संदेह का घेरा
कुछ दिनों पहले दिल्ली के उप-मुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया ने नई आबकारी नीति को लेकर अनियमितताओं के लग रहे आरोपों की जांच के लिए खुद सीबीआइ जांच की मांग की थी। अब सीबीआइ ने उनके ही घर पर छापे मार दिए। इसे लेकर एक बार फिर भाजपा और आम आदमी पार्टी में आरोप-प्रत्यारोप का सिलसिला चल पड़ा है।
Written by जनसत्ता: कुछ दिनों पहले दिल्ली के उप-मुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया ने नई आबकारी नीति को लेकर अनियमितताओं के लग रहे आरोपों की जांच के लिए खुद सीबीआइ जांच की मांग की थी। अब सीबीआइ ने उनके ही घर पर छापे मार दिए। इसे लेकर एक बार फिर भाजपा और आम आदमी पार्टी में आरोप-प्रत्यारोप का सिलसिला चल पड़ा है।
आम आदमी पार्टी का पुराना आरोप है कि केंद्र सरकार उन्हें काम नहीं करने देना चाहती, इसलिए इस तरह सीबीआइ आदि के छापों से उन्हें परेशान करने की कोशिश कर रही है। हालांकि उनका दावा है कि वे पाक-साफ हैं और सीबीआइ को उनके यहां से कुछ नहीं मिलने वाला, वे जांच में पूरा सहयोग करेंगे, मगर वे जिस तरह इसे लेकर विचलित हैं, उससे संदेह का घेरा कुछ बड़ा होता है।
हालांकि दिल्ली सरकार और उपराज्यपाल के बीच तनातनी का रिश्ता पुराना है। मगर नई आबकारी नीति को लेकर उपराज्यपाल ने इसलिए एतराज जताया कि दिल्ली सरकार के मुख्य सचिव ने जांच कर शराब की बिक्री में अनियमितता उजागर की थी।
खुद मनीष सिसोदिया ने भी स्वीकार किया कि तत्कालीन उपराज्यपाल की मंजूरी के बाद नई आबकारी नीति लागू की गई थी, मगर आखिरी वक्त में राज्यपाल ने चूंकि अनधिकृत कालोनियों में शराब की बिक्री को मंजूरी नहीं दी थी, जिसकी वजह से कुछ गड़बड़ियां हुईं।
दरअसल, पिछले साल दिल्ली सरकार ने शराब की बिक्री में गड़बड़ियों का हवाला देकर नई आबकारी नीति लागू की थी। सरकारी दुकानें बंद करके निजी विक्रेताओं को लाइसेंस दे दिए थे। इस तरह लगभग आधी दुकानें बंद भी हो गई थीं। इस पर आम आदमी पार्टी का कहना था कि चूंकि जिन लोगों की दुकानें बंद हुईं, वे भाजपा के करीबी थे और उन्होंने ही इसे लेकर हंगामा मचाना शुरू कर दिया।
फिर जब उपराज्यपाल ने नई आबकारी नीति की सीबीआइ जांच के आदेश दिए और फिर कई आबकारी अधिकारियों को निलंबित कर दिया, तब दिल्ली सरकार ने उसे रद्द करके पुरानी नीति ही लागू कर दी।
तभी यह सवाल स्वाभाविक रूप से उठा कि अगर नई आबकारी नीति में कुछ गलत नहीं था तो दिल्ली सरकार ने उसे वापस क्यों लिया। वह जांच के पक्ष में भी है, तो फिर परेशानी क्या है। सीबीआइ से वह भी जांच कराना ही चाहती थी, फिर अब केंद्र सरकार पर दोष मढ़ने की क्या तुक!
शराब की बिक्री से राज्य सरकारों को राजस्व की भारी कमाई होती है, इसलिए वे शराब के ठेकों आदि के लाइसेंस देने संबंधी नीतियों में बदलाव करती रहती हैं। दिल्ली सरकार का मकसद भी अपना राजस्व बढ़ाना ही था। उसका दावा था कि पहले छह हजार करोड़ रुपए का राजस्व मिलता था, जो नई आबकारी नीति के बाद बढ़ कर साढ़े नौ हजार करोड़ रुपए हो गया। मगर राजस्व उगाही के नाम पर शराब की बिक्री में किसी भी तरह की अनियमितता को उचित नहीं ठहराया जा सकता।
छिपी बात नहीं है कि नई आबकारी नीति के बाद किस तरह दुकानों पर एक पर दो या तीन तक बोतलें मुफ्त मिलने का सिलसिला शुरू हो गया था। यह सब क्यों और कैसे हुआ, आम लोगों की समझ से बाहर का गणित था। अब जब सीबीआइ ने इस मामले में जांच शुरू कर दी है, तो हकीकत पर से पर्दा उठने की उम्मीद बनी है। मगर अपेक्षा की जाती है कि इस मामले को राजनीतिक रंग देने के बजाय निष्पक्ष रूप से हल किया जाए।