ड्रोन से बढ़ेगा विकास का दायरा
डॉट कॉम बबल या इंटरनेट बूम के दौरान भारतीय सॉफ्टवेयर प्रोग्रामर्स की मांग में बेतहाशा बढ़ोत्तरी हुई थी
ड्रोन अथवा मानवरहित हवाई वाहन (यूएवी) ऐसे छोटे विमानों को कहा जाता है, जिन्हें रिमोट के जरिए संचालित किया जाता है. पहले ड्रोन का नाम सुनते ही सबसे पहली छवि जो दिमाग में उभरती थी, वह अमूमन संघर्ष, युद्ध, आतंकी हमले या फिर जासूसी की ही होती थी. दरअसल, ऐसी घटनाओं ने ही आम भारतीय जनमानस का शुरुआती परिचय ड्रोन से कराया था.
फिलहाल ड्रोन धीरे-धीरे इस नकारात्मक छवि से आगे निकल रहा है. एक समय संदिग्ध निगाह से देखे जाने वाले ड्रोन बेहद तेजी से भारतीय अर्थव्यवस्था का एक महत्वपूर्ण हिस्सा बनने के लिए तैयार हैं. गौरतलब है कि भारत सरकार ड्रोन को लेकर लोगों के माइंडसेट को बदलने के लिए ही इसी साल 25 अगस्त को नई ड्रोन नीति लेकर आई है.
हाल ही में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 'मन की बात' कार्यक्रम के संबोधन में नई ड्रोन नीति का भी जिक्र किया. मोदी ने कहा कि देश में नई ड्रोन नीति ने बहुत-सी चीजों को आसान किया है, पहले तो लोग ड्रोन के नाम से ही तौबा कर लेते थे, लेकिन अब चीजें बहुत आसान हो गई है. पहले इस क्षेत्र में इतने नियम, कानून और प्रतिबंध लगाकर रखे गए थे कि ड्रोन की असली क्षमता का इस्तेमाल भी संभव नहीं था.
प्रधानमंत्री ने कहा कि जिस तकनीक को अवसर के तौर पर देखा जाना चाहिए था, उसे संकट के तौर पर देखा गया. वास्तव में विभिन्न क्षेत्रों में ड्रोन की उपयोगिता को देखते हुए नई उदार ड्रोन नीति गेम चेंजर साबित हो सकती है. ड्रोन का इस्तेमाल अनेक व्यावसायिक प्रयोजनों के लिए किया जा सकता है. नब्बे के दशक में भारत को एक सूचना प्रौद्योगिकी (आईटी) हब माना जाता था.
डॉट कॉम बबल या इंटरनेट बूम के दौरान भारतीय सॉफ्टवेयर प्रोग्रामर्स की मांग में बेतहाशा बढ़ोत्तरी हुई थी. एक वक्त था जब बेंगलुरु वर्ब बन गया था. अमेरिका में पूछा जाता था – हैव यू बीन बैंग्लोर्ड? मतलब अमेरिका में उसकी नौकरी छूट गई और उसका काम आउटसोर्स होकर बेंगलुरु चला गया. अब आपको ऐसा लग सकता है कि यह उपलब्धि सरकार के कुछ महान नीतिगत फैसलों की बदौलत ही मिली होगी, जबकि वास्तविकता में ऐसा नहीं था.
आपको जानकर ताज्जुब होगा कि ये मुमकिन इसलिए हो पाया था क्योंकि उस समय हमारे पास सूचना प्रौद्योगिकी को लेकर कोई नीति ही नहीं थी. शास्त्रों में कहा गया है – अति सर्वत्र वर्जयेत्. किसी भी चीज की 'अति' हमेशा बुरी और हानिकारक होती है, फिर चाहे वह प्रतिबंध हो या छूट. उसी तरह से ड्रोन सेक्टर में इतने नियम और प्रतिबंध लगाकर रखे गए थे कि इसकी वास्तविक क्षमता का इस्तेमाल ही संभव नहीं था.
अगर किसी भी काम के लिए ड्रोन उड़ाना होता था तो इसके लिए लाइसेंस और अनुमति लेने का भारी जंझट था. भारत की नई ड्रोन नीति को भविष्य को ध्यान में रखते हुए तैयार किया गया है. ड्रोन का इस्तेमाल कई तरह के कार्यों को करने के लिए किया जा सकता है. ऐसे दुर्गम क्षेत्र जहां मानवयुक्त विमानों आदि का पहुंचना बेहद कठिन तथा जोखिम भरा और कभीकभार नामुमकिन होता है, वहां ड्रोन बहुत आसानी से पहुंच सकते हैं.
दुनियाभर में ऐसे ही जटिल कार्यों को सरल बनाने के लिए लगभग सभी क्षेत्रों में ड्रोन टेक्नोलॉजी का उपयोग किया जा रहा है. जैसे- सीमाओं की निगरानी, पुरातात्विक सर्वेक्षण, पुलिस और सेना के लिए निगरानी, वेयरहाउस में सामान की गिनती और टैगिंग, ऊंचे टावरों और गहरी सुरंगों के भीतर जाकर हालात का पता लगाना, फोटोग्राफी और फिल्मों की शूटिंग, खेलों की रिपोर्टिंग, लुप्तप्राय प्रजातियों का संरक्षण, खदानों के भीतर जाकर विषाक्त गैस आदि का पता लगाना, जंगल की आग बुझाने, तेल और गैस पाइपलाइनों पर निगरानी, जमीन का सर्वे और अतिक्रमण के बारे में जानकारी, रोगों को ट्रैक करने के लिए, वनों और वन्य जीवों की निगरानी, ई-कॉमर्स कंपनियों द्वारा वस्तुओं की डिलीवरी, रेल और सड़क मार्गों का सर्वेक्षण, कृषि कार्यों, आपदा प्रबंधन, कचरा प्रबंधन आदि के लिए ड्रोन तकनीक काफी उपयोगी साबित हो रहा है.
