जलवायु के लिए जागरूकता

चूंकि सरकारें और कॉरपोरेट सेक्टर ने फिक्र नहीं की,

Update: 2021-06-01 04:29 GMT

चूंकि सरकारें और कॉरपोरेट सेक्टर ने फिक्र नहीं की, इसलिए अब अदालतों और खुद कंपनियों के शेयर धारकों ने जलवायु परिवर्तन की फिक्र की है। इसे दुनिया में एक अहम बदलाव माना जा रह है। बल्कि तुलना तो इससे की गई है कि कुछ दशक पहले जैसा माहौल तंबाकू कंपनियों के खिलाफ बना था, अब कुछ-कुछ वैसा ही तेल और गैस उद्योग के साथ होता दिख रहा है। अब इस उद्योग को भी डर्टी यानी गंदा समझा जाने लगे, तो इसमें कोई हैरत नहीं होगी। इस बात के संकेत पिछले हफ्ते मिले। पहले नीदरलैंड्स में एक अदालत ने दुनिया की सबसे बड़ी तेल कंपनियों में से एक- शेल को एक दशक अंदर अपने कार्बन उत्सर्जन में 45 फीसदी कटौती करने का आदेश दिया। उसी रोज एक और बड़ी तेल कंपनी एक्सॉनमोबिल के अमेरिकी शेयर होल्डर्स ने दो ऐसे लोगों को बोर्ड ऑफ डायरेक्टर्स में शामिल करने का फैसला किया, जिन्हें पर्यावरणवादी कार्यकर्ताओं ने मनोनीत किया था। ये फैसला मतदान के जरिए हुआ।

गौरतलब है कि इसके एक अन्य बड़ी कंपनी शेवरॉन के शेयर होल्डर्स ने प्रस्ताव पास कर कंपनी से कार्बन उत्सर्जन में कमी करने को कहा था। जहां तक नीदरलैंड्स के अदालती फैसले की बात तो है, तो यह दुनिया में पहला मौका है, जब किसी अदालत ने किसी बड़ी ऊर्जा कंपनी को इस तरह का आदेश दिया हो। ये आदेश अभी नीदरलैंड्स में ही लागू होगा। ये साफ है कि इससे एक मिसाल कायम हुई है। उसका असर दूसरे देशों की अदालतें के सामने आए ऐसे मामलों पर भी पड़ेगा। इस बात ने भी ध्यान खींचा एक्सॉन कंपनी के प्रबंधकों ने कार्यकर्ताओं की तरफ से मनोनीत व्यक्तियों को निदेशक मंडल में शामिल करने का कड़ा विरोध किया था। आम तौर पर शेयर होल्डर्स प्रबंधकों के साथ जाते हैँ। लेकिन इस मामले में बहुमत पर प्रबंधकों का असर नहीं हुआ। उन्होंने साफ पैगाम दिया कि वे जलवायु परिवर्तन रोकने के लिए जरूरी उपायों पर सख्ती से अमल चाहते हैँ। अंतरराष्ट्रीय मीडिया टिप्पणियों में ये उचित ही ध्यान दिलाया गया है कि अब हुई शुरुआत तेल और गैस कंपनियों से आगे जाते हुए दूसरे उद्योगों तक भी पहुंच सकती है। ये शुरुआत दुनिया में बढ़ रही इस मांग का प्रमाण हैं कि तेल-गैस सहित तमाम कंपनियां अपनी कारोबारी नीति को जलवायु परिवर्तन रोकने संबंधी लक्ष्यों के मुताबिक ढालें। यह एक सकारात्मक घटनाक्रम है।


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