महाराष्ट्र से ठंडी हवा का झोंका
मौजूदा दौर की मर्यादाहीन व गलाकाट राजनैतिक प्रतिस्पर्धा के बीच यदि कहीं से ऐसा झोंका चल जाता है जो पूरे वातावरण में ठंडक का एहसास करा जाये तो उसका दिल से स्वागत किया जाना चाहिए।
आदित्य नारायण चोपड़ा: मौजूदा दौर की मर्यादाहीन व गलाकाट राजनैतिक प्रतिस्पर्धा के बीच यदि कहीं से ऐसा झोंका चल जाता है जो पूरे वातावरण में ठंडक का एहसास करा जाये तो उसका दिल से स्वागत किया जाना चाहिए। वैसे तो महाराष्ट्र की राजनीति भी शेष देश के राजनैतिक वातावरण में ही रंगी हुई लगती है मगर इसमें कुछ संयोग से कुछ ऐसी परंपराएं भी पड़ी हुई हैं जिनका पालन करना प्रमुख राजनैतिक दल अपना कर्त्तव्य बता रहे हैं। इसे हम लोकलज्जा भी कह सकते हैं जिसकी पैरोकारी समाजवादी नेता स्व. डा. राम मनोहर लोहिया विपक्ष में रहते हुए अक्सर किया करते थे। मगर हमने देखा है कि डा. लोहिया के बाद भारतीय लोकतन्त्र में लोकलज्जा की राजनैतिक दलों ने किस तरह परवाह करनी बन्द की और इस तन्त्र को परिवार तन्त्र तक में बदलने की कोशिशें हुईं। मगर इसी परिवार तन्त्र के बीच ऐसा विरोधाभासी विमर्श भी उभरा जिसे हम लोकलज्जा के दायरे में भी रख सकते हैं। यह विरोधाभास यह था कि महाराष्ट्र की राजनीति में किसी विधायक या सांसद की अक्समात मृत्यु के बाद जब उसके चुनाव क्षेत्र में उपचुनाव होता है और प्रत्याशी यदि उसी मृत व्यक्ति के परिवार का होता है तो प्रमुख राजनैतिक दल उसके विरुद्ध अपना प्रत्याशी खड़ा नहीं करते और उसे विजयी होने में मदद करते हैं। बेशक यह परंपरा परिवार तन्त्र के भीतर ही हो मगर फिर भी लोकलज्जा के दायरे में आ जाती है क्योंकि सभी पार्टियां अपने इस व्यवहार से मृत प्रतिनिधि को अपनी श्रद्धांजलि देने का नैतिक आवरण तैयार करती हैं। इस नैतिकता को अस्वीकार किये जाने का कोई कारण नहीं बनता है और यह मानवीय स्वरूप में प्रकट होता है।
राजनीति में मानवीयता का सम्मान किया जाना चाहिए और इसे दलगत भावना से ऊपर उठ कर देखा जाना चाहिए। मुम्बई के अंधेरी (पूर्व) विधानसभा क्षेत्र से शिवसेना के विधायक रमेश लटके के आकस्मिक निधन से उनकी खाली हुई सीट पर जब उपचुनाव की घोषणा हुई तो शिवसेना (उद्धव बाला साहेब ठाकरे) के नेता श्री उद्धव ठाकरे ने उनकी पत्नी श्रीमती ऋतुजा लटके को अपनी पार्टी के टिकट से उपचुनाव लड़ाने की घोषणा की और उनके मुकाबले में भाजपा ने अपने प्रत्याशी के रूप में श्री मुरजी पटेल को मैदान में उतारने की घोषणा की। दोनों प्रत्याशियों द्वारा उपचुनाव के लिए नामांकन पत्र भी पूरे जोश-खरोश के साथ भर दिया गया और अपनी-अपनी संभावित जीत के दावे भी किये गये। श्री शरद पवार की राष्ट्रवादी कांग्रेस व कांग्रेस पार्टी ने भी श्रीमती ऋतुजा लटके