आस्था बनाम सुरक्षा
आखिरकार उत्तराखंड सरकार ने हिचक तोड़ते हुए कांवड़ यात्रा रद्द करने का फैसला किया है। अब देखना है, उत्तर प्रदेश और हरियाणा सरकारों का इस पर क्या रुख रहता है।
आखिरकार उत्तराखंड सरकार ने हिचक तोड़ते हुए कांवड़ यात्रा रद्द करने का फैसला किया है। अब देखना है, उत्तर प्रदेश और हरियाणा सरकारों का इस पर क्या रुख रहता है। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री ने अधिकारियों के साथ कई दौर का मंथन कर कह दिया था कि कोविड नियमों का पालन करते हुए कांवड़ यात्रा संपन्न कराई जाए। आदेश भी दे दिया था कि प्रशासन कांवड़ियों के रास्तों में बिजली, पानी, ठहराव आदि का समुचित प्रबंध करे। हरियाणा सरकार भी अपने यहां कांवड़ यात्रा संपन्न कराने के पक्ष में है। इन दोनों राज्यों के फैसलों को देखते हुए उत्तराखंड सरकार तय नहीं कर पा रही थी कि कावड़ यात्रा की इजाजत दे या नहीं। उधर भारतीय चिकित्सा संगठन यानी आइएमए ने उत्तराखंड सरकार को पत्र लिख कर कहा था कि वह कांवड़ यात्रा का आयोजन न होने दे, नहीं तो तीसरी लहर जल्दी फैल सकती है। पहले ही उत्तराखंड सरकार हरिद्वार में कुंभ का आयोजन कराने को लेकर काफी किरकिरी झेल चुकी है। कहा जाता है कि उसकी वजह से कोरोना की दूसरी लहर तेजी से फैली थी। पुष्कर सिंह धामी ने अभी कुछ दिनों पहले ही राज्य की कमान संभाली है और उनके लिए कांवड़ यात्रा को बिना बिचारे इजाजत देना मुश्किलें खड़ी कर सकता था। अच्छा हुआ कि इस मामले में उन्होंने दृढ़ता का परिचय दिया।
पिछले साल कोरोना की वजह से कांवड़ यात्रा पर रोक लगा दी गई थी। इस बार पिछले साल की तरह कोरोना की लहर नहीं है, काफी उतार पर है। इसलिए उत्तर प्रदेश, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश जैसी कुछ सरकारों का मानना है कि लोगों की आस्था से जुड़े इस आयोजन को संपन्न कराने में खतरे की कोई बात नहीं। मगर उन्हें यह नहीं भूलना चाहिए कि कोरोना की तीसरी लहर की चेतावनी लगातार जारी की जा रही है, बल्कि कुछ चिकित्सा विज्ञानियों ने तो अपने अध्ययनों में यह भी पाया है कि तीसरी लहर फैलनी शुरू हो चुकी है। यह ठीक है कि सरकारों को लोगों की आस्था में हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए, पर जब मामला लोगों की सेहत और उनके जीवन की सुरक्षा का हो, तो कठोर फैसला करना आवश्यक हो जाता है। ऐसा अनेक बार हुआ है कि सुरक्षा कारणों के चलते अमरनाथ यात्रा रोक दी गई। उत्तराखंड में भी कोरोना के चलते चारधाम यात्रा रद्द की गई। इसलिए इस बार भी कांवड़ यात्रा रोक देने से लोगों की आस्था पर शायद ही चोट पहुंचे।
कांवड़ यात्रा बहुत असंगठित और अनियोजित तरीके से संपन्न होती है। पिछली कांवड़ यात्रा में करीब तीस लाख लोग हरिद्वार पहुंचे थे। लोग गंगा से जल लेकर सैकड़ों किलोमीटर पैदल चलते हुए अपने स्थानीय मंदिर पहुंचते और भगवान शिव का जलाभिषेक करते हैं। तमाम सरकारी चौकसी के बावजूद हर साल ही कांवड़ यात्रा में कुछ अप्रिय घटनाओं के सामाचार मिल जाते हैं। ऐसे में उत्तर प्रदेश और हरियाणा सरकारों के लिए कांवड़ियों से कोरोना नियमों का पालन कराना कहां तक संभव हो पाएगा, कहना मुश्किल है। यह भी ठीक है कि कावड़ यात्रा से स्थानीय व्यापारियों और पुरोहितों के कारोबार को कुछ गति मिलेगी, मगर महामारी की कीमत पर कमाई के अवसर उपलब्ध कराना तर्कसंगत निर्णय नहीं माना जा सकता। जहां तक आस्था का सवाल है, तो यों भी हमारे देश में 'मन चंगा तो कठौती में गंगा' की धारणा पुष्ट है। पहले ही उत्तर प्रदेश सरकार ग्राम पंचायत चुनावों के दौरान कोरोना फैलने के आरोप से मुक्त नहीं हो पाई है। फिर अब उसे कांवड़ यात्रा की जिद क्यों ठाननी चाहिए।