Goa Assembly Election: जीत को लेकर आश्वस्त निर्दलीय उम्मीदवारों ने बीजेपी से नजदीकियां बढ़ानी शुरू कर दी हैं

जीत को लेकर आश्वस्त निर्दलीय उम्मीदवारों ने बीजेपी से नजदीकियां बढ़ानी शुरू कर दी हैं

Update: 2022-03-02 11:07 GMT

अजय झा

गोवा (Goa) में 40 सदस्यीय विधानसभा के लिए 10 मार्च को वोटों की गिनती (Counting) शुरू होने से पहले ही नए राजनीतिक समीकरण बनाने की कवायद तेज हो गई है. इसके लिए राजनीतिक जोड़-तोड़ और उलट-पलट का काम शुरू हो गया है. क्षेत्रीय अख़बार 'द गोअन एवरीडे' के अनुसार, निर्दलीय उम्मीदवार (Independent Candidate) के तौर पर चुनाव लड़ने वाले पांच नेता 'पावर ग्रूप' बनाने के लिए एक-दूसरे के संपर्क में हैं. वे चाहते हैं कि तटीय राज्य में त्रिशंकु विधानसभा बनने की स्थिति में उनके पास सौदेबाजी करने की बेहतर क्षमता हो.
अख़बार के मुताबिक, पूर्व मुख्यमंत्री लक्ष्मीकांत पारसेकर (मांद्रेम), चंद्रकांत शेट्टी (बिचोलिम), सावित्री कावलेकर (संगुम), दीपक पॉस्कर (सांवोर्डेम) और विजय पाई खोत (कानाकोना) ऐसे नेता हैं जो अपनी जीत की संभावनाओं को लेकर आश्वस्त हैं.
त्रिशंकु विधानसभा की दुआ करते निर्दलीय उम्मीदवार
कुछ निर्दलीय उम्मीदवार गोवा में त्रिशंकु विधानसभा की दुआ मांग रहे हैं ताकि वे अपने हित में अपनी शर्तों को निर्धारित कर सकें. उनकी पसंदीदा पार्टी कांग्रेस नहीं बल्कि बीजेपी है. ऐसा लगता है जैसे गोवा में मुर्गियों के अंडे देने से पहले उसकी गिनती शुरू हो गई है. महीने भर के लंबे इंतजार के बाद राज्य में विजेता के तौर कौन उभरेगा, यह जानने के लिए अभी 10 दिन बचे हैं. तटीय राज्य में एक बार फिर त्रिशंकु विधानसभा बनने के आसार हैं. इस बीच कुछ नए राजनीतिक गठजोड़ बनाने पर काम तेजी से हो रहा है.
किसे मिलेगा सौदेबाजी का लाभ
परंपरागत तौर पर इस स्थिति का सबसे अधिक लाभ स्वतंत्र उम्मीदवारों को होता है. वे ऐसी स्थिति में फलते-फूलते हैं, क्योंकि उन्हें समर्थन के बदले में बड़ी पेशकश की जाती है. 2017 में तीन निर्दलीय उम्मीदवारों की डिमांड हाई थी क्योंकि कांग्रेस पार्टी और भारतीय जनता पार्टी ने उन्हें अपने पाले में लाने के लिए एक-दूसरे से संघर्ष किया था. बेहतर प्रबंधन क्षमता के साथ बीजेपी उन सभी को अपने पाले में लाने और पूरे कार्यकाल तक चलने वाली सरकार बनाने में सफल रही.
