देश विरोधी हरकतों के कारण आवश्यक थी पीएफआइ पर पाबंदी, फिर से संगठित होने को लेकर रहना होगा सतर्क
सोर्स- Jagran
संजय गुप्त। केरल से निकलकर देश भर में विस्तार करने वाला पापुलर फ्रंट आफ इंडिया यानी पीएफआइ नामक संगठन जैसी गतिविधियों में लिप्त था, उन्हें देखते हुए उस पर पाबंदी का फैसला आवश्यक था। यह प्रतिबंध पीएफआइ के साथ अन्य विघटनकारी और आतंकी तत्वों के दुस्साहस का दमन करने में सहायक बनेगा। ऐसा होना भी चाहिए, क्योंकि ऐसे तत्व देश की एकता और अखंडता के लिए खतरा हैं। पीएफआइ न केवल देश विरोधी हरकतों को अंजाम दे रहा था, बल्कि भारत विरोधी ताकतों से भी मिला हुआ था। पाकिस्तान ऐसा काम पहले से करता चला आ रहा है। भारत को अस्थिर करने के लिए यहां के मुसलमानों को गुमराह कर उन्हें अतिवाद और आतंक की ओर धकेलना उसका एजेंडा है।
पीएफआइ उस सिमी का बदला हुआ रूप है, जिसे उसकी आतंकी गतिविधियों के कारण 2001 में प्रतिबंधित किया गया था। माना जाता है कि सिमी के सदस्यों ने ही पीएफआइ का गठन किया और समय के साथ अपने कई सहयोगी संगठन खड़े कर लिए। चूंकि वे भी देश विरोधी गतिविधियों में लिप्त थे, इसलिए पीएफआइ के साथ उसके आठ सहयोगी संगठनों पर भी प्रतिबंध लगाया गया।
प्रतिबंध के पहले पीएफआइ के ठिकानों पर जो व्यापक अभियान छेड़ा गया, वह केंद्रीय गृह मंत्रालय और उसके तहत काम करने वाली विभिन्न एजेंसियों की क्षमता को भी बयान करता है और उनके बीच समन्वय के साथ राज्यों के पुलिस प्रशासन के सहयोग भाव को भी। यह गोपनीय अभियान एक साथ 15 राज्यों में चला। इनमें कई राज्य गैर भाजपा दलों द्वारा शासित थे, लेकिन इससे अभियान में कोई बाधा नहीं आई। देशहित के मामलों में ऐसा ही होना चाहिए। चूंकि अभियान व्यापक था, इसलिए गोपनीयता बनाए रखने के लिए राज्यों की पुलिस को अंतिम समय जानकारी दी गई और आपात स्थिति से निपटने के लिए अर्द्धसैनिक बलों का भी सहयोग लिया गया।
छापेमारी के दौरान पीएफआइ के ठिकानों से जैसे तथ्य और दस्तावेज मिले, उनसे यही पता चलता है कि उसके मंसूबे बेहद खतरनाक थे। उसने नेताओं से लेकर जजों, पुलिस अधिकारियों, अहमदिया मुसलमानों और यहूदियों को भी निशाना बनाने की साजिश रच रखी थी। वह 2047 तक भारत को इस्लामी राष्ट्र बनाने का भी इरादा रखता था। वह न केवल अवैध तरीके से विदेश से धन हासिल कर रहा था, बल्कि उसका इस्तेमाल भी आतंकी कृत्यों के लिए कर रहा था।