बुलडोजर राज : दिल्ली में कानून ही कर देता है अमीर-गरीब में भेदभाव
बुधवार को उत्तरी दिल्ली (Delhi) के जहांगीरपुरी (Jahangirpuri Demolition) क्षेत्र में नगर निकाय ने अवैध निर्माण को विध्वंस करने का जो अभियान चलाया और अधिकारियों ने बाद में जिस तरह का स्पष्टीकरण दिया है
अजय झा
बुधवार को उत्तरी दिल्ली (Delhi) के जहांगीरपुरी (Jahangirpuri Demolition) क्षेत्र में नगर निकाय ने अवैध निर्माण को विध्वंस करने का जो अभियान चलाया और अधिकारियों ने बाद में जिस तरह का स्पष्टीकरण दिया है, उस पर एक बड़ा सवाल ये खड़ा हो रहा है कि अगर ये निर्माण गैर-कानूनी थे तो इनको बनाने की अनुमति क्यों दी गई. जहांगीरपुरी इतनी छोटी जगह तो है नहीं कि ये रातोंरात ही बस गई. यह तो कई दशकों से अस्तित्व में है, तो अधिकारी इस अवैध स्थिति से अब तक कैसे अनजान थे? देश की राजधानी दिल्ली लंबे समय से अनधिकृत और अवैध निर्माण की समस्या से जूझ रही है. आम तौर पर सार्वजनिक भूमि (Public Land) पर ही ऐसी कॉलोनियां और आवास बनते हैं. इन मामलों में एक स्थापित कार्यप्रणाली काम करती है और उसको समझना मुश्किल नहीं है.
राजनीति के गलियारों में पहुंच रखने वाला कोई बाहुबली खाली और बेकार पड़ी सरकारी जमीन का कोई टुकड़ा ढूंढता है और कम आय वाले लोगों से एक कीमत लेकर उनको उस पर झुग्गियां बनाने की इजाजत दे देता है. इस पैसे को वह स्थानीय पुलिस और नगरपालिका कर्मचारियों के साथ साझा करता है. इस रकम में उसे संरक्षण देने वाले नेता की भी भागीदारी होती है जिसको वह बाहुबली भारी वोट दिलाने का भी वादा करता है. वोट और पैसे के लालच में राजनेता यह सुनिश्चित करते हैं कि ऐसी कॉलोनियों को कोई नुकसान न पहुंचे. साथ ही वे इसे नियमित करने का वादा भी करते हैं.
अनाधिकृत कॉलोनियों को शायद ही कभी गिराया जाता है
दूसरे परिदृश्य में राजनीतिक पहुंच रखने वाले भू-माफिया जमीन को किसानों से खरीदते हैं और इनको छोटे-छोटे भूखंडों में काटकर आसानी से बेवकूफ बनाए जा सकने वाले प्रवासियों को बेचते हैं. इस काम में कोई बाधा न आए, इसके लिए बाकी की कार्य प्रणाली वैसी ही रहती है. 1970 के आखिर के वर्षों और 1980 के दशक की शुरुआत में पूर्वी दिल्ली के एक बड़े हिस्से और बाहरी दिल्ली (हरियाणा की सीमा से लगी दिल्ली का उत्तरी और दक्षिण-पश्चिमी भाग) में इस तरह के निर्माण बहुत तेजी से हुए थे. पूर्वी दिल्ली और बाहरी दिल्ली में ऐसी अधिकांश कॉलोनियों के बसने की वजह एचकेएल भगत और सज्जन कुमार जैसे पूर्व कांग्रेस सांसदों से इनको मिला संरक्षण रहा है.
समस्या तब शुरू होती है जब भू-माफिया इस जमीन को बेचने के बाद किसी अन्य स्थान पर चले जाते हैं और वो कॉलोनी आकार लेने लगती हैं. जब ये बस जाती हैं तो ऐसी अवैध या अनाधिकृत कॉलोनियों को शायद ही कभी गिराया जाता है और अगर इनको गिराने की नौबत आती है तो फिर उन्हें वैकल्पिक भूमि या कहीं और एक फ्लैट देने का वादा किया जाता है. इस तरह दरअसल, नेताओं की नजर अपने वोट बैंक को बढ़ाने पर होती है. ऐसे में वे अपने चुनावी घोषणापत्र में इन कॉलोनियों को नियमित करने का वादा करते हैं और अगले चुनाव से पहले गर्व से यह घोषणा करते हैं कि उन्होंने ऐसी कितनी कॉलोनियों को गिरने से बचाया और उन्हें कानूनी मंजूरी दिलवाई.