के समर्थन की घोषणा कर दी गई। परन्तु इसके बाद महाराष्ट्र के सबसे वरिष्ठ नेता श्री शरद पवार ने भाजपा को याद दिलाया कि राज्य में यह परंपरा या परिपाटी बहुत पहले से चली आ रही है कि उपचुनाव में मृत विधायक या सांसद के परिवार के किसी सदस्य के खड़ा होने पर उसके खिलाफ कोई दूसरा राजनैतिक दल अपना प्रत्याशी नहीं उतारता है। अतः भाजपा को अपना प्रत्याशी वापस ले लेना चाहिए। उनकी इस अपील का असर इस प्रकार हुआ कि पहले महाराष्ट्र नव निर्माण सेना के नेता राज ठाकरे ने उनका समर्थन किया और बाद में भाजपा हाईकमान ने भी अपने प्रत्याशी मुरजी पटेल को अपना नाम वापस लेने का आदेश दे दिया। इससे श्रीमती ऋतुजा लटके की जीत लगभग निश्चित मानी जा रही है क्योंकि उनके खिलाफ मैदान में अब केवल छह अन्य निर्दलीय प्रत्याशी ही रह गये हैं। आगामी 3 नवम्बर को अंधेरी (पूर्व) में मतदान तो होगा मगर इसका नतीजा मतदाताओं को पहले से ही तय जैसा लग रहा है।
सभी जानते हैं कि महाराष्ट्र में इस समय बालासाहेबांची शिवसेना व भाजपा की मिली-जुली सरकार है। इस शिवसेना का नेतृत्व मुख्यमन्त्री श्री एकनाथ शिन्दे के हाथ में है। पहले उनकी पार्टी चाहती थी कि उपचुनाव में भाजपा के स्थान पर उनकी पार्टी का प्रत्याशी उतरे परन्तु यह संभव नहीं हो सका। दूसरी तरफ भाजपा को लग रहा था कि उपचुनाव में उसके प्रत्याशी के जीतने की प्रबल संभावनाएं बनेंगी अतः इसने अपने प्रत्याशी मुरजी पटेल को मैदान में उतार दिया। भाजपा के प्रत्याशी द्वारा नाम वापस लेने का एक कारण यह भी माना जा रहा है कि इस उपचुनाव के नतीजे से राज्य की राजनीति पर कोई अन्तर नहीं पड़ेगा। क्योंकि चालू विधानसभा का समय केवल सवा साल और रह गया है और उद्धव गुट की शिवसेना के इस सीट को जीत जाने से राजनैतिक समीकरण भी जस के तस रहेंगे। परन्तु बहुत जल्दी ही मुम्बई वृहन्महापालिका के चुनाव होने हैं जिनमें दोनों शिवसेनाओं के साथ कांग्रेस, भाजपा व राष्ट्रवादी कांग्रेस के बीच जमकर युद्ध होगा। अंधेरी (पूर्व) में भाजपा व शिन्दे सेना द्वारा दिखाई गई सदाशयता का क्या असर पड़ता है यह देखने वाली बात जरूर होगी। मुम्बई महापालिका के चुनाव शिवसेना के दोनों गुटों की ताकत की असलियत जाहिर करेंगे और भाजपा को भी अपनी हैसियत का पता चलेगा क्योंकि यह महापालिका देश की नम्बर एक की स्थानीय निकाय इकाई मानी जाती है जिसका बजट भारत के कई छोटे राज्यों के बजट से भी अधिक होता है। इसलिए राजनैतिक दलों में इस पर कब्जा जमाने के लिए भयंकर चुनावी युद्ध होता है। अतः बेशक अंधेरी (पूर्व) में स्थापित परंपरा को निभाने की रस्म निभाई गई हो मगर महापालिका चुनावों में तलवारें म्यान से बाहर आने पर नहीं रुक सकतीं और स्वस्थ लोकतन्त्र में ऐ सा होना भी चाहिए।