LAC पर चीन भारत को फंसाए रखना चाहता है

Update: 2022-05-23 10:59 GMT

अशोक कुमार | 

एशियाई देशों को सीमा विवाद अपने औपनिवेशिक आकाओं से विरासत में मिले हैं. भारत और चीन इस विवाद (India-China Border Dispute) से अलग नहीं हैं. एक पहाड़ी इलाका होने, बुनियादी ढांचे की कमी, आवास और निगरानी की समस्या के कारण भारत और चीन के बीच की सीमाओं को उस तरह से तय नहीं किया जा सका था जो इन दोनों देशों के शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व के लिए जरूरी था. एक दूसरा कारण तिब्बत भी था, जो 1911 से 1949 तक काफी हद तक स्वतंत्र रहा, लेकिन उसके बाद KMT को हराकर- जो कि ताइवान (Taiwan) भाग गए, चीन में वर्तमान शासन प्रणाली ने अपनी जगह बना ली. इस बीच कई घटनाएं हुईं, जिनमें चीन द्वारा तिब्बत पर जबरन कब्जा करना शामिल है. इनसे दोनों देशों के बीच तिब्बत के रूप में बफर स्टेट होने की धारणा ही खत्म हो गई.
वास्तविक सीमा को लेकर भारत और चीन के बीच अपने-अपने दावे हैं. 1947 और 1949 में दोनों देशों को स्वतंत्रता मिलने के बाद यह दावा और बढ़ता गया. भारत के साथ बातचीत किए बिना, चीन ने एक हाईवे बना लिया. भारत को इसकी जानकारी 1957 के करीब हुई. इसका मतलब था कि अक्साई चिन पर चीन न केवल दावा करता था, बल्कि वह इस पर भौतिक नियंत्रण भी रखने लगा. दोनों देशों के बीच बाद की बातचीत के बावजूद सीमा विवाद का समाधान नहीं हुआ, जिसके कारण 1962 का युद्ध हुआ. हालांकि, चीन ने अपनी तरफ से कुछ भारतीय क्षेत्रों पर अपना नियंत्रण छोड़ दिया, लेकिन यह अभी भी न केवल अक्साई चिन पर बल्कि भारत के कई दूसरे राज्यों के कुछ क्षेत्रों पर भी नियंत्रण रखता है. इन इलाकों पर उसने 1962 के युद्ध से पहले या 1962 के युद्ध के दौरान कब्जा कर लिया गया था. इन्हीं वजहों से दोनों देशों के बीच अक्सर झड़प होती रहती हैं.
ऐसे में जबकि सीमा पर काफी मतभेद थे, शांति सुनिश्चित करने के लिए वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) को स्पष्ट करने का प्रयास किया गया था, ताकि नियमित झड़पों/स्थानीय संघर्षों को स्थायी रूप से टाला जा सके. बाद में सीमा मुद्दे पर भी समझौता होना था. शांति बनाए रखने के लिए 1996, 2005 और 2013 में हुए समझौतों के बावजूद, अप्रैल 2020 में चीनियों ने पूर्वी लद्दाख में घुसपैठ की, जिसमें एलएसी के साथ दूसरे क्षेत्रों के अलावा गलवान क्षेत्र भी शामिल है.
चीन की घुसपैठ के पीछे कई कारण
ऐसे कई कारण हैं जिन्हें इस तरह की घुसपैठ के लिए जिम्मेदार ठहराया जा सकता है जैसे कश्मीर से धारा 370 को निरस्त करना, लद्दाख को केंद्र शासित प्रदेश घोषित करना, सीमावर्ती क्षेत्रों में तेजी से बुनियादी ढांचे का विकास, चीन के दोस्त पाकिस्तान की चिंता और क्वाड (QUAD-जिसमें अमेरिका, जापान, ऑस्ट्रेलिया और भारत शामिल हैं) में भारत की भागीदारी और करीब अमेरिका के साथ भारत के संबंध. असली कारण यह है कि चीन, सीमावर्ती क्षेत्रों में भारत की संप्रभुता को चुनौती दे रहा है और साथ ही एलएसी में अपनी गतिविधियां तेज कर भारत की सैन्य शक्ति के पुनरुत्थान को रोक रहा है. 9 मई को मीडिया से बातचीत करते समय वर्तमान सेनाध्यक्ष ने भी इस तथ्य को रेखांकित किया था.
कुछ विश्लेषकों का मानना हो सकता है कि गलवान संघर्ष क्षणिक विवाद से उत्पन्न हुई घटना थी. लेकिन इसकी बारीकी से जांच और इसके अंजाम के तरीके से पता चलता है कि पीएलए ने अपने राजनीतिक आकाओं की अनुमति से ही जानबूझकर इस घटना को अंजाम दिया था. यह न केवल इस हमले से पहले की घटनाओं बल्कि उसके बाद हुई घटनाओं की सावधानीपूर्वक जांच से स्पष्ट होगा.
जब एलएसी के साथ कुछ क्षेत्रों में भौतिक रूप से उपस्थिति समेत चीनी घुसपैठ देखी गई, जिसके बारे में अप्रैल 2020 के पहले पता नहीं था, तो इस मामले को विभिन्न स्तरों पर चीनी अधिकारियों के साथ इस मुद्दे को उठाया गया था. इन मुद्दों में संभावित संघर्ष के लिए सैनिकों को जुटाने का मुद्दा भी शामिल था. इन मुद्दों को सौहार्दपूर्ण ढंग से सुलझाने के लिए कोर कमांडर स्तर की वार्ता करने पर सहमति बनी. पहली कोर कमांडर स्तर की वार्ता 6 जून, 2020 को चीन इलाके चुशुल-मालदो क्षेत्र में हुई थी.
