गैस का घड़ा भर रहा
इनसान का घड़े से कितना गहरा रिश्ता रहा है कि हम इसे देख कर ही पाप तक का अंदाजा लगा लेते थे
इनसान का घड़े से कितना गहरा रिश्ता रहा है कि हम इसे देख कर ही पाप तक का अंदाजा लगा लेते थे। घड़ा बता देता था कि अमुक व्यक्ति कितना पाक दामन है। वक्त बदल गया, अब फ्रिज यह तो बता देता है कि मालिक का रुतबा क्या है, लेकिन पाप नहीं बता पाता। फिर भी घड़ा बेकार नहीं हुआ, आजकल गैस से भर जाता है। हर व्यक्ति के अस्तित्व के साथ गैस जुड़ गई है, बल्कि हर किसी की हैसियत का पता अब गैस से ही चलता है। जब से उज्ज्वला योजना आई है, रसोई गैस ने गांव और शहर की दूरी घटा दी है। अमीर-गरीब के बीच इज्जत बराबर कर दी है, क्योंकि सिलंेडर तो भरता नहीं, गैस का घड़ा भर जाता है। नेता जी कहते हैं कि उन्होंने गरीब गृहिणियों को इससे जोड़ दिया, जबकि हकीकत में खाली सिलेंडर भरवाने का सोच-सोच कर ही पेट में गैस हो जाती है। गांव के सरकारी डाक्टर के पास जाते हैं तो पता चलता है कि साहब गैस की वजह से छुट्टी पर हैं। हमने पूछा क्या डाक्टर साहब को हुई है, तो जवाब मिला बेगम साहब के पेट में गैस रही होगी जो आदर्श पति बनने के लिए वह घर में सेवा कर रहे हैं। हमने हिम्मत करके डिस्पेंसर के उपस्थित न होने का पूछा तो पता चला कि उसकी रसोई के लिए गैस नहीं थी, तो बिन खाए कैसे आते। वैसे खुशामद भी एक तरह की गैस ही है। यह खेल बड़े कमाल का है और फुटबाल की तरह हवा भरने जैसा है। कोई नेता जितने प्रशंसक अपने साथ लेकर चलता है, उससे उसके भीतर पहुंच रही हवा मालूम हो जाती है। हवा से याद आया कि माहौल तो घर से ही बिगड़ रहा है। घर-घर को चलाने के लिए हवा चाहिए और जिसका अंदाजा स्थानीय निकाय, विधानसभा से संसदीय चुनावों तक होता है।