पहले चीन, फिर लेबनान और अब भारत; दिल्ली-महाराष्ट्र-गुजरात अंधेरे में जाएंगे क्या? बिजली संकट है कितना विकट?
पहले चीन, फिर लेबनान और अब भारत
शमित सिन्हा।
चीन और लेबनान जैसे देश कोयले की कमी की वजह से बिजली के भयानक संकट से गुजर रहे हैं. अब इस संकट का खतरा देश में भी मंडरा रहा है. देश के दिल्ली, महराष्ट्र और पंजाब सहित कई राज्यों में बिजली का संकट सामने दिखाई दे रहा है. देश के कई भागों में अत्यधिक बरसात की वजह से कोयले की खानों को बंद करना पड़ा है. जहां कोयले की खानें शुरू हैं, वहां से कोयले की ढुलाई प्रभावित हुई है. आयात किए गए कोयले की कीमत आसमान छू रही है.
हालांकि एक बात भारत के साथ अच्छी रही कि चीन और ऑस्ट्रेलिया के बीच तनाव की वजह से चीन ने ऑस्ट्रेलिया से कोयला मंगवाना बंद कर दिया है. इसका फायदा भारत ने उठाया है और बहुत बड़ी मात्रा में ऑस्ट्रेलिया से कोयला खरीदा है. लेकिन भारत जैसे बड़े देश के लिए इतना भी काफी नहीं है. दूसरे देशों से कोयला मंगवाना बहुत महंगा पड़ेगा. इस वजह से बिजली कंपनियां अपनी क्षमता के मुकाबले कोयले का उत्पादन नहीं कर पा रही हैं.
कोयले के कम उत्पादन का प्रभाव इन राज्यों में पड़ा है
देश में कोयले संकट को लेकर केंद्रीय कोयला मंत्री प्रह्लाद जोशी ने कहा है कि, 'बिजली आपूर्ति बाधित होने का बिल्कुल भी खतरा नहीं है. कोल इंडिया लिमिटेड के पास 24 दिनों की कोयले की मांग के बराबर 43 मिलियन टन का पर्याप्त कोयले का स्टॉक है.' यह सच है कि देश में कोयले का भंडार कम नहीं है. भारत के पास कोयले का बहुत बड़ा भंडार है. ऐसे में भारत अगर चाहे तो कोयले का उत्पादन प्रभावित नहीं हो सकता. अगर झारखंड जैसे राज्य में भारी बारिश की वजह से कोयले का उत्पादन प्रभावित हुआ है तो ऐसे राज्यों से कोयला मंगवाया जा सकता हैं जहां बरसात से कोयले की खदानें प्रभावित नहीं हुई हैं. वहां कोयला उत्पादन बढ़ाया जा सकता है.
पर सवाल यह है कि कोयला उत्पादन बढ़ा भी लें तो बरसात की वजह से कोयले की ढुलाई तो प्रभावित हुई ही है, इससे इनकार नहीं किया जा सकता. कोयले की कमी की वजह से गुजरात, पंजाब, राजस्थान, दिल्ली और तमिलनाडू सहित कई राज्यों में बिजली उत्पादन प्रभावित हुआ है. यहां तक कि झारखंड, बिहार और आंध्र प्रदेश में भी बिजली उत्पादन प्रभावित हुआ है. महाराष्ट्र के परली में स्थित बिजली उत्पादन केंद्र इससे बुरी तरह प्रभावित हुए हैं.
सिर्फ दो दिनों के लिए कोयले का स्टॉक, बिजली कंपनियों ने दिया शॉक
केवल दो दिनों के लिए ही कोयले का स्टॉक होने का दावा करते हुए बिजली उत्पादक और वितरक कंपनियों ने बिजली कटौती की चेतावनी दे दी है. लेकिन देश का कोयला मंत्रालय लगातार यह कह रहा है कि देश में कोयले की कमी नहीं है. माल लगातार मंगवाए जा रहे हैं. ऐसे में समस्या क्या है? समस्या यह है कि आयात किया हुआ कोयला महंगा होने की वजह से बिजली उत्पादक कंपनियों ने या तो बिजली उत्पादन में कमी कर दी है, या कई कंपनियों तक कोयला पहुंचने में दिक्कतें आ रही हैं.
भारत गंभीर बिजली संकट का सामना कर रहा है?