यह एक मैराथन बैठक थी. निर्णय लिया गया कि विवाद के सभी बिंदुओं को आपस में सुलझा लिया जाएगा और इसकी शुरुआत गलवान क्षेत्र से की जाएगी. हालांकि, शुरुआत में चीन ने अपनी सैन्य संरचनाओं को हटाने के लिए प्रतिबद्धता दिखाई. इसकी जांच के लिए भारतीय सैनिक वहां गए भी, लेकिन ये संरचनाएं फिर से खड़ी कर दी गईं. भारतीय सैनिकों के लिए उन संरचनाओं को हटाना स्वाभाविक था. यह दोनों देशों के बीच हुए समझौते का हिस्सा था और इस पर दोनों देशों का दावा भी था. इस दौरान सैनिकों के बीच धक्का-मुक्की के रूप में झड़प हुई. यह एक सामान्य प्रवृत्ति है, क्योंकि जब एलएसी पर आमने-सामने की बात आती है तो दोनों पक्षों द्वारा हथियार के प्रयोग पर रोक है.
इसके बाद चीनी सैनिक दूर चले गए, जिसे संभवतः इस घटना के अंत के रूप में देखा गया, लेकिन इसके बाद चीनी बड़ी संख्या में लौट आए. वह भी घातक हथियारों के साथ, जिनमें उच्च वोल्टेज वाला 'टेजर (एक प्रकार का हथियार जो बैटरी से जुड़ा हुआ होता है)', कांटेदार तारों के साथ छड़ें और मेटल की गेंदें शामिल थीं. सैनिकों के बीच फिर से संघर्ष शुरू हुआ. एक तरफ निहत्थे भारतीय सैनिक थे और दूसरी तरफ, हथियारबंद चीनी सैनिक (सिर्फ बिना बंदूक के). इस संघर्ष के परिणामस्वरूप एक भारतीय कमांडिंग ऑफिसर को अपनी जान गंवानी पड़ी. जान गंवाने वाले कुल सैनिकों की संख्या 20 थी.
यह एक अन्यायपूर्ण घटना थी, क्योंकि भारतीय सैनिक निहत्थे थे. लेकिन उनकी बहादुरी ने चीनी पक्ष को पर्याप्त नुकसान पहुंचाया. माना जाता है कि इसमें 40 से अधिक चीनी सैनिक मारे गए थे. हालांकि आधिकारिक तौर पर कोई गिनती उपलब्ध नहीं है. ऐसे हथियारों से लैस सैनिकों की मौजूदगी चीनी डिजाइन का हिस्सा है. हाई-वोल्टेज टेजर जान लेने में सक्षम थे. यह घटना भारतीय मानस में बनी रहेगी कि चीन पर कभी यह भरोसा न करें कि वह किसी समझौते का पालन करेगा और न ही वह अपने वादों पर टिका रहेगा.
15 जून, 2020 के हुआ गलवान संघर्ष कोई रात-रातों होने वाली घटना नहीं थी. बल्कि एलएसी को सक्रिय रखने के लिए चीनी रणनीति का एक हिस्सा था, इसने उस क्षेत्र पर अपना नियंत्रण दिखाने के लिए चीनी झंडे की नकली तस्वीरों का इस्तेमाल किया था. इतना ही नहीं, फरवरी 2022 में बीजिंग ओलंपिक के दौरान, चीन ने एक खेल के दौरान गलवान योद्धा को नायक के रूप में शामिल किया, इस तथ्य के बावजूद कि खेल को एक गैर-राजनीतिक गतिविधि होना चाहिए.
6 जून को एक समझौते के बावजूद, बिना किसी उकसावे 15 जून, 2020 का संघर्ष, मीडिया प्रचार के साथ चीन का प्रोपेगेंडा और बीजिंग ओलंपिक में गलवान घायल सैनिक का प्रदर्शन, इस बात का स्पष्ट संकेत हैं कि चीन एलएसी को न केवल अस्थायी रूप से बल्कि हर वक्त के लिए विवादित रखना चाहता है. इसके साथ ही वह भारत को अपनी जमीन के लिए संघर्ष में फंसाए रखेगा, जहां उसे अपनी रणनीति और योजना के अनुसार, संघर्ष की शुरुआत या समय के चयन का लाभ मिलता रहेगा. इस प्रक्रिया में एलएसी विवाद के कारण भारत, जो अपने पाकिस्तान केन्द्रित नीति से बाहर आ गया है, की सेना के थियेटराइजेशन की गति धीमी हो जाएगी और विश्वसनीय तौर पर नौसैनिक बलों के विकास में भी कमी आएगी.
अन्य देशों के विपरीत, जहां कुछ कार्य सर्वोच्च नेतृत्व से अनुमोदन के बिना भी हो सकते हैं, चीन पूरी तरह से अलग है. गलवान संघर्ष और उसके परिणाम, भारत को एलएसी में फंसाए रखने की चीन की योजना का हिस्सा है. वह क्वॉड में भारत की स्थिति कमजोर करना चाहता है. रूस-यूक्रेन युद्ध के बाद उभरती हुई नई विश्व व्यवस्था में राष्ट्रों के समूह में इसके वाजिब दावे को रोकना चाहता है. 

सोर्स - tv9hindi.com 

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