चिकित्सा में गतिरोध

चिकित्सा विज्ञान के परास्नातक पाठ्यक्रम यानी पीजी में दाखिले के लिए काउंसिलिंग प्रक्रिया बाधित होने और उसके विरोध में ज्यादातर डाक्टरों के हड़ताल पर चले जाने की वजह से दिल्ली सहित कई शहरों में चिकित्सा सेवाएं प्रभावित हुई हैं।

Update: 2021-12-30 03:26 GMT

चिकित्सा विज्ञान के परास्नातक पाठ्यक्रम यानी पीजी में दाखिले के लिए काउंसिलिंग प्रक्रिया बाधित होने और उसके विरोध में ज्यादातर डाक्टरों के हड़ताल पर चले जाने की वजह से दिल्ली सहित कई शहरों में चिकित्सा सेवाएं प्रभावित हुई हैं। हालांकि हड़ताल पर उतरे डाक्टरों से केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री ने बातचीत की और उनसे काम पर लौटने की अपील की, मगर फिलहाल उस अपील का कोई सकारात्मक असर नजर नहीं आ रहा। डाक्टर अभी अपनी हड़ताल जारी रखने की घोषणा कर चुके हैं। मंगलवार को जब डाक्टर शिक्षामंत्री के आवास का घेराव करने जाने की तैयारी कर रहे थे, तब दिल्ली पुलिस ने उन पर लाठियां बरसा दीं और बारह डाक्टरों के खिलाफ मुकदमे दर्ज कर दिए। इससे डाक्टर और नाराज हो गए। हालांकि स्वास्थ्य मंत्री ने भरोसा दिलाया है कि सरकार जल्दी ही इस समस्या का समाधान निकालने का प्रयास कर रही है। सर्वोच्च न्यायालय में अगली सुनवाई पर इसका समाधान निकाल लिया जाएगा। मगर डाक्टरों को सरकार के इस आश्वासन पर भरोसा नहीं बन पा रहा। दरअसल, यह काउंसिलिंग अक्तूबर में ही होनी थी, मगर सरकार के बनाए नए नियम के तहत अन्य पिछड़ा वर्ग और आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के लिए आरक्षित सीटों का पैमाना स्पष्ट न होने की वजह से इसे रोक दिया गया।

परास्नातक पाठ्यक्रमों में दाखिले की प्रक्रिया रुक जाने से अस्पतालों में काम करने वाले डाक्टरों को असुविधा हो रही है, क्योंकि वे छात्रों की मदद से ही चिकित्सा सेवाएं ठीक से दे पाते हैं। इसलिए काउंसिलिंग में हो रही देर को लेकर डाक्टरों का संगठन भी छात्रों के समर्थन में उतर आया। पिछले महीने यह संगठन धरने पर बैठा था, पर सरकार ने भरोसा दिलाया तो उन्होंने आंदोलन वापस ले लिया। फिर जब काउंसिलिंग में देर होने लगी, तो डाक्टर फिर से आंदोलन पर उतर आए हैं। दरअसल, सर्वोच्च न्यायालय ने सरकार से पूछा है कि उसने किस आधार पर अन्य पिछड़ा वर्ग और आर्थिक रूप से कमजोर दोनों वर्गों की सालाना आमदनी का पैमाना तय किया है। क्या इसके लिए कोई सर्वेक्षण कराया गया था। मगर इसका सरकार के पास कोई संतोषजनक जवाब नहीं है। इसलिए डाक्टरों को भरोसा नहीं बन पा रहा कि सर्वोच्च न्यायालय में अगली तारीख पर भी कोई फैसला हो पाएगा।
डाक्टरों की चिंता यह भी है कि इस वक्त जिस तरह कोरोना के मामले फिर से बढ़ रहे हैं और ओमीक्रान ने भी अपने पांव पसारने शुरू कर दिए हैं, उसमें समय रहते स्वास्थ्य सेवाओं को सुचारू बनाना कठिन होगा। कोरोना की दूसरी लहर जिस तरह त्रासद साबित हुई, वैसा इस बार न हो, इसलिए अस्पताल पहले से तैयारियां कर लेना चाहते हैं। पर पीजी छात्रों की मदद के बिना मुश्किलें बनी रहेंगी। ऐसे में सरकार के ढुलमुल रवैए पर डाक्टरों का रोष समझा जा सकता है। इस वक्त अस्पतालों पर दोहरा बोझ है। सामान्य रोगियों की देखभाल के अलावा संक्रमितों की पहचान और उनका उपचार करना है। तिस पर सहायकों की कमी। डाक्टरों की हड़ताल के चलते मंगलवार को अस्पतालों में बहुत सारे रोगियों का इलाज नहीं हो पाया। गैर-आपातकालीन सेवाएं लगभग ठप हैं। इसका हल दरअसल, सरकार को ही निकालना है। सर्वोच्च न्यायालय भी तब तक किसी निर्णय पर नहीं पहुंच सकता, जब तक सरकार अपनी नीति स्पष्ट न करे। एक तरफ तो सरकार दावा कर रही है कि वह कोरोना की तीसरी लहर से निपटने को तैयार है, दूसरी तरफ अस्पतालों और डाक्टरों के हाथ बांधे हुई है।

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