सारे दिन उनसे बतियाते और खेलते रहते हैं। उनके लिए रोटियां बनवाते हैं और अपने हाथों से खिलाते हैं। भार्गव साहब ने लगभग सभी कुत्तों को अपना पालतू बना लिया है। भार्गव साहब जब मौहल्ले का राउंड लेते हैं तो सारे कुत्ते उनके आगे-पीछे घूमते रहते हैं। एक दिन मैंने भार्गव साहब को अपने घर बुलाया और चाय पेश करते हुए कहा-'भार्गव साहब अपने मोहल्ले में कुत्ते बहुत हो गए हैं। अच्छा हो इनमें से दो-चार को नगर-निगम में शिकायत लिखवाकर यहां से विदा कर दें ?' भार्गव साहब ने चाय का घूंट लिया और हैरानी से बोले-'आप मोहल्ले के कुत्तों की शिकायत नगर निगम में करेंगे? थोड़ी गैरत रखो, इनको बड़ी मुश्किल से पाल-पोसकर बड़ा किया है और मोहल्ले की सुरक्षा के लिए खुला छोड़ रखा है। आपका इन बेचारों ने बिगाड़ा क्या है?' मैं बोला-'बुरा मत मानिए भार्गव साहब! माना आपने इन्हें स्नेह दिया है, पाला-पोसा है और इन्हें भोंकने के काबिल किया है। परंतु मोहल्ले में हमारे-आपके बाल-बच्चे और महिलाएं आती-जाती हैं। कभी उन पर इन्होंने हमला कर दिया तो लेने के देने पड़ जायेंगे।
इसलिए कह रहा था, एक-दो कुत्ते तो फिर भी चल सकते हैं, लेकिन इस पूरी फौज ने तो मोहल्ले का चैन छीन रखा है।' भार्गव साहब ने पूरी चाय हलक से उतारी और बोले-'शर्मा जी, ये कुत्ते हैं और जानवर भी हैं। इनमें समझने-बूझने की तो तमीज होती नहीं, कल ये तैश में आकर ऑफेंसिव हो गए तो आपका जीनाा हराम कर देंगे। ये कुत्ते हैं, उन्हें इनके हाल पर छोड़ दीजिए। निश्चित मानिए इन्हें इस मोहल्ले की आदत हो गई है। कहीं भी ले जाकर छुड़वा दीजिये, ये पलटकर यहीं आ जायेंगे। उस समय मैं भी कुछ नहीं कर पाऊंगा। अभी तो ये मेरे कहने में हैं।' मुझे लगा भार्गव साहब कुत्तांे के हिमायती हो गए हैं और वे कुत्तों को मोहल्ले से भेजने के पक्ष में नहीं हैं। मैंने चुप्पी साध ली और फिर एक क्षण बाद मैं बोला-'जैसा आप उचित समझें, मैं कुत्तों का विरोध नहीं कर रहा। मेरा तो बाल-बच्चों की सुरक्षा की दृष्टि से कहना था। बाकी आप जानें आपके कुत्तें।' मेरी बात सुनकर भार्गव साहब उठ खड़े हुए और जाते-जाते बोले-'घबराने की जरूरत नहीं है। मोहल्ले के कुत्ते हैं, जाएंगे कहां? कोई बात हो तो मुझे बताना। मिल बैठकर सुलटा लेंगे। बाकी मैं कुत्तों की शिकायत के पक्ष में नहीं हूं।' यह कहकर वे चले गए और मैं अनमना सा पड़ा रहा।
पूरन सरमा
स्वतंत्र लेखक