सम्पादकीय: अमेरिकी बदले के बावजूद

काबुल हवाई अड्डे पर हुए हमले में 13 अमेरिकी सैनिकों की मौत का अमेरिका ने बदला ले लिया है

Update: 2021-08-30 17:20 GMT

afghanistan kabul blast american इसमें शक है कि तालिबान में दूसरे आतंकवादी गुटों से निपटने की क्षमता है। या उसमें ऐसा करने की इच्छाशक्ति है। तो कुल सूरत यह है कि अफगानिस्तान में हालात ऐसे बनते दिखते हैं, जिससे पूरे क्षेत्र की स्थिरता के लिए चुनौती पैदा होगी। तालिबान की कामयाबी के साथ यही भय पहले से था।

काबुल हवाई अड्डे पर हुए हमले में 13 अमेरिकी सैनिकों की मौत का अमेरिका ने बदला ले लिया है। इस हमले से अमेरिका में नाराजगी थी। उसे शांत करने के लिए राष्ट्रपति जो बाइडेन ने कहा था कि जिन लोगों ने ये हमला किया, अमेरिका उन्हें ढूंढ निकालेगा। शनिवार सुबह अमेरिका ने अफगानिस्तान में ड्रोन हमला किया। उसके बाद बताया गया कि हमलावर को मार डाला गया है। इससे अमेरिकी जनमत एक हद तक शांत होगा। लेकिन यहां मुद्दा अमेरिकी जनमत नहीं है। बल्कि अफगानिस्तान में क्या होगा, यह असल सवाल है। तमाम सुरक्षा विशेषज्ञों की राय है कि काबुल हवाई अड्डे पर हमला करने वाले लोगों के मारे जाने के बावजूद अफगानिस्तान में चुनौती कम नहीं हुई है। हवाई अड्डे पर हमला आईएसआईएस-के नाम के संगठन ने की। इससे ये आशंका साबित हो गई है कि तालिबान के सत्ता में आने के बाद अफगानिस्तान एक बार फिर से आतंकवादी संगठनों का अड्डा बना जाएगा। आगे ऐसे और हमले होने की चेतावनी खुद अमेरिकी खुफिया एजेंसियों ने दी है।
सामने आई जानकारी के मुताबिक 2015 में आईएसआईएस-के अस्तित्व में आया था। असल में यह अल-कायदा से निकला गुट है। इसका गठन अल-कायदा और हक्कानी गुट की पाकिस्तान शाखाओं से निकले दहशतगर्दों ने किया था। इसका मकसद पूरी दुनिया में इस्लामी राज कायम है। अब ये अंदेशा सही साबित हुआ है कि तालिबान के सत्ता में आने का लाभ उठा कर आईएसआईएस-के अपनी गतिविधियां तेज करेगा। विशेषज्ञों का कहना है कि तालिबान को वह वैसी पसंद नहीं करता। अब तालिबान अफगानिस्तान में 'व्यवस्था' बन गया है तो वह व्यवस्था विरोधी भावना का लाभ उसे मिलेगा। यानी आईएसआईएस-के के उदय के लिए स्थितियां अनुकूल हैं। आईएसआईएस-के का तालिबान से मतभेद खिलाफत कायम करने के सवाल पर ही है। आईएसआईएस-के दुनिया भर में खिलाफत कायम करना चाहता है।
तालिबान खुद को अफगानिस्तान में सीमित रखना चाहता है। अमेरिका, चीन, रूस और कई दूसरे देशों ने तालिबान से कहा है कि वह अपने देश को आतंकवाद का अड्डा ना बनने दे। तालिबान ने ये वादा किया हुआ है। लेकिन विशेषज्ञों को शक है कि तालिबान में ऐसा करने की क्षमता है। या उसमें ऐसा करने की इच्छाशक्ति है। तो कुल हालात यह है कि अफगानिस्तान में हालात ऐसे बनते दिखते हैं, जिससे पूरे क्षेत्र की स्थिरता के लिए चुनौती पैदा होगी। तालिबान की कामयाबी के साथ यही भय पहल. नया इण्डिया 
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