नई ड्रोन नीति के तहत सरकार ने नियमों की लंबी-चौड़ी लिस्ट को हटाकर ड्रोन उड़ान को प्रोत्साहित किया है. यही कारण है कि भारत में ड्रोन स्टार्टअप कंपनियां काफी तेजी से बढ़ रही हैं. इस नीति ने ड्रोन उड़ान को लेकर न सिर्फ नियमों को उदार बनाया है, बल्कि रोजगार सृजन के लिए नए रास्ते भी खोले हैं. नई ड्रोन नीति के आगमन के बाद कई ड्रोन स्टार्टअप्स में विदेशी और देसी निवेशकों ने निवेश किया है.
कई कंपनियां भारत में अपनी निर्माण इकाइयां भी स्थापित कर रहीं हैं. थल सेना, वायु सेना और जल सेना ने भारतीय ड्रोन कंपनियों को 500 करोड़ रूपये से ज्यादा के ऑर्डर भी दिए हैं. नई ड्रोन नीति को एयर टैक्सी की दिशा में बढ़ाया गया पहला कदम भी माना जा रहा है. सुनने में अभी यह भले ही अजीब लग रहा होगा लेकिन दुनियाभर में वैज्ञानिक और इंजीनियर हवाई टैक्सी पर शोधरत हैं और दिन-ब-दिन इसको लेकर कई नए स्टार्टअप भी सामने आ रहे हैं.
दुनिया में सबसे ज्यादा ड्रोन का प्रयोग सैन्य गतिविधियों को अंजाम देने में होता है. सैन्य उपयोग के लिए ड्रोन का कारोबार अरबों डॉलर का है. ड्रोन का प्रयोग टोह लेने या रेकी करने, खुफिया जानकारी जुटाने या जासूसी के लिए किया जाता है. पहाड़ी क्षेत्रों में दुर्गम इलाकों, समुद्र या बॉर्डर एरिया में जहां सेना की कोई टुकड़ी या सैनिक नहीं पहुंच सकते, वहां ड्रोन बहुत ही उपयोगी सिद्ध होते हैं.
यह बात सही है कि भविष्य में ड्रोन को लेकर सबसे बड़े विकास कार्य सैन्य क्षेत्र में ही होंगे, लेकिन नई ड्रोन नीति के आने से इसका वाणिज्यिक दायरा भी कहीं ज्यादा व्यापक होगा.
विशेषज्ञों के मुताबिक नई ड्रोन नीति का उद्देश्य भारत को ड्रोन के क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनाना है. यह ड्रोन और नए स्टार्टअप के लिए नई व्यावसायिक नीतियां और अपने लिए नए व्यावसायिक रास्ते बनाने के लिए नए युग की शुरुआत है. इससे भविष्य में न सिर्फ रोजगार की संभावनाएं पैदा होंगी, बल्कि कम खर्च में बेहतर परिणाम भी हासिल किए जा सकेंगे.
ड्रोन विशेष रूप से दूर-दराज के ग्रामीण क्षेत्रों तक पहुंच, कई तरह के काम करने की क्षमता और इस्तेमाल में आसान होने की वजह से आर्थिक संवृद्धि और रोजगार उत्पन्न करने में महत्वपूर्ण योगदान दे सकता है. पहले की ड्रोन नीतियों में सरकारी विभागों से अनुमति लेने जैसी एक लंबी और पेचीदा प्रक्रिया बाधा बन रही थी. लेकिन अब सिंगल विंडो सिस्टम से लेकर नैनो ड्रोन के गैर-व्यावसायिक इस्तेमाल की इजाजत में ढील जैसे फैसले इस क्षेत्र के लिए फायदेमंद साबित होंगे.
भारत में भले ही फिलहाल ड्रोन का उपयोग सीमित क्षेत्रों में ही हो रहा है लेकिन भविष्य में इसका दायरा प्रत्येक क्षेत्र में बढ़ने की उम्मीद है. अस्तु!
(डिस्क्लेमर: ये लेखक के निजी विचार हैं. लेख में दी गई किसी भी जानकारी की सत्यता/सटीकता के प्रति लेखक स्वयं जवाबदेह है. इसके लिए जनता से रिश्ता किसी भी तरह से उत्तरदायी नहीं है)
प्रदीप, तकनीक विशेषज्ञ
उत्तर प्रदेश के एक सुदूर गांव खलीलपट्टी, जिला-बस्ती में 19 फरवरी 1997 में जन्मे प्रदीप एक साइन्स ब्लॉगर और विज्ञान लेखक हैं. वे विगत लगभग 7 वर्षों से विज्ञान के विविध विषयों पर देश की प्रमुख पत्र-पत्रिकाओं में लिख रहे हैं. इनके लगभग 100 लेख प्रकाशित हो चुके हैं. दिल्ली विश्वविद्यालय से स्नातक तक की शिक्षा प्राप्त की है.