बीते बारह दिनों में बिहार में जहरीली शराब से हुई मौतों का आंकड़ा लगातार बढ़ता ही जा रहा है। सरकारी सूत्रों की मानें, तो राज्य के सिवान, गोपालगंज, बेतिया, मुजफ्फरपुर, भागलपुर आदि जिलों में अब तक जहरीली शराब पीने से कई दर्जन लोगों की मौत हो चुकी है, जबकि दूसरे जिलों से भी जहरीली शराब पीने से मौत की सूचना लगातार आ रही हैं। जबकि इलाज करा रहे कुछ लोगों की आंख की रोशनी चली गई है। गैर सरकारी सूत्रों के मुताबिक, अब तक राज्य में जहरीली शराब पीने से सौ से ज्यादा लोगों की मौत हो चुकी है। कहा जाता है कि सरकार और प्रशासन मरने वालों की असली संख्या छिपाने का प्रयास कर रहे हैं। ऐसा उस राज्य में हो रहा है, जहां शराबबंदी लागू है।
सवाल यह कि शराबबंदी लागू होने के बावजूद राज्य में शराब की आपूर्ति कहां से हो रही है। यह तथ्य किसी से छिपा नहीं है कि शराब की आपूर्ति राज्य में कहां से होती है और फिर उसे किस तरह राज्य के विभिन्न जिलों के ग्रामीण अंचल में पहुंचाया जाता है। इसमें नेता, प्रशासन, पुलिस और ग्राम पंचायत तथा वहां के चौकीदार तक की मिलीभगत जगजाहिर है। सरकार में बैठे राजनेताओं से भी यह तथ्य छिपा नहीं है। मृतकों के परिजनों का कहना है कि ग्रामीण इलाकों में आज मात्र फोन करने से ही घर-घर शराब माफिया के लोग शराब पहुंचा जाते हैं और यह सिलसिला बदस्तूर जारी है।
विडंबना यह है कि राज्य के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार कहते हैं कि ये मौतें गलत चीज पीने से हुई हैं। राज्य के मुखिया द्वारा इस बाबत ऐसा कहा जाना समझ से परे और हास्यास्पद है। उनके बयान पर टिप्पणी करते हुए राजद के वरिष्ठ नेता शिवानंद तिवारी कहते हैं कि राज्य के लोग गलत चीजें न पीएं, यह राज्य के मुखिया की जिम्मेवारी है कि वे राज्य के लोगों को पीने के लिए अच्छी चीज मुहैया कराएं और जब राज्य में पूर्ण शराबबंदी है, उस हालत में राज्य में शराब कहां से आती है। यह साबित करता है कि राज्य में शराबबंदी केवल नाम की है। पुलिस, प्रशासन और अधिकारियों-कर्मचारियों पर सरकार का कोई अंकुश नहीं रह गया है।
सबसे अधिक शराब की आपूर्ति बिहार में हरियाणा से होती है। राज्य के छपरा, सिवान, गोपालगंज, चंपारण, मुजफ्फरपुर, सासाराम आदि जिलों में 75 फीसदी हरियाणा से और 25 फीसदी उत्तर प्रदेश से शराब की आपूर्ति होती है। उत्तरी बिहार में उत्तर प्रदेश और नेपाल से और पूर्वी बिहार में पश्चिम बंगाल और ओडिशा से शराब की आपूर्ति होती है। इन राज्यों से यहां सड़क और नदियों के रास्ते शराब की आपूर्ति की जाती है। इसकी जानकारी नेता, पुलिस और प्रशासन को बखूबी है। फिर भी इसकी रोकथाम की कोई व्यवस्था नहीं है। जहां तक शराब के जहरीले होने का सवाल है, भट्ठी में कच्ची शराब बनाने वाले इसमें ज्यादा नशे के लिए खतरनाक पाउडर और इंजेक्शनों तक का इस्तेमाल करते हैं। इसके लिए कौन जिम्मेदार है? शराब पीने वालों को नशा चाहिए, वह भी सस्ता, इसलिए वे सस्ती व जहरीली शराब पीकर अपनी मौत को दावत देते हैं। जाहिर है, लोगों में जागरूकता की कमी से ऐसा हो रहा है।
असल में, शराबबंदी के साथ नशा मुक्ति केंद्र खोलने का सवाल अनसुलझा ही रहा। नशे के आदी लोगों की काउंसलिंग जरूरी थी, उनको नशे से होने वाली हानियों के बारे में बताना जरूरी था। इस बारे में अभियान चलाया जाना चाहिए था, जो नहीं हुआ। केवल किसी क्षेत्र या राज्य विशेष में नशाबंदी लागू करने से कुछ नहीं होने वाला। इसके लिए पूरे देश में कानून लागू करना होगा। जागरूकता अभियान चलाना होगा। आजादी के बाद देश के अन्य राज्यों में भी नशाबंदी लागू की गई, लेकिन तमिलनाडु, गुजरात आदि का इतिहास प्रमाण है कि यह मात्र एक दिखावा और नारा बनकर रह गया है। शराबबंदी वाले राज्यों में नेता तक शराब पीते पाए गए हैं, जनता सस्ती, जहरीली शराब पीकर मरती रही है। नेतृत्व में दृढ़ इच्छाशक्ति का अभाव, भ्रष्ट मशीनरी और जागरूकता के अभाव के बीच नशाबंदी कारगर हो पाएगी, इसमें संदेह है।
अमर उजाला