कैप्टन अमरिंदर सिंह: बीजेपी के नजदीक आने का कारण दुश्मन दोस्त, पुराना प्यार या कुछ और?

राजनीति में जो दिखता है वह होता नहीं है और जो होता है वह दिखता नहीं है

Update: 2021-09-30 15:24 GMT

संयम श्रीवास्तव। राजनीति में जो दिखता है वह होता नहीं है और जो होता है वह दिखता नहीं है. पंजाब में इन दिनों सियासी भूचाल आया हुआ है. नवजोत सिंह सिद्धू (Navjot Singh Sidhu) और कैप्टन अमरिंदर सिंह (Amarinder Singh) की लड़ाई ने कांग्रेस (Congress) आलाकमान की नाक में दम कर दिया है. नौबत यहां तक आ गई कि पंजाब में कांग्रेस को खड़ा करने वाले अमरिंदर सिंह को मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा तक देना पड़ा और सार्वजनिक रूप से कहना पड़ा कि आलाकमान ने उनका अपमान किया है. उधर कैप्टन अमरिंदर सिंह की जगह पंजाब में एक दलित सिख चेहरा चरणजीत सिंह चन्नी (Charanjit Singh Channi) को मुख्यमंत्री बनाया गया, जिनके कुछ फैसलों से नवजोत सिंह सिद्धू नाराज हो गए और उन्होंने पंजाब कांग्रेस के अध्यक्ष पद से इस्तीफा तक दे दिया.

