खरीफ फसलों के रिकॉर्ड उत्पादन के बावजूद न महंगाई पर असर पड़ेगा न ही किसानों की आय पर

दुनिया का कृषि प्रधान देश भारत बीते कई महीनों से नए कृषि कानूनों की वजह से किसान आंदोलन को झेल रहा है

Update: 2021-10-11 13:30 GMT

संयम श्रीवास्तव दुनिया का कृषि प्रधान देश भारत बीते कई महीनों से नए कृषि कानूनों की वजह से किसान आंदोलन को झेल रहा है. हालांकि इस बीच सरकार के शुरुआती अनुमानों के मुताबिक इस वर्ष खरीफ सत्र में उत्पादन नया रिकॉर्ड बनाएगा. लेकिन सवाल है कि क्या खरीफ फसलों के बेहतर उत्पादन से किसानों की आय में भी कोई सुधार होगा. बाजार की इस वक्त जो हकीकत है उसे देखकर ऐसा बिल्कुल नहीं लगता कि इससे किसानों की आय में कुछ खास सुधार नजर आएगा.

कृषि मंत्रालय द्वारा जारी प्राथमिक अनुमानों के आंकड़ों को देखें तो इस खरीफ सत्र में 15.05 करोड़ टन रिकॉर्ड खाद्यान्न उत्पादन हो सकता है. जबकि बीते वर्ष 14.95 करोड़ टन उत्पादन हुआ था. जाहिर सी बात है इतने उत्पादन से खाद्य मुद्रास्फीति को भी नियंत्रित करने में मदद मिल सकती है. हालांकि अगर इस उत्पादन का सही ढंग से प्रबंधन नहीं किया गया तो आने वाले समय में इतने भारी कृषि उपज की कीमत सरकार द्वारा तय एमएसपी से भी कम हो सकती है. वर्तमान समय में खरीफ में उगाई जाने वाली 12 प्रमुख फसलों में 8 की कीमत उनके तय न्यूनतम समर्थन मूल्य से कम है. केवल चार फसलें ही ऐसी हैं जो उत्पादकों को लाभ पहुंचा रही हैं.
कृषि से आजीविका चलाने वाले परिवारों को होगी मुश्किल
अच्छी उपज होने के बाद भी अगर उसकी सही कीमत ना मिले तो कृषि से आजीविका चलाने वाले किसान परिवार इससे सीधे तौर पर प्रभावित होंगे. बिजनेस स्टैंडर्ड में छपी रिपोर्ट के अनुसार, राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय की 2018-19 में कृषि से जुड़े परिवारों के आकलन संबंधी रिपोर्ट बताती है कि देश में ऐसे किसानों की आबादी जो नियमित या पूर्णकालिक तौर पर कृषि से अपनी कुल आय का 50 फ़ीसदी आय अर्जित करते हैं उनकी तादाद लगभग 4 करोड़ है. जबकि आधिकारिक आंकड़े संकेत देते हैं कि यह तादाद 9 से 15 करोड़ के बीच हो सकती है. प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि या पीएम किसान योजना के तहत तकरीबन 11 करोड़ों किसानों को आर्थिक लाभ मिल रहा है. इसके साथ यह भी जानना जरूरी है कि कृषि के आय पर 50 फ़ीसदी निर्भरता तभी संभव है जब किसान का रकबा 2.5 एकड़ से अधिक हो.
तिलहन में आ सकती है गिरावट
