दरअसल, भीषण गरमी की वजह से राजधानी दिल्ली में बिजली की मांग अप्रैल महीने में पहली बार 6,000 मेगावाट प्रतिदिन के स्तर को पार कर गई है। पूरे देश में बिजली की बढ़ी हुई मांग को समझने के लिए यह एक मिसाल ही काफी है। भारत में भीषण गरमी के चलते छह साल से अधिक समय में सबसे विकट बिजली की कमी देखी जा रही है। चूंकि भारत में विद्युत उत्पादन ज्यादातर कोयला आधारित ऊर्जा संयंत्रों में होता है, इसलिए कोयले की मांग बहुत बढ़ गई है। कोयले का भंडार कम से कम नौ वर्षों में सबसे कम पूर्व-ग्रीष्मकालीन स्तर पर है। ऊर्जा मंत्रालय के अनुसार, भारत में ऊर्जा की मांग रिकॉर्ड ऊंचाई पर पहुंच गई है। आपूर्ति में कमी नहीं आई है, लेकिन मांग बढ़ गई है। कमी दो प्रतिशत भी नहीं है, लेकिन असर कुछ राज्यों में दिखने लगा है। जम्मू-कश्मीर से आंध्र प्रदेश तक दो घंटे से लेकर आठ घंटे तक की बिजली कटौती का सामना करना पड़ रहा है। दिल्ली में अभी विशेष कटौती नहीं हो रही है और न उत्तर प्रदेश में कोई बड़ी परेशानी सामने आई है। लेकिन संकट आगे न बढ़े, इसके लिए पूरे इंतजाम की जरूरत है। आम लोगों को भी अपने-अपने स्तर पर जरूरी बिजली का ही उपयोग करना चाहिए, यह वाजिब सलाह राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने भी दी है।
देश में ऊर्जा उत्पादन के लिए जिम्मेदार प्रमुख उपक्रम एनटीपीसी ने आश्वस्त करने की कोशिश की है, लेकिन तब भी सचेत रहना समय की मांग है। गरमी जैसे-जैसे बढ़ेगी, बिजली की मांग में भी अप्रत्याशित वृद्धि होगी। समस्या के बढ़ने से पहले ही समाधान सुनिश्चित कर लेना चाहिए। गौर करने की बात है कि कोयले की आपूर्ति अबाध करने के लिए अनेक ट्रेनों के संचालन को रोका गया है। इसका मतलब केंद्र सरकार गंभीर है। इसमें कोई शक नहीं, कोयले के अभाव की वजह से संकट खड़ा हुआ, तो केंद्र सरकार को ही आलोचना झेलनी पड़ेगी। रेलवे कोयले के परिवहन के लिए युद्धस्तर पर कदम उठाने की कोशिश कर रहा है और कोशिश में है कि कोयला बिजली संयंत्रों तक पहुंचाने में कम समय लगे। ट्रेनों के रद्द होने से भी संकट की गंभीरता का अंदाजा होता है। जिन लोगों की यात्रा प्रभावित होगी, उनके बारे में भी सोच लेना चाहिए। बिजली क्षेत्र की जरूरतों को युद्ध स्तर पर पूरा करना चाहिए। बिजली सबको चाहिए, तो इसके लिए सबको सोचना भी पड़ेगा।