कोयला मंत्रालय का दावा है कि देश भर के कोयले पर आधारित बिजली उत्पादन करने वाली कंपनियां अपनी क्षमता के मुकाबले कम बिजली उत्पादन कर रही हैं. इस वजह से दिल्ली और महाराष्ट्र की तरह ही अन्य राज्यों में भी आने वाले समय में बिजली की कटौती की संभावना है ना कि इस वजह से कि कोयले की कमी है.
लेकिन बिजली केंद्रों का कहना है कि उनके पास कोयला ही नहीं है तो बिजली कैसे बनाएं. कई बिजली केंद्रों में तो सिर्फ 3 से 4 दिनों तक के लिए ही कोयले का स्टॉक पड़ा है. यह सरकार की गाइडलाइंस के मुताबिक बहुत कम स्टॉक माना जाता है. नियमों के मुताबिक कम से कम दो हफ्तों के लिए कोयले का स्टॉक होना चाहिए. भारत में बिजली के कुल उत्पादन की 70 फीसदी बिजली कोयले से बनती है.
कोयले की कमी का संकट क्यों पैदा हुआ?
केंद्रीय विद्युत प्राधिकरण (CEA) के आंकड़े के मुताबिक कुल बिजली केंद्रों की बात करें तो 17 बिजली केंद्रों में कोयले का शून्य स्टॉक है. 21 उत्पादन केंद्रों में सिर्फ एक दिन का स्टॉक बचा है. 16 केंद्रों में सिर्फ दो दिनों का स्टॉक बचा है और 18 बिजली उत्पादन केंद्रों में सिर्फ तीन दिनों के कोयले का स्टॉक बचा है. कुल 135 बिजली केंद्रों में से 107 में एक हफ्ते से ज्यादा कोयले का स्टॉक नहीं है.
दरअसल कोरोना काल में आर्थिक गतिविधियां कम हो गई थीं. इस वजह से दुनिया भर में कोयले की मांग भी कम हो गई थी. इस वजह से कई कोयले की खदानें बंद करनी पड़ी थीं. कोरोना का संकट कम होने की वजह से दुनिया भर में उद्योग-धंधे फिर शुरू हो गए. इसलिए कोयले की मांग भी बढ़ी. लेकिन बंद पड़ चुकी कोयले की खदानोंं को चुटकियों में शुरू नहीं किया जा सकता. इन्हें शुरू करने का एक प्रोसेस होता है. इसमें थोड़ा वक्त लगता है. ऐसे में जब मांग बढ़ी, तो तेजी से कोयला सप्लाई नहीं हो सकी. इस वजह से दुनिया भर में कोयले की कमी का संकट खड़ा हो गया. अब जिन देशों के पास कोयले का पर्याप्त स्टॉक है, उन्होंने कोयले के दाम बढ़ा दिए हैं. ऐसे में भारत ने बड़े हुए दाम में कोयला आयात करने पर प्रतिबंध लगाया हुआ है. इन सब वजहों से बिजली का उत्पादन प्रभावित हुआ है.
भारत में कोयले का भंडार कितना है?
भारत चीन के बाद दुनिया में दूसरे नंबर का कोयले का उत्पादक और ग्राहक है. भारत में दुनिया में चौथे नंबर का कोयला भंडार उपलब्ध है. भारत में सबसे ज्यादा कोयला झारखंड, ओड़िसा और छत्तीसगढ़ में पाया जाता है. इन तीनों राज्यों में देश का 70 प्रतिशत कोयले का भंडार है. कोयला भंडार का ज्यादातर हिस्सा बिजली उत्पादन के लिए खर्च किया जाता है.
गुजरात को 1850 मेगावॉट, पंजाब को 475, राजस्थान को 380, महाराष्ट्र को 760 और हरियाणा को 380 मेगावॉट बिजली सप्लाई करने वाली कंपनी टाटा पॉवर ने गुजरात के मुंद्रा में कोयले से बिजली बनाने वाले प्लांट को बंद किया है. अदानी पॉवर की मुंद्रा यूनिट भी ऐसी ही समस्या का सामना कर रही है. यानी भारत में कोयले का भंडार कम नहीं है. समस्याएं खास तौर से तीन ही सामने आ रही हैं. एक, बरसात में कोयली की खदानें भींग गई हैं. दो, खदानें अगर सूखी हैं तो कोरोना काल में बंद पड़ी होने की वजह से वे अभी-अभी शुरू हुई हैं और अभी तक उत्पादन में तेजी नहीं आ पाई है, तीन, अगर उत्पादन हो भी रहा है तो बरसात की वजह से कोयले का परिवहन प्रभावित हुआ है.