सितंबर के आखिरी तक देश में बारिश होती रही जिससे कोयले के उत्पादन पर असर पड़ा.

तीसरी वजह कोयले के आयात का महंगा होना है. देश में ज़रूरत का करीब 30 फ़ीसदी से ज़्यादा कोयला आयात किया जाता है. लेकिन कोरोना काल और डिमांड बढ़ने से अंतराष्ट्रीय बाज़ार में कोयले की क़ीमतें काफी बढ़ गई . जो कोयला 45 डॉलर प्रति टन क़ीमत में आयात किया जाता था आज उसकी क़ीमत 180 - 200 डॉलर प्रति टन तक पहुंच गई है. जिससे 2019-20 के मुक़ाबले आयातित कोयले से बिजली उत्पादन में 40 फ़ीसदी तक की कमी दर्ज की गई .

चौथी वजह उद्योगों की बिजली डिमांड बढ़ने का बताई जा रहा है ।कोरोना काल के बाद उद्योगों ने एक बार फिर रफ्तार पकड़ ली है जिससे बिजली की मांग पहले के मुकाबले बढ़ गई है. उद्योगों की तरफ से 2021 के अगस्त में ही 1800 करोड़ अतिरिक्त यूनिट की डिमांड आई है. साफ है कि जल्द से जल्द कोयले के संकट को दूर करना होगा ताकि अर्थव्यवस्था पर सीधा असर नहीं पड़े. यही वजह है कि कोयला संकट पर सरकार एक्शन में है. गृह मंत्री अमित शाह ने कोयला मंत्री और ऊर्जा मंत्री के साथ बैठक की है. और कोयले की कमी से बिजली सप्लाई बाधित न हो इसके लिए सरकार हर मुमकिन कदम उठा रही है.
न्यूजनेशन 
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