कौन होगा सौदेबाजी करने की बेहतर स्थिति में
दोनों विरोधी पार्टियां स्पष्ट जनादेश प्राप्त करने को लेकर दावे-प्रतिदावे कर रही हैं. लेकिन पांच साल बाद गोवा में फिर से त्रिशंकु विधानसभा बनने के आसार दिख रहे हैं. कम से कम आठ निर्दलीय उम्मीदवार दावा कर रहे हैं कि वे विजेता बनकर उभरेंगे. उनमें से पांच अत्यधिक सक्रिय हैं. वे सुनिश्चित करना चाहते हैं कि उनका पावर ग्रूप बनें. अगर वे एकजुट होंगे तो सौदेबाजी करने की बेहतर स्थिति में होंगे. इनमें से अधिकांश का संबंध बीजेपी से है. बीजेपी ने अन्य पार्टियों के 17 विधायकों को शामिल करने के बाद उत्पन्न राजनीतिक मजबूरियों के कारण इन नेताओं को टिकट नहीं दिया. बीजेपी यह भी सुनिश्चित करना चाहती थी कि सरकार गिराने की कोई भी कोशिश नाकाम हो जाए.
बागी विधायकों में पहले भी बंट चुकी हैं रेवड़ियां
गौरतलब है कि अपनी जीत को लेकर आश्वस्त पांच निर्दलीय उम्मीदवारों में से केवल दीपक पॉस्कर ही निवर्तमान विधानसभा के सदस्य रहे. वे महाराष्ट्रवादी गोमांतक पार्टी (एमजीपी) के तीन विधायकों में से एक थे. एमजीपी ने सरकार बनाने के बीजेपी के दावे का समर्थन करने का फैसला किया. उसके तीन विधायकों में से दो मंत्री बन गए. केवल पॉस्कर ही बचे थे. मंत्री बनने की उनकी बारी 2019 में आई जब कांग्रेस पार्टी के 10 और एमजीपी के दो विधायक बागी होकर बीजेपी में शामिल हो गए. हालांकि जब अपने उम्मीदवार का चयन करने की बात आई तो बीजेपी ने गणेश गांवकर को टिकट देने का विकल्प चुना, जिन्हें पॉस्कर ने 2017 में 5,000 से अधिक मतों से हराया था. इसके बाद पॉस्कर को निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में चुनावी मैदान में उतरना पड़ा.
बीजेपी के भरोसे के पीछे का गणित
बीजेपी में ऐसा हर बार नहीं होता है कि सरकार में मुख्यमंत्री जैसे वरिष्ठ नेता को पार्टी टिकट से वंचित कर दिया जाए. मनोहर पर्रिकर ने लक्ष्मीकांत पारसेकर को मुख्यमंत्री पद के लिए तब चुना था जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देश के रक्षा मंत्री के तौर पर उनकी सेवा लेने की इच्छा जाहिर की थी.
पारसेकर को अपनी कांग्रेस पार्टी के प्रतिद्वंद्वी दयानंद सोपटे के हाथों मुख्यमंत्री के रूप में पराजित होना पड़ा, जो बीजेपी का समर्थन करने के लिए दल बदलने वाले शुरुआती नेताओं में शामिल थे. सोपटे को विधायक के पद से इस्तीफा देना पड़ा. उपचुनाव में बीजेपी के उम्मीदवार के रूप में फिर से चुनाव लड़े और जीत हासिल की. पारसेकर कुछ नहीं कर सके क्योंकि उनके सीनियर पर्रिकर ने कांग्रेस के दो विधायकों को लेकर प्रारंभिक विद्रोह का आयोजन किया था. पर्रिकर के निधन और पारसेकर के विधायक नहीं होने की वजह से बीजेपी ने प्रमोद सावंत को अपना नया मुख्यमंत्री चुना.
बीजेपी ने पारसेकर को प्रचार समिति का अध्यक्ष नियुक्त किया. हालांकि, जब उत्तरी गोवा की मांद्रेम सीट से पार्टी उम्मीदवार को टिकट देने की बारी आई तो बीजेपी ने सोप्ते को चुना. बीजेपी ने उनसे उचित जगह देने का वादा किया लेकिन पारसेकर के पास कुछ नहीं होगा क्योंकि उन्होंने पार्टी छोड़ दी और निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में मैदान में उतरे. वह अपने मौके का इंतजार रहे हैं.
