वित्त पर वित्तमंत्री

महंगाई के मुद्दे पर आखिरकार वित्तमंत्री ने सरकार का पक्ष रख दिया। सत्र के शुरू से ही विपक्ष इस पर चर्चा की मांग करता आ रहा था, मगर तबीयत ठीक न होने की वजह से वित्तमंत्री सदन में उपस्थित नहीं रह सकी थीं।

Update: 2022-08-03 05:10 GMT

Written by जनसत्ता: महंगाई के मुद्दे पर आखिरकार वित्तमंत्री ने सरकार का पक्ष रख दिया। सत्र के शुरू से ही विपक्ष इस पर चर्चा की मांग करता आ रहा था, मगर तबीयत ठीक न होने की वजह से वित्तमंत्री सदन में उपस्थित नहीं रह सकी थीं। अब वे आईं तो विपक्ष की इस आशंका को निराधार बताया कि देश आर्थिक मंदी की ओर जा रहा है। उन्होंने जोर देकर कहा कि तमाम कठिनाइयों के बावजूद देश की अर्थव्यवस्था मजबूत और दुनिया की सबसे तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था है। मगर विपक्ष उनके तर्कों से संतुष्ट नहीं हो सका। उसकी कुछ वजहें साफ हैं। अव्वल तो उन्होंने अर्थव्यवस्था की मजबूती को लेकर जो तर्क दिए वे सहज ही किसी के गले उतरने वाले नहीं थे।

फिर वित्तमंत्री का तेवर बेवजह आक्रामक था, जिसमें वे कई बातें तर्क से परे बोलती गईं। यह ठीक है कि महंगाई के मुद्दे पर चर्चा की मांग विपक्ष ने उठाई थी, पर आम लोग भी इस पर वित्तमंत्री से हकीकत जानना चाहते थे, इसलिए उनका जवाब देने का तरीका केवल विपक्ष पर हमला बोलने वाला नहीं होना चाहिए था। न जाने क्यों वे हर समय गुस्से में नजर आती हैं। इस तरह कई बार वे सामान्य ढंग से कही जाने वाली बातें भी इस अंदाज में कह जाती हैं कि विवाद पैदा हो जाता है।

वित्तमंत्री से संयत लहजे में और पारदर्शी ढंग से देश की वित्तीय स्थितियों के बारे में बात करने की अपेक्षा की जाती है। मगर वे हर समय जैसे विपक्ष से जिरह करने के अंदाज में बात करती हैं। इस बार भी अर्थव्यवस्था की मजबूती के बारे में बताते हुए उन्होंने जीएसटी संग्रह को ज्यादा महत्त्व दिया और आटा, चावल आदि वस्तुओं पर लगी जीएसटी को उचित ठहराते हुए तर्क दिया कि इसे सरकार नहीं तय करती, जीएसटी परिषद तय करती है और उसमें विपक्ष के लोग ही होते हैं।


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