ड्रग्स केसः उठते सवाल

मुम्बई पोत ड्रग्स केस के बाद फिल्म उद्योग का शाहरुख खान के बेटे आर्यन खान के समर्थन में खड़े होना एक स्वाभाविक सामाजिक कवायद मानी जा सकती है

Update: 2021-10-08 03:25 GMT

आदित्य नारायण चोपड़ा: मुम्बई पोत ड्रग्स केस के बाद फिल्म उद्योग का शाहरुख खान के बेटे आर्यन खान के समर्थन में खड़े होना एक स्वाभाविक सामाजिक कवायद मानी जा सकती है लेकिन सोशल मीडिया प्लेटफार्मों पर जो ट्रेंड चल रहा था उसका अर्थ यही है कि आर्यन खान पूरी तरह से निर्दोष है और उसे जानबूझ कर फंसाया जा रहा है। हजारों की संख्या में ट्वीट हो रहे हैं कि ''कोई ड्रग्स बरामद नहीं हुआ, ड्रग्स का सेवन नहीं किया गया, मोबाइल से कोई लीड नहीं मिला, सिद्ध होता है कि आर्यन खान निर्दोष हैं।'' यह ट्रेंड पीआर प्रेक्टिस ही है ताकि शाहरुख खान की ब्रांड वैल्यू को नुक्सान न पहुंचे। यह ट्रेंड अपने आप में चिंता का विषय है। एनसीबी सुशांत सिंह की मौत के बाद से लगातार छापेमारी कर रही है। ड्रग्स भी पकड़े जा रहे हैं और पैडलर भी पकड़े जा रहे हैं। सभी नामी-गिरामी सितारों से पूछताछ भी हुई। ऐसा लगता है कि किसी को इस बात की चिंता नहीं कि ड्रग्स हमारी युवा पीढ़ी को खोखला करता जा रहा है, जिसके भयंकर परिणाम समाज को भुगतने ही होंगे। जितनी बड़ी मात्रा में ड्रग्स पकड़े गए हैं, उससे साफ है कि देश के बेटे-बेटियों को नशे की लत का आदी बनाया जा रहा है। ड्रग्स केस में हाईप्रोफाइल लोगों के नाम आ रहे हैं। ड्रग्स लेना आम आदमी के बस की बात नहीं, जिनके पास अकूल धन है उन्होंने अपनी अय्याशी के लिए रेव पार्टियो को ईजाद कर लिया है। इस गम्भीर मसले पर समाज का मानसिक दिवालियापन नजर आ रहा है। बेतुके और अनर्गल तर्कों से आर्यन के समर्थन में ट्रेंड चलाया जा रहा है। किसी भी जांच एजैंसी को सरकार का पिछलग्गू बताकर उसे बदनाम करना बहुत आसान है। इस केस में भी नार्को​टेस्ट कंट्रोल ब्यूरो की कार्यप्रणाली पर भी सवाल उठाए जाने लगे हैं। राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के प्रवक्ता नवाब मलिक ने भी एनसीबी की कार्यप्रणाली पर गम्भीर सवाल खड़े किए हैं। उन्होंने आरोप लगाया की आर्यन खान को एनसीबी आफिस लाते समय उसके साथ सेल्फी लेने वाला शख्स कौन है। उस शख्स को आर्यन का हाथ पकड़ कर लाते हुए भी देखा गया। एक और शख्स को एक अन्य आराेपी को लाते देखा गया। एनसीबी का कहना है कि यह दोनों स्वतंत्र गवाह हैं, जबकि नवाब मलिक ने इनमें से एक का संबंध एक राजनीतिक दल से होने का दावा किया है। अगर इन आरोपों पर गम्भीरता से विचार किया जाए तो सवाल तो बनते ही हैं। क्या किसी स्वतंत्र गवाह को आरोपी के साथ सेल्फी लेने और उनका हाथ पकड़ कर एनसीबी दफ्तर में ले जाने का अधिकार है? क्या इन दोनों को एजैंसी ने एनडीपीएम कानून के तहत कार्रवाई करने का अधिकार दिया है। अगर यह एनसीबी के आदमी नहीं हैं तो फिर यह कैसे आरोपियों को हैंडल कर रहे थे। राकांपा नेता ने तो क्रूज ड्रग्स केस को फर्जी करार देते हुए आरोप लगाया कि एजैंसी फिल्म इंडस्ट्री और राज्य सरकार को बदनाम करने में लगी हुई है। ऐसे आरोपों से एनसीबी की विश्वसनीयता पर आंच आती है। उसकी कार्यशैली संदेह के घेरे में आती है। हाईप्रोफाइल केस काफी संवेदनशील होते हैं। इसलिए जरूरी है कि एनसीबी ड्रग्स मामले की जांच निष्पक्ष ढंग से और ईमानदारी से करे। ड्रग्स केस में अभी कई प​रतें खुलेंगी, किसके तार किससे जुड़े निकलेंगे यह जांच का विषय है।संपादकीय :कानून का शासनटू फ्रंट वार : भारत है तैयारकश्मीर मे फिर मजहबी खून!कल , आज और कल मुबारककिसान आन्दोलन का हल?पैंडोरा पेपर्स : खुलेगी भारतीयों की कुंडलीदूसरी तरफ जो लोग इसमें हिन्दू-मुस्लिम एंगल निकाल रहे हैं या कई मुद्दों को दबाने के लिए ड्रग्स केस उछालने के बेतुके आरोप लगा रहे हैं, यह भी अनुचित है। ड्रग्स की समस्या बहुत गम्भीर हो चुकी है। भारत में हर साल दो से चार टन चरस और कम से कम 300 टन गांजा बरामद किया जाता है। इसके अलावा कोकीन, हेरोइन भी भारी मात्रा में पकड़ी जाती है। सामाजिक न्याय मंत्रालय की 2019 की रिपोर्ट के मुताबिक देश में नशे के लिए शराब के बाद सबसे ज्यादा सेवन भांग, गांजा, चरस और अफीम का किया जाता है। हर वर्ष भारत में ड्रग्स के व्यापार का आकार काफी बढ़ चुका है। ड्रग्स एक सामाजिक समस्या ही नहीं बल्कि चिकित्सकीय एवं मनोवैज्ञानिक समस्या है। इससे परिवार टूटते हैं और समाज संक्रमित होता है। यह ऐसा दलदल है जिससे परिवार, समाज और राष्ट्र जर्जर होता है। हमारी चिंता यह होनी चाहिए कि ड्रग्स फ्री इंडिया कैसे बने। इस समस्या से सिर्फ कानून बनाकर नहीं निपटा जा सकता है बल्कि इस पर नियंत्रण के लिए पारिवारिक एवं सामाजिक स्तर पर प्रयासों की जरूरत है। कोई सेलिब्रिटी हो या आम आदमी, अभिभावकों को अपने बच्चों को भटकाव और भ्रम से बचाने के लिए उन्हें ध्येयवादी बनाने की जिम्मेदारी निभानी होगी। बच्चों को केवल पैसा नहीं बल्कि भावनात्मक संरक्षण भी प्रदान करना होगा।

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