जानलेवा खेल
हाल में लखनऊ की एक घटना ने पूरे देश को झकझोर कर रख दिया। वहां एक सोलह वर्षीय किशोर ने अपनी मां को सिर्फ इसीलिए मार डाला क्योंकि वह उसे मोबाइल पर पब्जी गेम नहीं खेलने दे रही थीं।
Written by जनसत्ता: हाल में लखनऊ की एक घटना ने पूरे देश को झकझोर कर रख दिया। वहां एक सोलह वर्षीय किशोर ने अपनी मां को सिर्फ इसीलिए मार डाला क्योंकि वह उसे मोबाइल पर पब्जी गेम नहीं खेलने दे रही थीं। वीडियो गेम या मोबाइल की लत के कारण किसी परिवार में अनहोनी का यह पहला मामला नहीं है। इससे पहले रायगढ़ के एक किशोर ने इस गेम की लत के कारण परिवार द्वारा बार-बार टोकने की वजह से खुदकुशी कर ली थी।
ऐसे और भी मामले सामने आते रहे हैं, लेकिन एक बेटे के हाथों मां को मौत के घाट उतार देने का मामला मानवीय रिश्तों को तार-तार कर देने वाला है। यह न सिर्फ परिवारों बल्कि समाज पर भी एक बड़ा सवाल है कि आखिर बच्चे इतने हिंसक क्यों होते जा रहे हैं। दरअसल, कामकाजी माता-पिता के पास बच्चों की देखभाल नहीं कर पाना एक बड़ी समस्या के रूप में सामने आया है। सरकार को चाहिए कि वह इस मुद्दे को गंभीरता से ले और हिंसक व अश्लील खेलों वाली इंटरनेट साइटों को बंद करवाए।
लोकतांत्रिक गणराज्य होने का एक सीधा मतलब लोगों का हितकर होना है। लोगों का व्यापक तौर पर सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक व धार्मिक रूप से जुड़ाव और शोषण मुक्त होना है। एक दृष्टि से लोकतंत्र मानवतावादी है। लेकिन आज विश्व के कई देशों के लोग युद्ध, प्राकृतिक आपदा, पर्यावरण परिवर्तन, मानवाधिकारों के हनन व जाति, रंग, समुदाय, भाषा भेदभाव और धार्मिक, शारिरिक शोषण के कारण विस्थापन को मजबूर हैं। हर साल बीस जून को विश्व शरणार्थी दिवस दिवस मनाया जाता है। इस बार भी मनाया जाएगा। इस दिन शरणार्थियों को सुविधा मुहैया करने की तरकीब पर मंथन होता है, लेकिन स्थिति जस की तस बनी हुई है। विगत कई वर्षों से देशों से विस्थापन नहीं रुक रहा और न ही शरणार्थियों तक कोई सुविधाएं पहुंच पा रही हैं।
एक मोटे अनुमान के मुताबिक विश्व के भिन्न-भिन्न देशों से लगभग साढ़े बाईस करोड़ लोग शरणार्थी बने हुए हैं। वर्ष 2012 में छब्बीस हजार और वर्ष 2014 में साढ़े बयालीस हजार लोग रोजाना विस्थापित हुए। पूर्व में यूरोप में दस लाख से अधिक लोग अकेले समंदर के रास्ते से आए थे। विथापित लोगों की मुख्य समस्या गरीबी है। विस्थापन रोकने के लिए देशों की सरकारों को विशेष उपाय ढूंढने की जरूरत है। चूंकि एक बड़ी संख्या को सुविधाएं मुहैया कराना किसी भी देश के लिए मुश्किल है। यद्यपि विस्थापन और शरणार्थियों की मुश्किलें दूर करना एक बड़ी चुनौती है। इसके लिए व्यापक तौर पर अंतरराष्ट्रीय संगठनों को सहयोग व नागरिकता देने की जरूरत है।