दूरगामी महत्त्व का कदम

भले आम तौर पर अमेरिकी साम्राज्यवाद की मुख्य ताकत उसकी सैन्य क्षमता को माना जाता हो

Update: 2021-07-22 15:39 GMT

भले आम तौर पर अमेरिकी साम्राज्यवाद की मुख्य ताकत उसकी सैन्य क्षमता को माना जाता हो, लेकिन असल में उसकी शक्ति का आधार वैश्विक अर्थव्यवस्था पर उसकी पकड़ है। अमेरिका की ये पकड़ का मुख्य आधार डॉलर का वर्चस्व है। सभी देश वैश्विक कारोबार के लिए डॉलर पर निर्भर रहते हैं।

इस खबर की भारतीय मीडिया में ज्यादा चर्चा नहीं हुई, लेकिन यह रूस का बहुत गंभीर और दूरगामी का महत्त्व का फैसला है। इसलिए कि भले आम तौर पर अमेरिकी साम्राज्यवाद की मुख्य ताकत उसकी सैन्य क्षमता को माना जाता हो, लेकिन असल में उसकी शक्ति का आधार वैश्विक अर्थव्यवस्था पर उसकी पकड़ है। अमेरिका की ये पकड़ का मुख्य आधार डॉलर का वर्चस्व है। सभी देश वैश्विक कारोबार के लिए डॉलर पर निर्भर रहते हैं। इसीलिए अमेरिका किसी भी देश पर प्रतिबंध लगा कर उसकी कमर तोड़ देने में सफल हो जाता है।
रूस वर्षों से अमेरिकी प्रतिबंध झेल रहा है। तो अब उसने जवाबी कदम उठाया है। पिछले दिनों रूस ने अपने विदेशी मुद्रा भंडार में अलग-अलग मुद्राओं की भूमिका के बारे में नई योजना का एलान किया था। उसके तहत उसने अपने विदेशी मुद्रा भंडार में डॉलर का हिस्सा शून्य कर दिया। इस प्रक्रिया को डी-डॉलराइजेशन यानी डॉलर से मुक्ति कहा जा रहा है। चीन और ईरान भी इस प्रक्रिया में शामिल हैं। रूस के एलान के मुताबिक उसके भंडार में अब यूरो 39.7 फीसदी की हिस्सेदारी से सबसे बड़ी मुद्रा होगा। चीनी मुद्रा युवान की हिस्सेदारी अब 30 प्रतिशत कर दी गई है। इनके अलावा ब्रिटिश पाउंड का हिस्सा पांच फीसदी, जापानी येन का 4.7 प्रतिशत और स्वर्ण का 20.2 प्रतिशत होगा।
गौरतलब है कि रूस ऐसा पहला बड़ा देश है, जिसने अपने विदेशी मुद्रा भंडार में डॉलर का हिस्सा शून्य कर दिया है। साफ है, अमेरिकी प्रतिबंधों के असर से बचने के लिए रूस ने ये बड़ा कदम उठाया है। डॉलर में कारोबार पर अमेरिकी प्रतिबंधों से बहुत बुरा असर पड़ता है। रूस के वित्त मंत्रालय ने एक आधिकारिक बयान में कहा है कि इस समय दुनिया के अर्थव्यवस्था और भू-राजनीति संबंधी रूझानों को देखते हुए उसने डॉलर से खुद को मुक्त करने का फैसला किया। उसने यूरो और युवान की भूमिका इसलिए बढ़ाई है, क्योंकि यूरोपियन यूनियन और चीन रूस के सबसे बड़े व्यापार भागीदार बन कर उभरे हैं। जाहिर है, रूस के इस कदम से चीन खुश है। उसका मनोबल इस बात से और ज्यादा बढ़ा है कि रूस ने अपने विदेशी मुद्रा भंडार में अब चीनी मुद्रा युवान को अधिक जगह देने का फैसला किया है। साफ है, दुनिया में एक नया शक्ति संतुलन उभर रहा है।

क्रेडिट बाय नया इंडिया

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