इस वक्त केवल चार ऐसी फसलें हैं जो किसानों को लाभ दे रही हैं. इसमें कपास, तुवर, मूंगफली और सोयाबीन है. मूंगफली और सोयाबीन तिलहन में आती हैं यानि इनसे तेल निकाला जाता है. अनुमान है कि इन दोनों फसलों की कीमतों में भी गिरावट आ सकती है. क्योंकि सरकार ने घरेलू फसल कटाई के ऐन पहले पाम ऑयल पर आयात शुल्क कम कर दिया है. इससे मूंगफली और सोयाबीन के तेल की मांग कम हो सकती है. सोयाबीन और मूंगफली के तेल के मुकाबले पाम तेल की कीमत बहुत ज्यादा कम होती है और तमाम कंपनियां अपने प्रोडक्ट बनाने के लिए मूंगफली और सोयाबीन के तेल की जगह अब पाम ऑयल का ही इस्तेमाल करने लगेंगी. अब क्योंकि सरकार ने पाम ऑयल के आयात शुल्क को कम कर दिया है तो जाहिर सी बात है पाम ऑयल अब पहले से भी कम कीमत पर इन कंपनियों को उपलब्ध होने लगेगा, जो मूंगफली और सोयाबीन की खेती करने वाले किसानों के लिए शुभ संकेत नहीं है.
कृषि योजनाओं से कृषि श्रमिकों को कितना फायदा मिलता है?
सरकारी खरीद या सब्सिडी का फायदा ज्यादातर उन्हीं किसानों को मिलता है जिनका रकबा ढाई एकड़ से अधिक का होता है. लेकिन देश में अधिकतर ऐसे किसान परिवार हैं जिनके पास इतनी जमीन नहीं है. इसलिए उन्हें इसका ज्यादा लाभ नहीं मिल पाता. इसके साथ ही कृषि योजनाओं से कृषि श्रमिकों को फायदा नहीं मिलता. सरकार को इसके लिए भी व्यवस्था करनी चाहिए. उदाहरण के तौर पर हम ओडिशा को देख सकते हैं जहां कृषि श्रमिकों को सहायता दी जाती है. अगर उस मॉडल का अध्ययन करके इसे पूरे देश में लागू किया जाए तो बड़ी तादाद में कृषि श्रमिकों को इसका लाभ मिलेगा. जब तक कृषि श्रमिकों को हम सीधे तौर पर लाभ देने में कामयाब नहीं हो जाते तब तक कृषि क्षेत्र के संकट को दूर करना मुश्किल है. ताजा रोजगार सर्वेक्षण बताते हैं कि कृषि श्रमिकों की तादाद हाल के वर्षों में काफी बढ़ी है. ऐसा महामारी की वजह से भी हुआ है. क्योंकि बड़े-बड़े शहरों से मजदूर अपना काम धंधा छोड़कर गांव की ओर रुख कर गए हैं और यहां उनके पास जमीन ना होने के नाते वह बड़े किसानों के यहां कृषि श्रम करने पर मजबूर हैं.
प्रमुख फसलों को जरूरी मूल्य समर्थन मिलेगा?
समय पर अगर प्रमुख फसलों को सरकार द्वारा जरूरी मूल्य समर्थन नहीं प्रदान किया गया तो किसानों के लिए संकट और भी बड़ा होता चला जाएगा. हालांकि उम्मीद है कि आने वाले समय में उत्तर प्रदेश और पंजाब जैसे कृषि प्रधान राज्यों में विधानसभा के चुनाव होने हैं तो शायद किसानों की नाराजगी दूर करने के लिए सरकार कोई ऐसा कदम उठा ले. हालांकि इसके बाद और भी राज्यों में विधानसभा के चुनाव हैं और 2024 में लोकसभा के तो जाहिर सी बात है केंद्र और राज्य दोनों ही सरकारें नहीं चाहेंगी कि किसान उनसे खफा रहें.
भारत के पास किसानों की आय बढ़ाने का एक और मौका है. दरअसल खाद्यान्न समेत अधिकांश कृषि जिंसों की अंतरराष्ट्रीय कीमतें मजबूत होने की संभावना है, क्योंकि अमेरिका और ब्राजील समेत प्रमुख निर्यात देशों में खराब मौसम के चलते फसलों को काफी नुकसान पहुंचा है ऐसे में संयुक्त राष्ट्र खाद्य एवं कृषि संगठन के कृषि जींस मूल्य सूचकांक में भी बढ़ोतरी दिख रही है. अगर भारत इस अवसर का लाभ सही तरीके से उठा लेता है तो अपने देश के किसानों की आय बढ़ाने में सक्षम हो जाएगा.


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