ऐसी कॉलोनियां एक बार नियमित होने के बाद नगर निगम के अंर्तगत आ जाती हैं और फिर इनको पानी और बिजली कनेक्शन जैसी सभी बुनियादी सुविधाएं और सेवाएं मिलने लगती हैं. साथ ही उचित सड़कें भी बनाकर दी जाती हैं. इन कॉलोनियों को लेकर असली समस्या वोट बैंक वाली राजनीति से है. एक ओर जहां कांग्रेस पार्टी ने दिल्ली में अवैध कॉलोनियों के निर्माण को प्रोत्साहित किया तो दूसरी ओर भारतीय जनता पार्टी ने इन वोटों को अपनी ओर खींचने के लिए सत्ता में आने के बाद इन कॉलोनियों को नियमित करना शुरू कर दिया. इसके बाद दिल्ली की सत्तारूढ़ आम आदमी पार्टी (आप) तो एक कदम और भी आगे निकली. आप ने इन कॉलोनियों में रहने वालों को न सिर्फ मुफ्त बिजली और पानी मुहैया कराया, बल्कि स्वास्थ्य सेवाओं के लिए मोहल्ला क्लीनिक, स्कूल और दिल्ली परिवहन निगम (डीटीसी) बस सेवाओं से भी जोड़ दिया है.
जहांगीरपुरी प्रकरण की जड़ें राजनीति से जुड़ी हैं
समाज में एक समृद्ध और शक्तिशाली वर्ग भी है जो खेती की जमीन खरीदकर उस पर अवैध फार्महाउस बनाते हैं. दक्षिण और दक्षिणी-पश्चिम दिल्ली में ऐसे कई फार्महाउस हैं और कोई भी इन पर हाथ डालने की हिम्मत भी नहीं कर सकता है. ऐसी ही एक अवैध कॉलोनी का नाम है दक्षिणी दिल्ली का सैनिक फार्म्स, जो राजधानी की सबसे महंगी एड्रेस लोकेशन है. और जहां इसके बेतहाशा अमीर लोग रहते हैं. अवैध कॉलोनी होने के नाते अधिकतर अधिकारी सैनिक फार्मों को बिजली और पानी की आपूर्ति से वंचित कर सकते थे, लेकिन यह बहुत कम मायने रखता था. ऐसा होने पर वहां के लोग जनरेटर लगाकर भूजल निकाल लेते. एक समय पर सैनिक फार्म्स को दिल्ली में भारत गणराज्य के भीतर एक गणराज्य के रूप में देखा जाता था क्योंकि 1960 के दशक में इसके अस्तित्व में आने के बाद से ही यहां किसी सरकारी नियम, प्रतिबंध या अदालती आदेश का महत्व ही नहीं होता था.
हालांकि, जहांगीरपुरी में बुलडोजर चलाने के पीछे इनमें से कोई भी कारण नहीं गिनाया जा सकता है. दिल्ली में नए निकाय के गठन के लिए चुनाव जल्द ही होने वाले हैं. पिछले 15 वर्षों से दिल्ली के नगर निकायों पर शासन कर रही भाजपा को इन चुनावों में दिल्ली की सत्ताधारी पार्टी आप से बड़ी चुनौती मिल सकती है. हो सकता है कि इसी के लिए ये सारा खेल रचा गया हो. आखिर ऐसी कॉलोनियों के निवासी अब आप का वोट बैंक बन चुके हैं. आने वाले समय में कई राज्यों में चुनाव होने वाले हैं और 2024 के आम चुनाव तो होने ही वाले हैं, ऐसे में दिल्ली के इन चुनावों में भाजपा हार का सामना नहीं करना चाहेगी.
इन अवैध और अनाधिकृत कॉलोनियों को लेकर एक बदलाव जरूर समय के साथ आया है. पहले ऐसी कॉलोनियों के सभी निवासियों को धर्म के आधार की जगह एक नजर से या यूं कहें कि एक समान वोट बैंक के तौर पर देखा जाता था. लेकिन जहांगीरपुरी में हुए सांप्रदायिक दंगे और फिर उसके बाद वहां चले अतिक्रमण हटाओ अभियान में जिस तरह एक विशेष समुदाय की संपत्तियों को कथित तौर पर निशाना बनाया गया, उससे यह शक तो होता है कि मामला बस उतना नहीं है, जितना कि ऊपर से देखने में आ रहा है. आखिर पूरे जहांगीरपुरी प्रकरण की जड़ें राजनीति से जुड़ी हैं