अभी तक आपको लग रहा होगा कि यह सारा मसला सिर्फ कैप्टन अमरिंदर सिंह, नवजोत सिंह सिद्धू और कांग्रेस पार्टी के बीच का है. लेकिन इसमें तब एक नया मोड़ सामने आ गया जब कैप्टन अमरिंदर सिंह ने गृह मंत्री अमित शाह से मुलाकात कर ली. इस मुलाकात के कई बड़े मायने हैं. कुछ लोग कयास लगा रहे थे कैप्टन अमरिंदर सिंह हो सकता है बीजेपी में शामिल हो जाएं. हालांकि कैप्टन साहब ने खुद ही बयान दे दिया कि वह बीजेपी में शामिल नहीं होंगे, लेकिन वह अब कांग्रेस का भी हिस्सा नहीं रहेंगे.
इस पर सवाल उठता है कि क्या अब पंजाब में कैप्टन अमरिंदर सिंह अपनी एक नई पार्टी के साथ चुनावी ताल ठोकेंगे. और अगर कैप्टन अमरिंदर सिंह ऐसा करते हैं तो उसका नुकसान किसे होगा और इसका फायदा किसे होगा. जाहिर सी बात है कांग्रेस का सबसे बड़ा नुकसान होगा और कांग्रेस का नुकसान होगा तो कहीं ना कहीं बीजेपी को थोड़ा बहुत फायदा भी होगा. लेकिन इन सब उठापटक के बीच राजनीतिक गलियारे में एक और चर्चा चल रही है कि कैप्टन अमरिंदर सिंह बीजेपी के करीब इसलिए गए क्योंकि उनका परिवार ईडी और सीबीआई के रडार पर था और अगर कैप्टन अमरिंदर सिंह बीजेपी के करीब नहीं जाते तो उनकी मुश्किलें बढ़ जातीं. हालांकि इस दावे में कितना सच है कितना झूठ यह तो आने वाला वक्त बताएगा. लेकिन इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि कैप्टन अमरिंदर सिंह की पत्नी उनके पुत्र और दामाद पर सीबीआई और ईडी दोनों की नजर थी.
क्या बिहार, एमपी और कर्नाटक की तरह ही पंजाब में भी बननी थी बीजेपी की सरकार
पंजाब की राजनीति के कुछ जानकारों का मानना है कि पंजाब की सियासत में कैप्टन अमरिंदर सिंह के साथ भारतीय जनता पार्टी ने पूरा खेल तैयार कर लिया था. पंजाब में भी रातों रात सत्ता परिवर्तन होने वाला था. जैसे बिहार में अचानक से नीतीश कुमार ने आरजेडी को छोड़कर बीजेपी के साथ सरकार बना ली थी या फिर कर्नाटक में जैसे भारतीय जनता पार्टी की सरकार बनी थी. मध्यप्रदेश में भी तो ऐसे ही सरकार बनी थी. लेकिन इस खेल को वर्तमान समय और राजनीतिक महत्वाकांक्षा ने बिगाड़ दिया.
दरअसल कृषि कानूनों के चलते पंजाब में केंद्र सरकार के विरोध की लहर है ऐसे में अगर कैप्टन अमरिंदर सिंह बीजेपी में आते तो भारतीय जनता पार्टी को इतना फायदा नहीं होता और जहां तक रही तख्तापलट कर सरकार बनाने की बात तो जब तक अमरिंदर सिंह ऐसा कुछ करते उससे पहले ही कांग्रेस आलाकमान ने उनसे मुख्यमंत्री की कुर्सी छीन ली और एक दलित चेहरे को मुख्यमंत्री बना दिया. जाहिर सी बात है कैप्टन अमरिंदर सिंह और बीजेपी किसी भी कीमत पर पंजाब में दलितों को नाराज नहीं करना चाहेंगे, क्योंकि उनका वोट शेयर पंजाब में जीत के लिए निर्णायक सिद्ध होता है.
अब कयास लगाए जा रहे हैं कि पंजाब में कैप्टन अमरिंदर सिंह भारतीय जनता पार्टी की बी टीम की तरह खेल खेलेंगे और आगामी विधानसभा चुनाव में अपनी नई पार्टी बना कर कांग्रेस समेत उन तमाम राजनीतिक पार्टियों का खेल बिगाड़ देंगे जो भारतीय जनता पार्टी के सामने खड़े होने का माद्दा रखती हैं. हालांकि भविष्य में क्या होगा इस पर अभी से कोई राय देना जल्दबाजी होगी. इसलिए कुछ महीनों का इंतजार करिए और देखते जाइए अभी पंजाब में कई और पत्ते खुलने बाकी हैं.
कैप्टन साहब और बीजेपी के बीच का खेल पुराना है
कैप्टन अमरिंदर सिंह से भारतीय जनता पार्टी की नज़दीकियों पर अगर नजर डालें तो मालूम चलेगा कि कैप्टन अमरिंदर सिंह और प्रधानमंत्री मोदी के बीच की नज़दीकियां बहुत पुरानी हैं. आपको याद होगा पिछले पंजाब विधानसभा चुनाव के दौरान या फिर 2019 के लोकसभा चुनाव के दौरान जब प्रधानमंत्री मोदी पंजाब में कांग्रेस के खिलाफ खुलकर मोर्चा खोले हुए थे और उस पर तमाम आरोप मढ़ रहे थे, तब भी उन्होंने कभी भी अमरिंदर सिंह या उनकी नीतियों पर निशाना नहीं साधा. यहां तक कि कई बार उन्होंने कैप्टन अमरिंदर सिंह की तारीफ तक कर दी.
वहीं कैप्टन अमरिंदर सिंह भी कांग्रेस में रहते हुए कई बार पार्टी लाइन से हटकर प्रधानमंत्री मोदी के साथ उनके काम और उनकी नीतियों पर खड़े दिखे. चाहे सर्जिकल स्ट्राइक का मुद्दा हो, वैक्सीनेशन का मुद्दा हो या फिर गलवान घाटी में चीनी सैनिकों से झड़प का मुद्दा. उन्होंने हमेशा पार्टी से अलग इन मुद्दों पर सरकार के साथ खड़े रहना ज्यादा उचित समझा. यहां तक कि किसान आंदोलन को भी जहां कांग्रेस पार्टी का समर्थन मिला था, वहीं शुरुआत में अमरिंदर सिंह किसान आंदोलन के पक्ष में नहीं थे. यहां तक कि उन्होंने प्रदर्शन कर रहे किसानों को दिल्ली जाकर आंदोलन करने की सलाह तक दे डाली थी.
