मर्यादा की धज्जियां

उत्तर प्रदेश में उपमुख्यमंत्री और नेता प्रतिपक्ष का ‘तू तू मैं मैं’ चर्चा में है। जनता हंस रही है, तो दोनों नेताओं के समर्थक अपने नेता का दोष नहीं देख पा रहे हैं। यूपी विधानसभा 1990 के दशक में मारपीट का अखाड़ा बनी थी।

Update: 2022-05-30 05:12 GMT

Written by जनसत्ता: उत्तर प्रदेश में उपमुख्यमंत्री और नेता प्रतिपक्ष का 'तू तू मैं मैं' चर्चा में है। जनता हंस रही है, तो दोनों नेताओं के समर्थक अपने नेता का दोष नहीं देख पा रहे हैं। यूपी विधानसभा 1990 के दशक में मारपीट का अखाड़ा बनी थी। ताजा घटनाक्रम देख कर लगा कि कहीं दुबारा वही मारपीट देखने को न मिल जाए। नेता प्रतिपक्ष पूर्व मुख्यमंत्री हैं, तो वर्तमान मुख्यमंत्री और उपमुख्यमंत्री दुबारा पद पर आए हैं। दोनों तरफ अनुभव की कमी नहीं है। दोनों को सदन की मर्यादा अच्छे से पता है। दोनों से शिष्टाचार की आशा रखी जाती है। मगर उन्होंने इसे भुला दिया।

यह किसी भी रूप में लोकतांत्रिक मूल्यों के अनुरूप नहीं है। विधानसभा में संवाद सभापति के माध्यम से जनता के साथ होता है, न कि सदस्यों का आपस में। विधानसभा की मर्यादा बनाए रखना सरकार और विपक्ष दोनों का कर्तव्य है और जब कोई पूर्व मुख्यमंत्री नेता प्रतिपक्ष हो, तो यह जिम्मेदारी और बढ़ जाती है।

भारत के संविधान में राष्ट्रपति को देश का और राज्य में राज्यपाल का पद सर्वोच्च होता है। मगर दोनों ही पदों को सरकारों की सलाह पर ही कार्य करना पड़ता है। बदलती परिस्थितियों में जब केंद्र की योजनाओं को तमाम राज्य सरकारें तानाशाही दिखाते हुए लागू नहीं करतीं, जो जन कल्याणकारी होती हैं। केंद्र कुछ नहीं कर पाता। भारत के लोकतंत्र को बनाने के लिए असंख्य लोगों ने प्राणों का बलिदान किया है।

आज देश में तमाम राज्य अपनी-अपनी ढपली अपना-अपना राग अलाप रहे हैं। बंगाल में राज्यपाल द्वारा सरकार पर उनकी शक्तियों का हनन करने का आरोप, उनके फैसलों को नजरअंदाज करने और आदेश की अवहेलना का आरोप लगाया। अब बंगाल सरकार के मंत्रिमंडल में एक फैसला कर सरकारी विश्वविद्यालयों के कुलाधिपति अब राज्यपाल की जगह मुख्यमंत्री होंगे।

जबकि सारे देश मे विश्वविद्यालयों के कुलाधिपति राज्यपाल और केंद्रीय विश्वविद्यालयों के राष्ट्रपति होते हैं। राज्यपाल के बुलाने पर मुख्य सचिव और पुलिस महानिदेशक भी राज्यपाल से मिलने नहीं आए। पंजाब में प्रधानमंत्री के दौरे के दौरान मुख्य सचिव और पुलिस महानिदेशक नहीं थे, जबकि प्रोटोकाल के अनुसार दोनों को होना चाहिए और राज्यपाल के बुलाने पर आना चाहिए।

राज्यपाल जैसे सर्वोच्च पद पर बैठे व्यक्ति को अधिकार देने के लिए संविधान में संशोधन होना चाहिए। राज्यपाल को किसी भी अधिकारी को बुला कर आदेश देने और सरकार के किसी भी असंवैधानिक कार्यों को रोकने और न मानने पर तुरंत सरकार को बर्खास्त करने का अधिकार होना चाहिए। देश की एकता और अखंडता बनी रहे और देश संविधान के अनुसार चलता रहे। राष्ट्रपति और राज्यपाल को सर्वोच्च शक्तियां देकर इसे और गरिमामय बनाने की जरूरत है।


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