भूखे को भोजन

अव्वल तो हर नागरिक के पास कोई न कोई ऐसा काम होना चाहिए, जिससे वह खुद अपना और अपने परिवार का भरण-पोषण कर सके। मगर यह आदर्श स्थिति शायद किसी भी देश में नहीं है। इसलिए जो लोग खुद अपने भोजन का प्रबंध कर पाने में अक्षम हैं, उन्हें भोजन उपलब्ध कराने की जिम्मेदारी सरकारों पर आ जाती है।

Update: 2022-12-26 04:46 GMT

Written by जनसत्ता; अव्वल तो हर नागरिक के पास कोई न कोई ऐसा काम होना चाहिए, जिससे वह खुद अपना और अपने परिवार का भरण-पोषण कर सके। मगर यह आदर्श स्थिति शायद किसी भी देश में नहीं है। इसलिए जो लोग खुद अपने भोजन का प्रबंध कर पाने में अक्षम हैं, उन्हें भोजन उपलब्ध कराने की जिम्मेदारी सरकारों पर आ जाती है।

इसी दायित्व का निर्वाह करने के मकसद से भारत में राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा कानून लागू किया गया था। अब सरकार की सांविधानिक बाध्यता है कि वह किसी को भूखे पेट न सोने दे। इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए खाद्य सुरक्षा योजना के तहत हर गरीब व्यक्ति को हर महीने पांच किलो अनाज उपलब्ध कराया जाता रहा है।

अत्यंत गरीब परिवारों को अंत्योदय योजना के तहत प्रति परिवार पैंतीस किलो अनाज उपलब्ध कराया जाता है। खाद्यान्न सुरक्षा योजना के तहत चावल, गेहूं और मोटे अनाज के लिए क्रमश: तीन, दो और एक रुपए प्रति किलो पर भुगतान करना होता है, जबकि अंत्योदय योजना में अनाज मुफ्त दिया जाता है। कोरोना काल में केंद्र ने प्रधानमंत्री गरीब कल्याण योजना के तहत इन दोनों योजनाओं के अतिरिक्त पांच किलो अनाज मुफ्त उपलब्ध कराना शुरू किया था, जो सात चरणों में बढ़ते हुए इस महीने खत्म हो रही है।

अब केंद्र सरकार ने प्रधानमंत्री गरीब कल्याण योजना को आगे न बढ़ा कर राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा योजना और अंत्योदय योजना के तहत मिलने वाले अनाज के वितरण की अवधि एक साल और बढ़ा दी है। इस अनाज के लिए भुगतान नहीं करना पड़ेगा। यानी मुफ्त राशन उपलब्ध होगा। सरकार का कहना है कि करीब इक्यासी करोड़ तीस लाख लोगों को इस योजना का लाभ मिलेगा और इस पर करीब दो लाख करोड़ रुपए का खर्च आएगा, जिसे सरकार वहन करेगी।

निस्संदेह इससे गरीबों को बड़ी राहत मिलेगी। दरअसल, कोरोना के बाद बंदी के चलते बहुत सारे लोग बेरोजगार हो गए और बहुतों का काम-धंधा बंद हो गया। ऐसे में बहुत तेजी से गरीबों की संख्या में वृद्धि हुई। उनके सामने दो वक्त के भोजन का संकट पैदा हो गया। उन्हें भोजन पहुंचाना सरकार का सांविधानिक कर्तव्य है। मगर यह सवाल फिर भी बना हुआ है कि इस तरह इतनी बड़ी आबादी को सरकार कब तक मुफ्त राशन उपलब्ध कराती रह सकती है। जिस देश की आधे से अधिक आबादी मुफ्त के राशन पर निर्भर हो और दो तिहाई आबादी को पोषणयुक्त भोजन उपलब्ध कराने की चुनौती हो, उसे लेकर सवाल उठने स्वाभाविक हैं।

पिछले कई सालों से लगातार भारत विश्व भुखमरी सूचकांक में पायदान-दर-पायदान नीचे खिसक रहा है। अगले साल आबादी के पैमाने पर हम दुनिया का सबसे बड़ा देश बनने जा रहे हैं। इस तरह भोजन और पोषण संबंधी चुनौतियां उत्तरोत्तर बढ़ती जा रही हैं। उत्पादन के मामले में भी पिछड़ रहे हैं। इसलिए खाद्य सुरक्षा को लेकर चिंता स्वाभाविक है।

विशेषज्ञ लगातार सुझाव देते रहे हैं कि इस समस्या से पार पाने का यही तरीका है कि हर हाथ को काम मिले। मगर इस पहलू पर सफलता कठिन बनी हुई है। गरीबी और भुखमरी हर चुनाव में मुद्दा बनती है, राजनीतिक दल इनके जरिए गरीबों का भावनात्मक दोहन करने का भी प्रयास करते हैं, मगर हकीकत यही है कि हर साल ये समस्याएं बढ़ रही हैं। इनके समाधान के लिए दृढ़ राजनीतिक इच्छाशक्ति की जरूरत है।


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