अमृतसर में जलियांवाला बाग के नवीनीकरण के मामले में भी कांग्रेस पार्टी और राहुल गांधी जहां प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को घेरने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ रहे थे. वही पंजाब के तत्कालीन मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह केंद्र सरकार के साथ खड़े थे. इन तमाम मुद्दों पर कैप्टन अमरिंदर सिंह का प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ खड़े रहना और कांग्रेस पार्टी से बगावत करना, ऐसा लगता है कि जैसे पंजाब के इस सियासी ड्रामे की स्क्रिप्ट पहले से ही लिखी जा चुका थी और उस स्क्रिप्ट पर अब सिर्फ कलाकार अपना रोल प्ले कर रहे हैं.
क्या है सीबीआई और ईडी का एंगल
कुछ समय पहले केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट को स्विस बैंक में 627 खाताधारकों की एक लिस्ट सौंपी थी. इसमें कैप्टन अमरिंदर सिंह की पत्नी परनीत कौर और उनके बेटे रणिंदर सिंह का नाम भी था. परनीत कौर यूपीए सरकार में विदेश राज्य मंत्री भी रह चुकी हैं. दरअसल स्विट्जरलैंड ने मई 2015 में बताया था कि भारत के अधिकारियों ने कई भारतीय नागरिकों के स्विस बैंक के खातों की जांच के लिए उनसे मदद मांगी थी, जिसमें कैप्टन अमरिंदर सिंह की पत्नी परनीत कौर और उनके बेटे रणिंदर सिंह के कथित खाते भी शामिल थे. उस वक्त देश में कई भारतीय नागरिकों के स्विस बैंक में खातों की जांच हो रही थी, जिसके बारे में स्विट्जरलैंड की सरकार ने एक अधिसूचना भी जारी की थी. उस वक्त इंडियन एक्सप्रेस में छपी एक खबर के अनुसार, स्विट्जरलैंड के संघीय कर प्रशासन ने इस मामले में परनीत कौर और उनके बेटे से 10 दिन के अंदर अपील दायर कर अपना पक्ष रखने की बात भी कही थी.
जबकि इस लिस्ट के जारी होने से पहले जब एचएसबीसी में परनीत कौर का नाम आया था तो उन्होंने इसे पूरी तरह से नकार दिया था और कहा था कि उनका और उनके बेटे का किसी भी विदेशी बैंक में कोई खाता नहीं है और उन्हें किसी राजनीतिक साजिश के तहत बदनाम किया जा रहा है.
सीबीआई के रडार पर कैप्टन अमरिंदर सिंह के दामाद
मामला 2018 का है, सियासी गलियारों में उस वक्त हड़कंप मच गया जब बहुकरोड़ी बैंक कर्ज घोटाले में पंजाब के तत्कालीन मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह के दामाद गुरपाल सिंह का नाम सामने आया. इस मामले में ईडी ने गुरपाल सिंह समेत कई आरोपियों पर अपना शिकंजा कसा था. यहां तक की गुरपाल सिंह से संबंधित उत्तर प्रदेश के हापुड़ जिले के सिंभावली शुगर लिमिटेड की 109.8 करोड़ की संपत्ति भी ईडी ने कुर्क कर दी थी. इस बहुकरोड़ी बैंक कर्ज घोटाले में गुरपाल सिंह समेत लगभग एक दर्जन लोगों के नाम शामिल थे. ईडी ने तब बताया था कि इस धोखाधड़ी के मामले में सारी कार्रवाई प्रिवेंशन ऑफ मनी लांड्रिंग एक्ट 2002 के तहत की गई थीं.
कैप्टन अमरिंदर सिंह के बेटे रणिंदर सिंह भी थे ईडी के शिकंजे में
कैप्टन अमरिंदर सिंह के बेटे रणिंदर सिंह से जुड़ा मामला अक्टूबर 2020 का है. दरअसल अक्टूबर 2020 में ईडी ने कैप्टन अमरिंदर सिंह के बेटे रणिंदर सिंह पर फेमा कानून के उल्लंघन का आरोप लगाया था और उनसे पूछताछ की थी. रणिंदर सिंह पर आरोप था कि उन्होंने इनकम टैक्स डिपार्टमेंट को अपने विदेशी संपत्तियों के बारे में लिखित तौर पर गलत जानकारी दी थी. यहां तक कि कई विदेशी चल अचल संपत्तियों के बारे में इनकम टैक्स द्वारा पूछे जाने के बाद भी रणिंदर सिंह ने इनकम टैक्स डिपार्टमेंट को सही जानकारी नहीं दी थी. इसीलिए इनकम टैक्स ने रणिंदर सिंह पर जो मामला दर्ज किया था उसी के आधार पर ईडी ने उनसे पूछताछ की थी. हिंदुस्तान टाइम्स में उस वक्त छपी एक खबर के अनुसार, इस मामले में पंजाब प्रभारी हरीश रावत ने ईडी की कार्रवाई पर टाइमिंग को लेकर सवाल भी उठाए थे. उनका कहना था कि बीजेपी यह सब इसलिए करा रही है ताकि कृषि कानूनों पर वह अमरिंदर सिंह की जुबान बंद करा सके.


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