अभिव्यक्ति की सीमा

काफी जद्दोजहद के बाद फेसबुक ने यह साफ कर दिया है कि वह भारत के सूचना तकनीक नियमों के प्रावधानों का अनुपालन करेगा।

Update: 2021-05-26 01:51 GMT

काफी जद्दोजहद के बाद फेसबुक ने यह साफ कर दिया है कि वह भारत के सूचना तकनीक नियमों के प्रावधानों का अनुपालन करेगा। हालांकि इसके साथ ही फेसबुक की ओर से यह भी कहा गया है कि सरकार के साथ उन मुद्दों पर विचार जारी रहेगा, जिन पर अधिक संपर्क रखने की जरूरत है। जाहिर है, सरकार ने जिन नियमों की घोषणा की है, फेसबुक ने अब उस पर अनुकूल प्रतिक्रिया दी है, लेकिन सोशल मीडिया के तमाम मंचों की जो प्रकृति रही है, उसमें यह देखने की बात होगी कि इनके उपयोगकर्ताओं और यह सुविधा मुहैया कराने वाले पक्ष नियमों पर व्यवहार में कितना अमल कर पाते हैं।

अब तक फेसबुक, ट्विटर या अन्य मंचों पर लोग जिस तरह खुद को मुक्त पाते रहे हैं तो उस पर लगाई गई सीमाएं कितनी व्यावहारिक रह पाएंगी! दरअसल, अगर ये मंच भारत में अपना दायरा बचाए रखना चाहते हैं तो उनके सामने यहां के नियम-कानूनों को मानना एक स्वाभाविक मजबूरी है। लेकिन उन्हें यह भी देखना होगा कि इन नियम-कायदों का असर उनके उपयोगकर्ताओं की संख्या और उनकी गतिविधियों पर नकारात्मक तो नहीं पड़ रहा है। गौरतलब है कि सरकार ने नए नियमों की घोषणा फरवरी में की थी। इनके तहत फेसबुक, ट्विटर, इंस्टाग्राम और वाट्सऐप को अपने मंचों को अतिरिक्त जांच-परख की व्यवस्था करनी होगी।
इसके अलावा, शिकायतों के निपटान के लिए इन कंपनियों को अधिकारियों की नियुक्ति करनी होगी। इन नियमों पर अमल के लिए समय-सीमा पच्चीस मई तय की गई थी। शुरुआत में लगभग सभी मंचों ने इसे लेकर कोई खास सक्रियता नहीं दिखाई। यही वजह है कि इन मंचों के समय-सीमा समाप्त होने के बाद बंद होने तक की आशंका जताई गई। लेकिन फेसबुक के ताजा रुख के बाद यह साफ लग रहा है कि अब ये कंपनियां व्यावहारिक नीतियों के सहारे अपना काम करना चाहती हैं। इसकी एक बड़ी वजह यह भी है कि भारत में भारी तादाद में मौजूद अपने उपयोगकर्ताओं को नहीं गंवाना चाहती हैं। लेकिन अगर इन मंचों पर लागू प्रावधान भविष्य में किसी तरह के नियंत्रण का औजार या लोगों की अभिव्यक्ति पर अंकुश का जरिया बनने लगे और इसकी वजह से लोग इन मंचों से दूर होने लगें तब एक बड़ी समस्या खड़ी होगी। ऐसी स्थिति में निश्चित रूप से इनके लिए फिलहाल एक बीच का रास्ता चुनना बेहतर विकल्प होगा।
सही है कि अगर सोशल मीडिया के मंचों पर की गई अभिव्यक्तियां देश की संप्रभुता या किसी व्यक्ति की गरिमा को नुकसान पहुंचाती हैं, अश्लीलता से जुड़े नियमों के खिलाफ हैं तो उसे नियंत्रित करने की जरूरत है। इसीलिए सरकार ने नए लागू प्रावधानों में यह व्यवस्था भी की है कि अगर किसी सामग्री पर सरकार की ओर से चिंता जताई जाती है तो सोशल मीडिया कंपनियों को उसे छत्तीस घंटे के भीतर हटाना होगा। सवाल है कि यह कैसे तय होगा कि सरकार की ओर से जताई जाने वाली सभी आपत्तियां किसी रूप में लोकतंत्र और लोगों की अभिव्यक्ति के अधिकार को चोट नहीं पहुंचाएंगी।
इन आपत्तियों की परिभाषा कौन तय करेगा और उसमें संबंधित पक्षों को अपनी बात रखने की कितनी गुंजाइश होगी? यों फेसबुक की ओर से इस बात की प्रतिबद्धता जताई गई है कि लोग उसके मंच के जरिए मुक्त और सुरक्षित तरीके से अपने विचार व्यक्त कर सकेंगे, मगर आने वाले दिन यह बताएंगे कि नए प्रावधानों के लागू होने के बाद आपत्तिजनक सामग्रियों पर सरकारी निगरानी के समांतर लोगों के लोकतांत्रिक अधिकार और अभिव्यक्ति की आजादी के बीच फेसबुक, ट्विटर या दूसरे सोशल मीडिया के मंच कैसे संतुलन बना पाते हैं।

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