हालांकि एचआरटीसी के प्रदर्शन पर गंभीरता से सोचने की जरूरत है, बल्कि सार्वजनिक परिवहन में सरकारी बसों की घटती काबिलीयत पर सरकार को उचित कदम लेने की भी आवश्यकता है। इस वक्त का सबसे उपहास जनक दृश्य सरकारी बसें ही पैदा कर रही हैं और अगर यात्रियों से पूछा जाए तो इस व्यवस्था को सुधारने के कई मजमून मिल जाएंगे। ऐसे में नए बस डिपो की राजनीतिक आकांक्षाओं को भले ही सरकार ने पूरा किया हो या कुछ नए रूट शुरू कर दिए हों, लेकिन हकीकत यह भी है कि अधिकांश बसें मंजिल आने से पहले दम तोड़ रही हैं। एक अनुमान के अनुसार 70 फीसदी सरकारी बसें उम्रदराज हो चुकी हैं या इतनी ही नाकारा हैं कि इनसे त्वरित मुक्ति चाहिए, लेकिन सरकारी बेड़े में आया ये असंतुलन टूटता हुआ दिखाई नहीं देता। अगर वादे अनुसार दो सौ के करीब नई बसें जुड़ भी जाती हैं, तो दो दर्जन से कहीं अधिक बस डिपो को औसतन तीन या चार बसें ही मिलेंगी। ऐसे में इस क्षेत्र में सुधार लाकर सरकार सार्वजनिक परिवहन में अपनी भूमिका का विस्तार ही करेगी। फैसलों की अठखेलियांे में सरकारी कक्ष का भुगतान पंचायती राज संस्थानों के प्रतिनिधियों को आगे बढ़ाता है, तो हिमकेयर की सफलता को नया आयाम देता हुआ अगले तीन सालों को एक ही साल की प्रीमियर दर से लपेट लेता है। मंत्रिमंडल क्षेत्रवाद की कई दुरुस्तियां और नए तमगों का इंतजाम तो करता ही है, लेकिन सबसे रोचक पहलू यह कि वर्षों बाद शिमला शहर की विकास योजना भी जागृत मुद्रा में अभिनंदन करते हुए, शहरीकरण के उन्माद में नियोजन की भूमिका को पढ़ता है।
शहरीकरण को तसदीक करते हुए जयराम सरकार ने तीन नए नगर निगमों का गठन जरूर किया, लेकिन महानगर की विलासिता मेें नागरिक व्यवहार को जो सुविधाएं और उन पर स्पष्टता से दृष्टि चाहिए, उस पर अभी तवज्जो नहीं मिली। जयराम सरकार के सबसे साहसिक फैसलों में से एक नए नगर निगमों के गठन को गिना जाएगा, लेकिन इससे नगर नियोजन की परिपाटी नहीं बनती। शहरी विकास और शहरी नियोजन की धूप छांव में नए जोश, वित्तीय निवेश और कायदे कानूनों की जरूरत पर निर्णयों की प्रतीक्षा है। मसला शहरी आवासीय व्यवस्था का कहीं अधिक है, लेकिन वादे अनुसार हिमुडा न तो अपनी आवासीय बस्तियां बना पाया और न ही धर्मशाला और जाठिया देवी जमीन होने के बावजूद सेटेलाइट टाउनशिप बसा पाया। मंत्रिमंडल के फैसलों ने सरकार के प्रचार, व्यवहार और सफल होने के तौर तरीकों को आगे बढ़ाते हुए यह स्थापित करने की कोशिश की है कि प्रदेश के हित संवर जाएंगे। मंत्रिमंडल अब मनोवैज्ञानिक ढंग से उन किश्तियों को संवार रहा है, जहां जनता की उम्मीदों को पार लगाने का सबब मौजूद है। आने वाले दिनों में भी फैसलों की झड़ी जनभावनाआंे की नब्ज टटोलते हुए कुछ नौकरियां, कुछ लाभ के क्षण, लाभार्थियों के लिए फलक, प्रगति के पल, विकास के पथ और क्षेत्रीय उम्मीदों को पंख लगाने का प्रयास करेगी। यह सत्ता का संतुलन है, जो चुनाव के अंतिम पहर में अति ईमानदार दिखाई देता है, देखें इसे भांप कर जनता कितनी मुस्कराती है।