पर्यटन स्थलों पर भीड़ : ये लापरवाही नहीं लोगों में 'शहादत की आदत' है !
पर्यटन स्थलों पर भीड़
पहाड़ों पर भीड़ है. बाजारों में भीड़ है. गली-मोहल्लों में लोग अलमस्त हैं. जब दुनिया भर के लोग घरों में कैद थे. हम मेला और रेला जुटाकर कुंभ में डुबकी लगा रहे थे. भीड़ शब्द भर सुनकर कमजोर दिल वाले लोग घरों में दुबके थे. तब हमारा देश पांच राज्यों के चुनाव प्रचार में अनंत जनमुंडों की एक साथ मौजूदगी का रिकॉर्ड स्थापित कर रहा था. हमने धमा-चौकड़ी के साथ दिवाली-होली, ईद-बकरीद मनाई. क्रिसमस और न्यू ईयर सेलिब्रेट किया. ये हमारे हिम्मत की पराकाष्ठा थी. देश के लिए मिटने का जज्बा था.
हमारी इस 'हिम्मतगीरी' के चंद दिनों बाद श्मशानों और कब्रिस्तानों में 'नरशरीरों' की गिनती मुश्किल हो गई. लेकिन हम फिर भी नहीं डिगे. हम फिर निकले. पड़ोस की मंडियों से लेकर पहाड़ों की चोटियों तक छा गए. मीडिया ने कोसा. कोरोना को निमंत्रित करने के इल्जाम मढ़े. चेहरे पर कैमरे लगाए. जुबां में माइक ठूंस दी. हम टस-से-मस न हुए. प्रधानमंत्री ने हमारी अक्ल को झकझोरने की अथक कोशिश की. सरकारी मगजमारी जारी रही. हम अनथक वायरस के वाहक बने रहे.
हम मिल-बांटकर चलने वाले लोग
डॉक्टर कहते हैं कि कोरोना एक-दूसरे के निकट आने से फैलता है. एक टर्म लाया- सोशल डिस्टेंसिंग. हमने नहीं माना. हम 'प्रसाद' बांटने में यकीं करने वाले लोग जो ठहरे. मैं संक्रमित, तुम संक्रमित. तुम संक्रमित तो मैं भी संक्रमित. आओ हम सब संक्रमित. मिल-बांटकर कोरोना फैलाने का ये फॉर्मूला हिट रहा. हम इसी फॉर्मूले पर चलकर यमराज के लिहाज से कामयाब दूसरी लहर ला पाए. अब तैयारी तीसरी लहर की है.
हम रूल फॉलो करने वाले लोग
सरकार भी बहुत दिग्भ्रमित करती है. लॉकडाउन खोलती है. घर से निकलने की आजादी देती है. बाजारों में जाने की छूट देती है. हम जब सरकार से मिली लोकतांत्रिक आजादी का उपभोग करते हैं, तो कहती है ये ठीक नहीं है. अजी हम तो आपके ही रूल को फॉलो करने की सोचे थे. आपने मसूरी-शिमला, कुल्लु-मनाली, गुलमर्ग-सोनमर्ग को खोल दिया. हम भी खुल गए.
हम देशभक्त लोग
हमने कोरोना काल में भी दिखाया. दिखाया कि हम राष्ट्र की कितनी चिंता करते हैं. मयखाने पर राष्ट्रप्रेम का हमारा प्रदर्शन पूरी दुनिया ने देखा. देखा कि हम कैसे जान की बाजी लगाकर देश की अर्थव्यवस्था में हाथ बंटाने के लिए बावले हो सकते हैं. हमारी सरकारों ने भी जिगर में उठ रही हमारी देशभक्ति की बेचैनी का मान रखा. सबकुछ बंद रखा, लेकिन मधुशाला का ताला सबसे पहले खोला.
हम 'लहरों' के साथ चलने वाले लोग
एक्सपर्ट लहरों से डरा रहे हैं. हम तो लहरों के साथ जीने वाले लोग हैं. कभी ये लहर, कभी वो लहर. यहां तक कि राजनेताओं की भी लहर. सुना नहीं आपने ! जितनी शिद्दत से तीसरी लहर के कयास लगाए जा रहे हैं, उससे ज्यादा दिलचस्पी पब्लिक को यूपी-पंजाब की लहरों को भांपने और आंकने में है. तभी तो चुनाव से 6-8 महीने पहले ही इन राज्यों में लहरें पैदा की जा रही हैं. इसके लिए सभी जतन शुरू हो गए हैं. हम वायरस की तीसरी लहर को भी झेल जाएंगे. हम राजनीति की लहरों से दो-चार होते हुए 2022 की शुरुआत में 5 राज्यों की नई सरकारों को भी सह लेंगे.
हम चीन से लड़ते हुए शहादत देते लोग !
डॉक्टर वायरस से लड़ने के लिए नुस्खे बता रहे हैं. किसिम-किसिम की कंपनियां किस्म-किस्म और आकार-प्रकार की कथित इम्यूनिटी बूस्टर लेकर हाजिर हैं. मगर किसी ने नहीं सुझाया और समझाया कि देशवासी तो दरअसल कोरोना से जंग को चीन से जंग मानकर चल रहे हैं. जिन भाई लोगों की पहली या दूसरी लहर में जान गई है, उन्हें सरकार चीन से लड़ते हुए शहीद होने का दर्जा दे. फिर देखिए कि कैसे पूरा देश एक नए जज्बे के साथ कोरोना से जंग में जुट जाता है. तीसरी लहर को चीन से तीसरी जंग मान लेगा. लाख-दो लाख कुर्बानियां देकर फतेह हासिल करेगा.
हम शहादत की विश पूरी करते लोग !
आखिर देख नहीं रहे कि जिन भाई लोगों की शहादत की विश रह गई है, वो बाजारों से लेकर पहाड़ों तक की कैसे दौड़ लगा रहे है. उन्हें भी ज्ञान हो गया है कि कोरोना ग्रसित होकर ठीक होना चीन को मात देने जैसा और संक्रमित होकर मौत को प्राप्त करना, चीन से लड़ते हुए शहादत ही तो है.
हेल्थ मिनिस्टर और उनके डिप्टी निपट गए. दरअसल, वे तो चीन से जंग का नेतृत्व करते हुए 'सत्ता शहीद' हुए हैं. उनके सत्ता से जाने पर कुर्सी छिनने जैसी बातें करना 'शहादत' का अपमान है. कहीं-न-कहीं देशद्रोह है.