राष्ट्रीय स्तर पर दो ऐसे घटनाक्रम हैं जो सीधे हिमाचल के लिए अपनी योजनाओं, परियोजनाओं और प्राथमिकताओं को खंगालने का बहाना बन रहे हैं। नोएडा इंटरनेशनल एयरपोर्ट का शिलान्यास अपने आप में विमानन सेवाओं का भविष्य और दिशासूचक है और दूसरी ओर नई दिल्ली से कटरा के बीच शुरू हुई हाई स्पीड बंदे भारत एक्सप्रेस टेे्रन से धार्मिक पर्यटन को नई मंजिल मिल रही है। ये दोनों सूचनाएं राष्ट्रीय पटल पर भविष्य की अधोसंरचना व उसकी पटकथा लिखती हुई विकास का मॉडल स्थापित कर रही हैं। इसी परिप्रेक्ष्य में ऊना जिले में उड्डयन एसईजेड की स्थापना का प्रस्ताव धूमल सरकार के दौरान तैयार हुआ था। विशेष आर्थिक क्षेत्र के तहत ऊना में भी नोएडा की तरह ऐसा हवाई अड्डा विकसित होना था जहां कार्गो हब व विमानों की मरम्मत का एक बड़ा परिसर भी स्थापित होना था, लेकिन यह योजना राजनीति की भेंट चढ़ गई। इससे पूर्व भी अधोसंरचना की बड़ी परियोजनाएं राजनीतिक क्षेत्रवाद में दफन होती रही हैं। मनाली स्की विलेज परियोजना में तो भाजपा ने देवी-देवता तक उतार दिए थे। पौंग बांध के इर्द-गिर्द 1800 करोड़ की महत्त्वाकांक्षी योजना किस फाइल में दफन है, किसी को मालूम नहीं। बतौर केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्री शांता कुमार ने धौलाधार पर्यटन सड़क परियोजना का ख्वाब पाला, तो उन्हें पद से उतारने में कहीं ज्यादा जद्दोजहद हो गई। प्रसन्नता का विषय यह है कि आगामी तीस नवंबर को पांच हेलिपोर्ट संजौली, रामपुर, मंडी व बद्दी जैसे शहरों के लिए उड्डयन का आकाश खोल रहे हैं।
मंडी में भी ग्रीन फील्ड एयरपोर्ट की फाइल पर मशक्कत हो रही है, लेकिन कांगड़ा एयरपोर्ट विस्तार की रूपरेखा में फिर राजनीतिक क्षेत्रवाद अड़ंगे लगा रहा है, जबकि इस परियोजना के आरंभिक चरण के लिए ही पांच सौ करोड़ की धनराशि मंजूर है। पूर्व मंत्री स्व. जीएस बाली ने ऊना-धर्मशाला एक्सप्रेस हाई-वे के लिए केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी की सहमति ले ली थी, लेकिन ऐसी परियोजना को वर्तमान सत्ता में कोई वारिस नहीं मिला। आश्चर्य यह कि हिमाचल की राजनीति सरकारों की परियोजना में निरंतरता को अवरुद्ध करने में कहीं ज्यादा सक्रिय रहती है, इसलिए विकास के मानदंड क्षेत्रीय व दलगत हो गए हैं। उदाहरण के लिए पिछली सरकार के अंतिम चरण में बन चुके प्रदेश के युद्ध संग्रहालय को आजतक भी जनता को नहीं सौंपा गया है। हमारे पास अधोसंरचना निर्माण या विकास को मुकम्मल करने का कोई प्रादेशिक खाका है ही नहीं। न हम स्वास्थ्य संस्थानों और न ही उच्च शिक्षण संस्थानों को प्रदेश के परिप्रेक्ष्य में विकसित कर रहे हैं। क्या एम्स स्तर के अस्पताल का बिलासपुर या इससे पूर्व कृषि विश्वविद्यालय का पालमपुर में स्थापित होना प्रासंगिक है।
क्यों नहीं पर्यटन विकास का राज्य स्तरीय रोडमैप तैयार होता है। क्या हमने अपने सबसे बड़े धार्मिक स्थलों के विकास का राज्य स्तरीय खाका बनाकर सोचा कि इनके जरिए रोजगार के अवसर व आर्थिकी कैसे बढ़ सकती है। कटरा से दिल्ली को जोड़ने की वजह अगर भारतीय रेल को पसंद आती है, तो हमारे सांसद या केंद्र मंत्री क्या कर रहे हैं। आश्चर्य यह कि जिस ऊना-हमीरपुर ट्रेन को अनुराग ठाकुर माप रहे हैं, उसकी प्रासंगिकता का पहला पड़ाव ज्वालाजी क्यों नहीं बनाया जाता। हमारा मानना है कि न तो पठानकोट-जोगिंद्रनगर ट्रेन कभी ब्रॉडगेज होगी और न ही मनाली-लेह परियोजना पर कंेद्र हमें वरदान देगा। हमीरपुर रेल परियोजना को नैतिक आधार देने के लिए अंब-अंदौरा से ज्वालामुखी मंदिर तक की 55 किलोमीटर रेल लाइन को प्राथमिकता मिलनी चाहिए। यहीं से एक रेल पटरी हमीरपुर से बिलासपुर को जोड़ सकती है, दूसरी कांगड़ा से पठानकोट तक और तीसरी मंडी को जोड़ पाएगी, वरना सियासत के लिए तो हर मंत्री चाहेगा कि केवल उसी के संसदीय या विधानसभा क्षेत्र में विकास की जवानी आए। अनुराग ठाकुर को अभी यह साबित करना बाकी है कि क्या वह केंद्र सरकार में केवल हमीरपुर संसदीय क्षेत्र की नुमाइंदगी कर रहे हैं या संपूर्ण हिमाचल की। इसी परिप्रेक्ष्य में सोचने पर राज्य को पता चलेगा कि डबल इंजन सरकार के मायने क्या हैं। अनुराग ठाकुर अगर राष्ट्रीय खेलों का अगला महाकुंभ हिमाचल में सजा दें, तो प्रदेश सरकार के साथ मिलकर दर्जनभर खेल डेस्टिनेशन व खेल स्टेडियम बनकर उभरेंगे।
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