चर्चा में हैं सावित्री कावलेकर
सावित्री कावलेकर का नाम इसलिए लिया जा रहा है कि वह उपमुख्यमंत्री चंद्रकांत कावलेकर की पत्नी हैं. उन्होंने 2019 में नौ अन्य कांग्रेस विधायकों के साथ पार्टी में बगावत का नेतृत्व किया था. हालांकि उन्होंने विधानसभा में विपक्ष के नेता के रूप में काम किया था. सावित्री सांगुम सीट से कांग्रेस पार्टी उम्मीदवार के रूप में तीसरे स्थान पर रहीं और अपने पति के बाद बीजेपी में शामिल हो गईं जहां उन्हें प्रदेश बीजेपी में महिला विंग का उपाध्यक्ष बनाया गया.
चंद्रकांत कावलेकर को बीजेपी ने अपनी पारंपरिक क्वेपम सीट की पेशकश की. बीजेपी ने अपने नेता सुभाष फाल देसाई के पक्ष में सावित्री के दावे को नजरअंदाज कर दिया, जो 2017 में लगभग 900 मतों के मामूली अंतर से हार गए थे. सावित्री ने पार्टी छोड़कर स्वतंत्र उम्मीदवार के तौर पर चुनावी मैदान में प्रवेश किया. उन्होंने यह दावा किया कि पार्टी छोड़ने का निर्णय उनका था और इसमें उनके पति की कोई भूमिका नहीं है. 2019 में कावलेकर के साथ बीजेपी में शामिल होने वाले विधायकों में से फिलिप नेरी रोड्रिग्स (वेलिम), विल्फ्रेड नाजरेथ मेनिनो डी'सा (नुवेम) इस समूह में शामिल नहीं हैं.
हालांकि जब चुनाव की बारी आई तब उन्हें हार का डर सताने लगा क्योंकि वेलिम और नुवेम दोनों कैथोलिक बहुल निर्वाचन क्षेत्र हैं. उन्हें लगने लगा कि मतदाताओं द्वारा उन्हें स्वीकार नहीं किया जा सकता है. रोड्रिग्स राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) के टिकट पर और डी'सा निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में चुनावी मैदान में उतरे. यदि वे चुनाव जीत जाते हैं तो उनका समर्थन सरकार बनाने के लिए महत्वपूर्ण होगा. माना जा रहा है कि वे बीजेपी को निराश नहीं करेंगे.
मनोहर पर्रिकर के बेटे उत्पल पर सबकी नज़र
एक नाम जो इस सूची में शामिल नहीं है, वह है पर्रिकर के बेटे उत्पल पर्रिकर का. अपने पिता की पणजी सीट से टिकट नहीं मिलने के बाद उन्होंने निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में मैदान में प्रवेश किया. यह सीट कांग्रेस के दलबदलू अटानासियो मोनसेरेट को दी गई थी. पणजी में बीजेपी अच्छी स्थिति में है, चाहे जो भी जीतता है, बीजेपी पणजी से विजेता होगी क्योंकि उत्पल पर्रिकर 'जो बीत गई सो बात गई' वाले रवैये के साथ बीजेपी में वापसी करने वाले पहले व्यक्ति होंगे.
कुछ सीटों पर बीजेपी बनाम बीजेपी
संयोग से कुछ सीटों पर बीजेपी बनाम बीजेपी में टक्कर है. शायद इसीलिए बीजेपी ने अपने कुछ नेताओं को निर्दलीय उम्मीदवार के तौर मैदान में उतारा है. प्रदेश में अपनी स्थिति मजबूत करने की कोशिश कर रही आम आदमी पार्टी ने भी बीजेपी पर यह आरोप लगाया है. अखबार ने पांच संभावित विधायकों के ग्रूप के हवाले से कहा है कि उनका झुकाव बीजेपी की तरफ है क्योंकि उसके पास सरकार बनाने का सबसे अच्छा मौका है.
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