लोकतन्त्र का मालिक 'मतदाता'
चार प्रमुख राज्यों केरल, प. बंगाल, असम व तमिलनाडु में विधानसभाओं के चुनाव हुए उनके परिणामों से यह साबित हो चुका है
आदित्य चोपड़ा: चार प्रमुख राज्यों केरल, प. बंगाल, असम व तमिलनाडु में विधानसभाओं के चुनाव हुए उनके परिणामों से यह साबित हो चुका है कि भारत का सामान्य मतदाता राजनीति के उन दांव-पेंचों को अपनी बुद्धिमत्ता से बड़ी आसानी से सुलझा सकता है जिन्हें उलझा कर पेश करने में राजनीतिक दल माहिर होते हैं। प. बंगाल की जनता ने जिस तरह लगातार तीसरी बार ममता दीदी को ऐतिहासिक जनादेश देकर गद्दी सौंपी है वह इस बात का प्रमाण है कि बंगाल की महान संस्कृति की सामाजिक बनावट के महीन धागे को विभाजनकारी कर्कशता से नहीं तोड़ा जा सकता। इस राज्य के लोगों ने अपनी राजनीतिक विरासत की मधुरता का जिस तरह प्रदर्शन किया है वह पूरे भारत के समाज में 'मधु' बरसाने का जरिया बन सकता है। इसी प्रकार केरल की जनता ने पुनः वाम मोर्चे के हाथ में सत्ता सौंप कर ऐलान किया है कि लोकतन्त्र में सिद्धान्तवादी राजनीति की महत्ता को कम करके नहीं आंका जाना चाहिए और राजनीतिक दलों की 'कथनी और करनी' को चुनावों के मौके पर परखा जाना चाहिए। जहां तक असम का प्रश्न है तो यहां की जनता ने पुनः भाजपा को सत्ता सौंप कर साफ कर दिया है कि विपक्ष के तरकश में रखे हुए सभी बाणों को केवल सरकारें अपने काम से ही कुन्द कर सकती हैं परन्तु राज्यों के इन चुनाव परिणामों का राष्ट्र की राजनीति में भी महत्व कम करके नहीं देखा जाना चाहिए। केन्द्र में सत्तारूढ़ भाजपा को एक बार पुनः दक्षिण की जनता ने सिरे से खारिज करने का ऐलान किया है क्योंकि तमिलनाडु में इसने जिस सत्ताधारी अन्नाद्रमुक पार्टी से गठजोड़ किया था उसकी विरोधी द्रमुक पार्टी ने इसके हाथ के तोते उड़ा दिये हैं। इसी तरह केरल की जनता ने भी पुरानी परंपरा को तोड़ते हुए पुनः सत्ता की बागडोर निवर्तमान वामपंथी मोर्चे को सौंपी है और विपक्षी कांग्रेस नीत संयुक्त प्रजातान्त्रिक मोर्चे को सन्देश दिया है कि वह केवल में जोड़-तोड़ की राजनीति के अलावा ठोस कार्यक्रम का विकल्प पेश करे। ये चुनाव असाधारण थे क्योंकि कोरोना काल में हुए थे। इसके बावजूद लोगों ने राजनीतिक सन्देश देने में कोई कोताही नहीं बरती।