दुविधा में फंसी कांग्रेस

पंजाब में मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी और नवजोत सिंह सिद्धू के बीच गुरुवार को हुई लंबी बैठक भी कोई नतीजा नहीं दे सकी

Update: 2021-10-01 16:55 GMT

एनबीटी डेस्क पंजाब में मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी और नवजोत सिंह सिद्धू के बीच गुरुवार को हुई लंबी बैठक भी कोई नतीजा नहीं दे सकी। वैसे विवाद सुलटाने की कोशिश अभी जारी है लेकिन हकीकत यही है कि पंजाब में कांग्रेस अपनी ही बनाई गुत्थी में कुछ इस तरह उलझ गई है कि उससे निकलते नहीं बन रहा। नए मुख्यमंत्री चन्नी के फैसलों पर प्रदेश पार्टी अध्यक्ष सिद्धू ने जिस तरह से प्रतिक्रिया दी, उसके बाद यह समझना मुश्किल है कि कैसे दोनों आपस में तालमेल बनाकर चलेंगे और उसे उसूलों पर समझौता नहीं मानेंगे। उधर, कैप्टन अमरिंदर सिंह ने यह तो साफ कर दिया कि वह बीजेपी में शामिल नहीं हो रहे हैं, लेकिन इसके साथ ही पार्टी छोड़ने का इरादा भी जाहिर कर दिया। उन्हें मनाने की कवायद चल रही है, पर तय नहीं है कि ऊंट आखिरकार किस करवट बैठेगा। पांच महीने बाद जिस राज्य में चुनाव होने वाले हों, वहां सत्तारूढ़ दल के अंदर इस तरह की अनिश्चितता पार्टी नेतृत्व की घोर असफलता ही कही जाएगी। हालांकि लंबे समय से कुछ न करने का आरोप झेलने वाले कांग्रेस नेतृत्व ने पिछले दिनों कुछ ठोस फैसले लेकर पॉजिटिव संदेश दिया था।

पंजाब में कैप्टन अमरिंदर सिंह के विरोध के बावजूद सिद्धू को प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष बनाना, अच्छी-खासी दलित आबादी वाले राज्य को पहला दलित सीएम देना और कन्हैया कुमार, जिग्नेश मेवानी के रूप में मास अपील वाले युवा नेताओं को प्रवेश देना ऐसे फैसले हैं, जिनके पक्ष-विपक्ष में बहुत कुछ कहा जा सकता है, लेकिन इसमें संदेह नहीं कि ये खास सोच के साथ लिए गए ठोस फैसले हैं। मगर खास सोच के साथ लिए जाने वाले फैसलों का भी फायदा तभी मिलता है, जब उसे पूरी तैयारी के साथ और उपयुक्त ढंग से लागू किया जाए। कम से कम पंजाब के मामले में इसकी इतनी कमी रही कि घोषणा के बाद से ही इन फैसलों के साइड इफेक्ट नेगेटिव रूप में सामने आने लगे। पिछले दो महीनों के दौरान सिद्धू ने जिस तरह का व्यवहार किया है, उसका बचाव करना उनके समर्थकों के लिए भी मुश्किल है।
जाहिर है, यह सवाल उठेगा कि राज्य में पार्टी का नेतृत्व करने की जिम्मेदारी सौंपने से पहले उनकी काबिलियत परखने का कौन सा तरीका पार्टी हाईकमान ने अपनाया था। गुलाम नबी आजाद और कपिल सिब्बल जैसे वरिष्ठ नेताओं ने जो कुछ कहा है, उसके पीछे इन सवालों से उपजी बेचैनी महसूस की जा सकती है। इस बेचैनी को नजरअंदाज करना या इसे पार्टी विरोधी गतिविधियों की श्रेणी में डालने की कोशिश करना आत्मघाती होगा। देश की सबसे बड़ी विपक्षी पार्टी खुद को एक पूर्णकालिक, जिम्मेदार और पारदर्शी नेतृत्व से वंचित नहीं रख सकती। पार्टी के सामने चुनौतियां तो अलग-अलग तरह की आती रहेंगी, फैसले भी कुछ सही और कुछ गलत होते रहेंगे, लेकिन सर्वोच्च स्तर पर नेतृत्वहीनता की स्थिति पार्टी को कहीं का नहीं छोड़ेगी।


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