कोकीन और कोयला बने सियासी हथियार
पश्चिम बंगाल, तमिलनाडु, केरल, असम और पुड्डुचेरी में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं लेकिन
पश्चिम बंगाल, तमिलनाडु, केरल, असम और पुड्डुचेरी में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं लेकिन इन चुनावों की धमक काफी पहले ही सुनाई देने लगी है। पहले नगर पालिका चुनाव की चर्चा राष्ट्रीय मीडिया में बहुत कम होती थी लेकिन अब हैदराबाद हो या पंजाब या फिर गुजरात छोटे चुनावों की चर्चा भी राष्ट्रीय फलक पर हो रही है। इन चुनावों का विश्लेषण भी किया जा रहा है। चुनावों पर चर्चा होना स्वस्थ लोकतंत्र की निशानी है। चुनावों के मामले में भारत सदाबहार ही रहता है, यानी भारत में कोई न कोई क्षेत्र इलैक्शन मोड में रहता है लेकिन चुनावों के चक्कर में बहुत कुछ ऐसा हो रहा है जिससे साफ है कि लोकतंत्र की मर्यादाएं अब बची नहीं। चुनावों में बाहुबल और धनबल का इस्तेमाल तो होता ही आया है। अगर आप स्थूल रूप से प्रजातंत्र के चारों अंगों को देखें तो पाएंगे कि थोड़ी बहुत कमजोरियां तो सब में परिलक्षित होती हैं परन्तु इस राष्ट्र को रसातल में ले जाने का कार्य अगर किसी ने किया है तो विधायिका ने ही किया है। राजनीति में अपवाद स्वरूप ऐसे लोग भी आए जिनका इस्तेमाल राजनीति के लिए नहीं बल्कि राष्ट्र निर्माण की दशा में बेहतर ढंग से किया गया लेकिन वर्तमान दौर में ऐसे चेहरे नजर आ रहे हैं जो भ्रष्टाचार की गंगोत्री के रूप में खड़े हैं। आज चुनाव ऐसी जंग में परिवर्तित हो गए हैं जिनमें राजनीतिक दलों के िलए एक ही टास्क कि किसी भी तरह चुनाव जीतो। हमने पूर्व में देखा है कि कम विधायक लाकर भी राजनीतिक दल सरकारें बना लेते हैं या फिर सत्तारूढ़ दल के विधायक इस्तीफा दे देते हैं। वैचारिक और सैद्धांतिक तौर पर कुछ नहीं बचा है। मध्य प्रदेश और पुड्डुचेरी तक यही हुआ है।