रूस पर अंकुश

यूक्रेन और रूस के बीच युद्ध में जिस पैमाने की हिंसा और संहार की घटनाएं सामने आ रही हैं, उसमें शुरू से उठते मानवाधिकारों के सवाल को बहुत दिनों तक नहीं दबाया जा सकता था।

Update: 2022-04-09 05:01 GMT

Written by जनसत्ता; यूक्रेन और रूस के बीच युद्ध में जिस पैमाने की हिंसा और संहार की घटनाएं सामने आ रही हैं, उसमें शुरू से उठते मानवाधिकारों के सवाल को बहुत दिनों तक नहीं दबाया जा सकता था। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर रूस के रुख को लेकर पहले भी तल्ख प्रतिक्रियाएं उभर रही थीं, लेकिन अब इस पर संगठित और औपचारिक रूप से कार्रवाई की प्रक्रिया भी शुरू हो गई है। संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद से रूस को बाहर किया जाना इसी दिशा में उठा एक महत्त्वपूर्ण कदम है।

हालांकि यूक्रेन के खिलाफ युद्ध शुरू करने के बाद रूस ने अपने विरुद्ध दुनिया के किसी देश की नकारात्मक प्रतिक्रिया को तरजीह नहीं दी है, लेकिन संयुक्त राष्ट्र की इस कार्रवाई ने उसे निश्चित रूप से परेशान किया है। शायद यही वजह है कि रूस ने संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद से अपने निलंबन को एक अवैध कार्रवाई बताया।

यह अपने आप में एक विचित्र स्थिति है कि एक ओर रूस पर यूक्रेन के खिलाफ युद्ध में बड़े पैमाने पर जानमाल और मानवता को नुकसान पहुंचाने और युद्ध अपराध करने के आरोप लग रहे हैं, वहीं संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद से बाहर किए जाने को वह गलत बता रहा है।

दरअसल, रूस पर नकेल कसने के लिए संयुक्त राष्ट्र महासभा में जो ताजा कार्रवाई सामने आई है, इस दिशा में पश्चिमी देशों और खासतौर पर अमेरिका के बीच एक आमराय बन चुकी थी। अमेरिका की ओर से रूस और उसके राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन को युद्ध अपराधी घोषित करने की बात कही जा रही थी। इस बीच हाल में यूक्रेन के बुचा से आई खबरों में व्यापक जनसंहार की बात कही गई और इसके लिए रूस को जिम्मेदार माना गया।

हालांकि अब रूस ने अपने ऊपर लगाए आरोपों को सिरे से खारिज करते हुए इसे अपनी छवि खराब करने के लिए साजिश का नतीजा बताया है। रूस ने बुचा की घटनाओं के लिए जिम्मेदार लोगों को कानून के कठघरे में खड़ा करने के साथ-साथ स्वतंत्र और निष्पक्ष जांच कराने की मांग की है।

इसके बावजूद सच यह है कि ताजा संकट की शुरुआत रूस की ओर से हुई और अब युद्ध के हालात में कई ऐसे मोड़ आ रहे हैं, जिसका आखिरी खमियाजा आम लोगों को उठाना पड़ रहा है। सवाल है कि व्यापक हिंसा और संहार का शिकार होने वाले और मारे जा रहे साधारण लोगों का कसूर क्या है!

जहां तक रूस के खिलाफ अंतरराष्ट्रीय स्तर पर जनमत का सवाल है, तो भारत ने एक बार फिर संयुक्त राष्ट्र महासभा की ताजा कार्रवाई से बाहर रहना ही उचित समझा, लेकिन बुचा की घटनाओं की स्वतंत्र जांच के आह्वान का समर्थन किया। इसके अलावा, संयुक्त राष्ट्र में रूस को मानवाधिकार परिषद से बाहर करने की कार्रवाई के पक्ष में जहां तिरानबे देशों ने अपना मत दिया, वहीं चौबीस ने इसका विरोध किया और अट्ठावन देशों ने इस प्रक्रिया में अलग रहना चुना।

जाहिर है, कूटनीति के स्तर पर रूस ने कमोबेश अपना प्रभाव कायम रखा है। फिर भी उसे इस पर विचार करने की जरूरत है कि यूक्रेन के मुकाबले एक ताकतवर देश होने के नाते मानवता को लेकर उसकी क्या जिम्मेदारी बनती है।

इस युद्ध में अब तक बड़े पैमाने पर नुकसान हो चुका है, जिसकी भरपाई में लंबा वक्त लग सकता है। कम से कम अब भी संयुक्त राष्ट्र सहित अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रभावी देशों सहित खुद रूस को युद्ध को समाप्त करने के लिए ठोस पहल करनी चाहिए। अहं की लड़ाई में आखिरी नुकसान समूची मानवता का ही होगा।


Tags:    

Similar News

-->