उपचुनावों का संदेश
गुजरात और हिमाचल विधानसभा चुनावों के लिए तूफानी चुनाव प्रचार के बीच 6 राज्यों की विधानसभा सीटों के उपचुनावों के परिणाम आ गए हैं। हालांकि उपचुनाव परिणामों के बारे में यही कहा जाता है
आदित्य चोपड़ा; गुजरात और हिमाचल विधानसभा चुनावों के लिए तूफानी चुनाव प्रचार के बीच 6 राज्यों की विधानसभा सीटों के उपचुनावों के परिणाम आ गए हैं। हालांकि उपचुनाव परिणामों के बारे में यही कहा जाता है कि यह आमतौर पर राज्य में सत्तारूढ़ राजनीतिक दलों के पक्ष में ही जाते हैं। मतदाताओं के बीच भी आम धारणा यही है कि वे अगर सत्तारूढ़ दल के पक्ष में वोट देंगे तो जनता के काम होते रहेंगे, नहीं तो गतिरोध पैदा हो जाता है। लेकिन यह धारणा शत-प्रतिशत कसौटी पर खरी नहीं उतरती और कभी-कभी उपचुनाव बड़ा उलटफेर भी कर देते हैं। उपचुनाव उम्मीदवारों की याेग्यता पर भी तय होते हैं। इन उपचुनावों पर नजरें इसलिए भी थी क्योंकि मुकाबला भाजपा और क्षेत्रीय दलों के बीच था। बात बिहार की करें मोकामा से राजद उम्मीदवार नीलम देवी ने भाजपा की सोनम देवी को एक बड़े अंतर से हरा दिया। वहीं भाजपा ने गोपालगंज सीट बहुत कम अंतर से जीती। गोपालगंज सीट 2005 से ही भाजपा की रही है। राज्य में राजनीतिक समीकरण बदले जाने के बाद यह पहले उपचुनाव हो रहे जिन्होंने संकेत दिया कि बिहार की राजनीति में लालू परिवार का दबदबा कायम है। मोकामा सीट पर बाहुबली अनंत सिंह की पत्नी चुनाव लड़ रही थीं। उसकी जीत से यह भी साफ हो गया कि अनंत सिंह का जलवा अभी भी कायम है। गोपालगंज सीट पर भाजपा ने कांटे की टक्कर में जीत हासिल की। भाजपा को अलग करने के बाद अब जनता दल (यू) राजद के साथ महागठबंधन में है। वहीं विधानसभा चुनाव में एक साथ एनडीए के लिए लड़ने वाली भाजपा अब जदयू की विरोधी है। गोपालगंज से भाजपा विधायक सुभाष सिंह के निधन के बाद भाजपा ने उनकी पत्नी कुसुम देवी को उम्मीदवार बनाया। उनकी जीत सहानुभूति वोट से ही सम्भव हुई है। महाराष्ट्र के उपचुनावों की बात करें तो अंधेरी उपचुनाव ने एक बेहतर संदेश दिया है। अंधेरी पूर्व सीट से शिवसेना उद्धव बाल ठाकरे की ओर से दिवंगत विधायक रमेश लटके की पत्नी ऋतुजा लटके की जीत पहले से ही तय थी, क्योंकि मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे की शिवसेना ने यह सीट भाजपा के लिए छोड़ी थी। लेकिन शरद पवार और राजठाकरे की अपील पर भाजपा ने अपना उम्मीदवार वापिस ले लिया क्योंकि भाजपा महसूस करती थी कि उसके चुनाव लड़ने पर गलत संदेश जा सकता है। राकंपा दिग्गज शरद पवार ने भी भाजपा नेता गोपीनाथ मुंडे के निधन के बाद उपचुनाव में अपना प्रत्याशी नहीं उतारा था। हरियाणा के आदमपुर विधानसभा चुनाव की चर्चा जोरों पर थी। यहां पर भी भारतीय जनता पार्टी के उम्मीदवार भव्य बिश्नोई ने जीत का परचम लहराया है। मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर के आगे यह उपचुनाव चौथा चैलेंज था। हरियाणा में आठ साल में भाजपा तीन उपचुनाव हार चुकी है। भव्य बिश्नोई के पिता कुलदीप बिश्नोई के कांग्रेस छोड़ भाजपा में शामिल होने के बाद उन्होंने विधायक पद से इस्तीफा दे दिया था। आदमपुर विधानसभा क्षेत्र से अब तक पूर्व सीएम भजनलाल का परिवार ही चुनाव लड़कर जीतता आ रहा है। वर्ष 1967, 1972, 1977, 1982 तक स्वयं भजन लाल यह सीट जीतते रहे। 1987 में उनकी पत्नी जसमा देवी फिर 1990, 1996, 2000, 2005 और 2008 उपचुनाव में चौधरी भजनलाल जीते। जबकि 1998 उपचुनाव 2009, 2014, 2017 में कुलदीप बिश्नोई चुनाव जीते। 2011 के उपचुनाव में रेणुका बिश्नोई जीतीं। इस तरह से 12 जनरल और तीन उपचुनाव में चौधरी भजनलाल का ही दबदबा रहा। यद्यपि हरियाणा कांग्रेस दिग्गज नेता और पूर्व मुख्यमंत्री भूपेन्द्र हुड्डा ने चुनाव की कमान सम्भाली हुई थी, लेकिन जीत का सेहरा मुख्यमंत्री खट्टर के सिर पर बंधा। इस जीत को खट्टर सरकार के कामकाज पर जनता की मोहर माना जा सकता है।उत्तर प्रदेश की लखीमपुर खीरी की गोला गोकर्णनाथ सीट पर भाजपा ने समाजवादी पार्टी को करारी हार दी है। भाजपा प्रत्याशी दिवंगत विधायक अरविन्द गिरी के बेटे हैं। स्वर्गीय अरविन्द गिरी ने 29274 वोट से जीत हासिल की थी, जबकि उनके बेटे अमन गिरी ने 34298 वोट से जीत हासिल की है। इस तरह से वह पिता की जीत से भी आगे निकल गए हैं। इस सीट पर कमल खिलने का अर्थ यही है कि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का राज्य में अभी तक कोई मुकाबले में नहीं है। उनके सुशासन विकास को जनता का समर्थन प्राप्त है।श्रीलंकाई क्रिकेटर धनुष्का गुणतिलका सिडनी में बलात्कार के आरोप में गिरफ्तार, कड़ी कार्रवाई होगीी PM मोदी ने गुजरात में सामूहिक विवाह में की शिरकततेलंगाना की मुन्नुगोड़े उपचुनाव में जीत तेलंगाना राष्ट्र समिति के उम्मीदवार की हुई। लेकिन चौंकाने वाला परिणाम ओडिसा की धामपुर सीट पर िमला है। जहां भारतीय जनता पार्टी के प्रत्याशी सूर्यवंशी सूरज ने बीजू जनता दल के उम्मीदवार अम्बली दास को कांटे की टक्कर में हरा दिया। सूर्यवंशी सूरज दिवंगत विधायक विष्णुचरण सेठी के बेटे हैं। भाजपा ने इस सीट पर जर्बदस्त इमोशनल कार्ड खेला है। बीजू जनता दल के बागी उम्मीदवार राजेन्द्र दास ने पाला बदलकर चुनाव को दिलचस्प बना दिया था। बीजू जनता दल ने 2019 के बाद कोई चुनाव नहीं हारा है। ऐसे में धामपुर सीट से भाजपा की जीत काफी महत्वपूर्ण मानी जा रही है। इस तरह भाजपा 4 राज्यों में डंका बजाने में कामयाब हुई है। जिन सात सीटों पर उपचुनाव हुए थे, उनमें से भाजपा के पास तीन और कांग्रेस के पास दो सीटें थीं, जबकि शिवसेना और राजद के पास एक-एक सीट थी। उपचुनावों में कुल मिलाकर भाजपा की बल्ले-बल्ले हुई है।