पश्चिम बंगाल में ममता ने तीसरी बार 200 पार के साथ की सत्ता हासिल, खुद की हार ने पार्टी की जीत को किया फीका
पश्चिम बंगाल, असम, केरल, तमिलनाडु के साथ केंद्रशासित प्रदेश पुडुचेरी के विधानसभा चुनावों में यदि सबसे गहरी निगाह कहीं थी
भूपेंद्र सिंह| पश्चिम बंगाल, असम, केरल, तमिलनाडु के साथ केंद्रशासित प्रदेश पुडुचेरी के विधानसभा चुनावों में यदि सबसे गहरी निगाह कहीं थी तो वह बंगाल में। इसका कारण था भाजपा और तृणमूल कांग्रेस के बीच कांटे की टक्कर। कांटे की टक्कर के बाद भी ममता बनर्जी ने आसानी से तीसरी बार सत्ता हासिल कर ली, लेकिन उनकी खुद की हार ने पार्टी की जीत कुछ फीकी कर दी। भले ही भाजपा ने पिछली बार के मुकाबले कहीं अधिक सीटें हासिल कर ली हों, लेकिन उसे नतीजों से निराशा होगी, क्योंकि वह बंगाल में अपनी विजय होते देख रही थी और उसने इसके लिए पूरी ताकत भी झोंक दी थी। सत्ता हासिल न कर पाने के बाद भी यह उल्लेखनीय है कि उसने बंगाल में अपनी जड़ें मजबूत करने के साथ सशक्त विपक्ष का स्थान हासिल कर लिया। ऐसा लगता है कि बंगाल में भाजपा का हिंदू कार्ड ज्यादा नहीं चला। यह भी कहा जा सकता है कि ममता उस मुस्लिम वोट बैंक पर अपनी पकड़ बनाए रहीं, जिसकी आबादी करीब 30 प्रतिशत है। यह तो साफ ही है कि फुरफुरा शरीफ के पीरजादा के चुनाव मैदान में उतरने और कांग्रेस एवं वामदलों से हाथ मिलाने के बाद भी मुस्लिम मतदाता ममता के पीछे एकजुट होकर खड़े रहा। यह मानने के भी अच्छे-भले कारण हैं कि कांग्रेस ने जीतने के लिए लड़ने के बजाय भाजपा की हार में अपनी जीत देखना पसंद किया।